ब्लड शुगर का सटीक अनुमान लगाएगा भारत का यह एआई मॉडल
2045 तक भारत में 12.4 करोड़ शुगर के मरीज होने का अनुमान है। ऐसे में डायबिटीज का पूर्वानुमान लगाने के लिहाज से एनआईटी राउरकेला के रिसर्चरों के एआई पर आधारित नए शोध से उम्मीदें जगी हैं।
रामांशी मिश्रा
आजकल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के द्वारा जीवन के पहलुओं को बेहतर बनाने के लिए हर रोज नए शोध किए जा रहे हैं। इस क्रम में मधुमेह रोगियों के लिए राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) राउरकेला में भी एक शोध किया गया है। इस शोध में एआई की मदद से मधुमेह के स्तर का पूर्वानुमान लगाने की कोशिश की जा रही है, जिसमें शोधार्थियों को प्रारंभिक सफलता भी मिली है।
अकसर एक बार डायबिटीज का पता चल जाने पर किसी इंसान को जिंदगी भर दवाइयों पर निर्भर रहना पड़ता है। हालांकि इसके लिए जीवनशैली में बदलाव समेत कई अन्य उपायों से ठीक करने के दावे किए जाते रहे हैं, फिर भी अब तक शुगर के स्तर का भविष्य बताने में शोधार्थियों के दावे सटीक नहीं रहे हैं।
डेटासेट पर आधारित एप्लिकेशन
ओडिशा में स्थित एनआईटी राउरकेला के बायोटेक्नोलॉजी और मेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर मिर्जा खालिद बेग ने अपनी टीम के साथ यह रिसर्च की है। उनका दावा है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से मधुमेह रोगियों के पहले के डेटा के आधार पर भविष्य में उनके शुगर स्तर का सटीक अनुमान लगाया जा सकता है। उनका मानना है कि डाक्टरों और इंजीनियरों के बीच समन्वय के जरिये ऐसी तकनीक स्थानीय मरीजों तक पहुंचायी जा सकती है।
डीडब्ल्यू से बातचीत में प्रोफेसर खालिद बताते हैं, "यह एक एप्लिकेशन पर आधारित रिसर्च है। अभी इस शोध का पहला चरण सफलतापूर्वक पूरा हो गया है। इसलिए हम इसके भविष्य को लेकर आशान्वित हैं। आगे चलकर इसका एक एप्लिकेशन लोगों के मोबाइल तक पहुंचाया जा सकता है।”
वैसे तो पहले से ही लोगों के मोबाइल फोन में बहुत सारे हेल्थ एप्लिकेशन उपलब्ध है। जिसमें सेहत दुरुस्त रखने के उपाय शामिल होते हैं, लेकिन खालिद का कहना है कि डायबिटीज के लिए किसी भी एप्लिकेशन में सटीक जानकारी अब तक उपलब्ध नहीं हो पाई है। प्रोफेसर खालिद के मुताबिक, "इस शोध का उद्देश्य हर व्यक्ति के लिए शुगर के स्तर का सटीक अनुमान लगाना और भविष्य में होने वाली परेशानियों को कम करना है।”
भावी पीढ़ी को फायदा
प्रोफेसर खालिद के इस शोध को लेकर लखनऊ के क्लाउड नाइन हॉस्पिटल की निदेशक और प्रसूति विशेषज्ञ डॉ। ऋचा गंगवार का मत भी आशाजनक है। वह कहती हैं, "इस तरह की तकनीक गर्भवती के लिए काफी फायदेमंद हो सकती है। गर्भवती में ब्लड शुगर का स्तर अधिक हो तो उसका असर उनके बच्चे पर भी पड़ता है। ऐसे में इस तरह की तकनीक का उपयोग भावी पीढ़ी को डायबिटीज और उससे होने वाले कॉम्प्लिकेशन से बचा सकता है।"
मधुमेह के रोगियों में टाइप- 1 डायबिटीज में इंसुलिन आवश्यक होती है। वहीं, टाइप- 2 डायबिटीज में इंसुलिन की आवश्यकता रोगी के ब्लड शुगर के स्तर पर निर्भर होती है। अगर कोई व्यक्ति इंसुलिन लेता है तो उसे अपनी डाइट के आधार पर इंसुलिन की मात्रा तय करनी पड़ती है। इसके लिए डॉक्टर मधुमेह रोगियों को निश्चित डाइट के बारे में भी बताते हैं। हालांकि डाइट और इंसुलिन की मात्रा हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग होती है।
टाइप-1 मधुमेह से पीड़ित लोगों को आर्टिफिशियल पैंक्रियाज नामक डिवाइस दिया जाता है। ये डिवाइस मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया के तहत एक छोटी सी पिन के जरिए शरीर में लगा दी जाती है। इसमें एक ग्लूकोज मॉनिटर, एक इंसुलिन पंप और एक एल्गोरिदम होता है जो ब्लड शुगर के स्तर की निगरानी करता है और आवश्यकतानुसार इंसुलिन की खुराक देता है। प्रोफेसर खालिद ने डीडब्ल्यू को बताया, "आर्टिफिशियल पैंक्रियाज के जरिए हर आधे से एक घंटे पर ग्लूकोज के स्तर को मॉनिटर किया जा सकता है और उसके आधार पर व्यक्ति खुद या डॉक्टर के परामर्श पर अपने इंसुलिन की अगली डोज को निश्चित मात्रा में तय कर सकता है।”
स्थानीय मरीजों के डेटा की जरूरत
इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (ICMR) की 2023 की इंडिया बी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 11.4 फीसदी लोग डायबिटीज और 15.3 प्रतिशत लोग प्रीडायबिटीज स्तर पर हैं। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, एक रिपोर्ट के अनुसार, 2045 तक भारत में 124.2 मिलियन मधुमेह रोगी हो सकते हैं।
मेडिकल जर्नल 'द लैंसेट' में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक भारत में अनियंत्रित मधुमेह के मरीजों की संख्या सबसे ज्यादा है। इस अध्ययन के अनुसार, 2022 में दुनिया भर में लगभग 82।8 करोड़ लोगों में डायबिटीज पायी गई। इनमें से एक चौथाई यानी 21.2 करोड़ भारत में रहते हैं।
प्रोफेसर खालिद ने शोध के लिए ओहायो विश्वविद्यालय से मधुमेह रोगियों के डेटासेट का उपयोग किया है। इसके परिणाम काफी सटीक हैं। प्रोफेसर खालिद का कहना है कि इस तरह के शोध के लिए मधुमेह रोगियों के ग्लूकोज स्तर की लगातार निगरानी के बाद लिए गए डेटासेट की आवश्यकता पड़ती है।
वे बताते हैं कि अगले चरण के लिए स्थानीय मरीजों के डेटासेट के साथ क्लिनिकल ट्रायल की शुरुआत की जा चुकी है। इसके लिए वे ओडिशा के एससीबी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में डॉक्टर जयंत पांडा और उनकी टीम के साथ कार्य कर रहे हैं। वे बताते हैं, "भारत में खानपान और जीवनशैली पश्चिमी देश की अपेक्षा पूरी तरह उलट है। ऐसे में स्थानीय मधुमेह रोगियों के डेटासेट का इस्तेमाल करना अधिक सटीक जानकारी दे सकता है।"
प्रीडायबिटिक लोगों के लिए भी ऐप जरूरी
प्रोफेसर खालिद का यह शोध प्रीडायबिटिक लोगों के लिए भी डायबिटीज से बचाव हेतु खान-पान में बदलाव और अन्य पहलुओं के लिहाज से सहायक हो सकता है। हालांकि उन लोगों पर अभी शोध करना बाकी है। प्रोफेसर खालिद का इस बारे में कहना है, "हमारा ध्येय यही है कि अधिक से अधिक लोग अपने शरीर के बारे में सही जानकारी रख सकें और बीमारी से बचाव कर सकें।”
प्रोफेसर खालिद कहते हैं, "क्लिनिकल ट्रायल्स काफी समय लेते हैं और इसमें लोगों की भी आवश्यकता होती है जो सामने से आकर इस शोध के लिए सहायक बन सकें। ऐसे में एप्लिकेशन के तैयार होने की निश्चित अवधि बता पाना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन इस शोध को हम जल्द से जल्द अंतिम चरण तक लाने की कोशिश कर रहे हैं।”