भारत: क्या रेल यात्रा सुरक्षित बनाने की कोशिशें पर्याप्त हैं?

DW
मंगलवार, 6 जून 2023 (09:10 IST)
-मुरली कृष्णन
 
ओडिशा में हुए ट्रेन हादसे ने भारतीय रेल की सुरक्षा पर नए सिरे से रोशनी डाल दी है। ऐसा इसलिए कि सरकार, भारत के व्यापक रेलवे नेटवर्क का आधुनिकीकरण कर रही है। ओडिशा के बालासोर में 2 जून की शाम 3 ट्रेनें हादसे की शिकार हो गईं। महज कुछ मिनटों के अंतराल पर दुर्घटनाग्रस्त इन ट्रेनों ने 275 लोगों की जिंदगी लील ली और 1,000 से अधिक लोग घायल हुए हैं।
 
इसे भारतीय रेल इतिहास का अब तक का तीसरा सबसे बड़ा हादसा बताया जा रहा है। बालासोर में हुई दुर्घटना ने एक बार फिर भारत में रेलवे सुरक्षा के मुद्दे पर ध्यान खींचा है। यह हादसा ऐसे समय में हुआ है, जब भारत सरकार रेल यात्रा को सुखद और खासतौर पर सुरक्षित बनाने की कोशिश कर रही है। भारत में रेल हादसों का इतिहास नया नहीं है। 1999 में पश्चिम बंगाल में 2 ट्रेनों की टक्कर में 285 लोगों की मौत हुई थी। 2010 में भी राज्य में 145 लोगों की मौत हुई, जब एक यात्री ट्रेन पटरी से उतरकर एक मालगाड़ी से टकरा गई थी।
 
आधुनिकीकरण पर सरकार का जोर
 
पिछले कुछ सालों से भारत सरकार दुनिया के सबसे बड़े और व्यस्ततम रेल नेटवर्क में से एक में हाईस्पीड, ऑटोमेटेड ट्रेनों को शुरू करके अपने रेल आधुनिकीकरण को बढ़ावा देने की कोशिशों में जुटी हुई है। सरकार के लक्ष्यों में 2024 तक रेलवे का 100 फीसदी विद्युतीकरण करना और 2030 तक नेटवर्क को कार्बन न्यूट्रल बनाने की योजना शामिल है।
 
इस साल की शुरुआत में जर्मन इंजीनियरिंग कंपनी सीमेंस को 1,200 इलेक्ट्रिक ट्रेनों के निर्माण का बड़ा ऑर्डर मिला था जबकि जापानी कंपनी को मुंबई और अहमदाबाद के बीच भारत की पहली बुलेट ट्रेन चलाने के लिए निर्माण में सहायता और तकनीक मुहैया कराने का जिम्मा सौंपा गया है। लेकिन विशेषज्ञों ने कई ट्रेन दुर्घटनाओं के लिए चरमराते बुनियादी ढांचे को जिम्मेदार ठहराया है जिससे ट्रेन के रखरखाव और ट्रैक के नवीनीकरण पर खर्च किए जा रहे पैसे पर सवाल उठ रहे हैं।
 
भारतीय रेलवे को 13-14 लाख कर्मचारियों के साथ देश की जीवनरेखा माना जाता है। भारतीय ट्रेनों में प्रतिदिन लगभग 2 करोड़ 25 लाख लोग सफर करते हैं और रेलवे 30 लाख टन माल की ढुलाई करती है। लगभग 68,000 किलोमीटर के ब्रॉडगेज नेटवर्क पर 21,000 से अधिक ट्रेनें दौड़ती हैं।
 
सीएजी की रिपोर्ट बेहद चौंकाने वाली
 
हालांकि सरकार के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) के एक आकलन के मुताबिक 2017-18 से 2020-21 के बीच खराब ट्रैक रखरखाव, ओवरस्पीडिंग और मैकेनिकल फेलियर ट्रेनों के पटरी से उतरने के प्रमुख कारण थे। दिसंबर 2022 में संसद में पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया कि इन दुर्घटनाओं का एक प्रमुख कारण रेलवे पटरियों पर रखरखाव की कमी है। रिपोर्ट के मुताबिक ट्रैक नवीनीकरण के लिए फंड में कमी आई है और कई मामलों में इसका पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।
 
विपक्ष भी सीएजी द्वारा किए आकलन पर केंद्र से सवाल कर रहा है। विपक्षी दल पूछ रहे हैं कि क्या रेलमंत्री ने सीएजी की रिपोर्ट पढ़ी थी और अगर पढ़ी थी तो उसे गंभीरता से क्यों नहीं लिया गया? कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इसी पर सवाल किया कि ताजा सीएजी ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक 2017-18 और 2020-21 के बीच 10 में से लगभग 7 रेल दुर्घटनाएं ट्रेन के पटरी से उतरने के कारण हुईं। इसकी अनदेखी क्यों की गई?
 
रिपोर्ट में कहा गया है कि आग, मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग और टक्कर रेल दुर्घटनाओं के अन्य कारणों में थे। इसके अलावा रिपोर्ट में पूरे नेटवर्क में विभागों में कई पद खाली पड़े होने, विशेष रूप से ट्रैक सुरक्षा में कर्मचारियों की भारी कमी पर चिंता व्यक्त की गई।
 
ओडिशा के बालासोर में जो हादसा हुआ, उसके लिए सिग्नल में गड़बड़ी को अभी तक हादसे का प्रमुख कारण माना गया है। वहीं रेलवे बोर्ड ने हादसे की सीबीआई जांच की सिफारिश की है। नाम न छापने की शर्त पर रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने डीडब्ल्यू को बताया कि दुर्घटना की प्रकृति से लगता है कि यह इलेक्ट्रॉनिक सिग्नलिंग सिस्टम में एक खराबी के कारण हुआ जिससे ट्रेन को गलत तरीके से ट्रैक बदलना पड़ा। पैसेंजर ट्रेन दूसरी लूप लाइन में घुस गई और मालगाड़ी से टकरा गई।
 
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और पूर्व रेलमंत्री ममता बनर्जी ने मीडिया से बातचीत में कहा कि जहां तक मुझे पता है, ट्रेन में कोई एंटी कोलिजन डिवाइस नहीं था। अगर यह होता तो हादसा टल सकता था।
 
'कवच' बस 2 प्रतिशत हिस्से में कार्यरत है
 
भारतीय रेलवे ने ट्रेनों की टक्कर को रोकने के लिए एक ऑटोमैटिक ट्रेन प्रॉटेक्शन सिस्टम 'कवच' पर 2012 में काम शुरू किया था। इसका पहला परीक्षण 2016 में किया गया था। 2022 में इसका लाइव डेमो दिखाया गया और इसे लॉन्च किया गया। रेल हादसों को रोकने के लिए कवच एक क्रांति सरीखा माना गया था। लेकिन इतने बड़े रेल नेटवर्क में अभी यह सिर्फ 2 प्रतिशत हिस्से में कार्यरत है।
 
कवच तकनीक ट्रेन ऑपरेटरों को सिग्नल पासिंग और ओवरस्पीडिंग से बचने में मदद करने के लिए डिजाइन की गई है। साथ ही यह तकनीक घने कोहरे जैसी प्रतिकूल मौसमी स्थितियों के दौरान ट्रेन संचालन में मदद देती है। जरूरत पड़ने पर कवच ऑटोमैटिक तरीके से ब्रेक भी लगाता है। जैसे ही उसे निर्धारित दूरी के भीतर उसी पटरी पर दूसरी ट्रेन के होने का सिग्नल मिलेगा, ब्रेक खुद लग जाएगा।
 
आधुनिकीकरण की महत्वाकांक्षी योजनाएं
 
सरकार अब और अधिक तेजी से डबल लाइन की योजना बना रही है। लगभग पूरे नेटवर्क को ब्रॉडगेज में बदलने की भी योजना है। साथ ही, सरकार उच्च शक्ति वाले लोकोमोटिव पेश कर सकती है और विद्युतीकरण परियोजनाओं को पूरा कर सकती है। इन सभी उपायों से भारतीय रेलवे की लाइन क्षमता में वृद्धि होने की उम्मीद है।
 
भारत ने हाईस्पीड 'वंदे भारत' ट्रेनें भी शुरू की हैं, जो अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस हैं। ये ट्रेनें तेज और अधिक सुविधाजनक यात्रा का अनुभव देती हैं। सरकार अगले 5 सालों में लगभग 400 वंदे भारत ट्रेनों को शुरू करने और 1950-60 के दशक में डिजाइन की गई पुरानी ट्रेनों को बदलने के लिए हाइड्रोजन से चलने वाली और पर्यावरण के अनुकूल ट्रेनों का निर्माण करने का इरादा भी रखती है।
 
आर्थिक विश्लेषक एमके वेणु सवाल करते हैं कि अगर मोदी सरकार ने पूंजीगत व्यय में अभूतपूर्व वृद्धि के साथ रेल नेटवर्क के आधुनिकीकरण और विस्तार में भारी वृद्धि की है तो क्या सुरक्षा में निवेश उसी अनुपात में बढ़ा है?

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