कोलकाता स्थित देश के पहले मेट्रो रेलवे के अधिकारियों ने अब हादसों पर अंकुश लगाने के लिए ऐसे यात्रियों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई करने का फैसला किया है जो गैरजिम्मेदाराना बर्ताव या हड़बड़ी दिखाते हैं।
मेट्रो रेलवे में सफर करने वाले गैर-जिम्मेदार या हड़बड़ी दिखाने वाले यात्रियों की अब खैर नहीं है। बीते शनिवार को कोलकाता की मेट्रो ट्रेन के एक कोच में एक यात्री का हाथ फंस जाने की वजह से उसकी मौत हो गई थी। लेकिन अब मेट्रो रेलवे के दरवाजों के बंद होने के दौरान बाधा पहुंचाने वाले यात्रियों को पांच सौ से एक हजार रुपए तक जुर्माना भरने के अलावा छह महीने तक हवालात की हवा भी खानी पड़ सकती है।
रेलवे अधिनियम के दुर्घटना के केवल तीन दिन बाद से ही इस प्रावधान को लागू कर दिया गया है और इसी दिन ऐसे एक यात्री से इसके लिए पांच सौ रुपए का जुमार्ना तो वसूला ही गया, उसे माफी भी मांगनी पड़ी। दरअसल, दरवाजों में सेंसर लगे होने की वजह से किसी चीज से टकराने के बाद दरवाजे दोबारा खुल जाते हैं। कई यात्री इसी का लाभ उठा कर चढ़ने के लिए दरवाजे बंद होते समय उसके बीच हाथ, पांव या बैग फंसा देते हैं।
ऐसे हादसे में गई जान
देश में मेट्रो रेलवे में अपनी किस्म के पहले हादसे में सजल कांजीलाल (66 वर्ष) नामक एक यात्री का हाथ एक कोच के दरवाजों के बीच फंस गया था। तकनीक के हिसाब से दरवाजों में लगे सेंसर के चलते उनको दोबारा खुल जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ट्रेन के गार्ड और ड्राइवर के अलावा स्टेशन पर तैनात सुरक्षाकर्मी भी उस यात्री को नहीं देख सके। ट्रेन उसी हालत में चल दी। सजल का शरीर दरवाजे के बाहर था। कोच के भीतर यात्रियों के शोर मचाने और आपात बटन दबाने के बावजूद ट्रेन उस यात्री को घसीटते हुए लगभग 60 मीटर तक आगे बढ़ गई। इसी दौरान प्लेटफार्म के किनारे लगी रेलिंग से टकरा कर वह यात्री उस तीसरी पटरी पर गिर गया जिसमें साढ़े सात वोल्ट का डीसी करेंट होता है। इससे सजल की मौके पर ही मौत हो गई। बाद में ट्रेन को खाली कराया गया लेकिन यात्रियों ने स्टेशन पर काफी हंगामा मचाया।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस हादसे को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए सजल के परिजनों को आर्थिक सहायता देने और परिवार के एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी देने का एलान किया है। लापरवाही के मामले में मेट्रो रेलवे प्रबंधन के खिलाफ एक मामला भी दर्ज किया गया है। फिलहाल मेट्रो रेलवे के सुरक्षा अधिकारी बीते सप्ताह की घटना की जांच कर रहे हैं। यात्रियों का आरोप है कि उस ट्रेन में दरवाजे का सेंसर काम नहीं कर रहा था। नतीजतन दरवाजे दोबारा नहीं खुले। यह हालत तब हुई जबकि वह ट्रेन कुछ दिनों पहले ही चेन्नई स्थित इंडीग्रल कोच फैक्टरी से बन कर यहां आई थी और तमाम परीक्षाणों के बाद उसे पटरी पर उतारा गया था। दूसरी ओर, मेट्रो रेलवे के अधिकारियों की दलील है कि उस यात्री की कलाई नहीं बल्कि अंगुली दरवाजे में फंसी थी। दरवाजों के बीच 15 मिमी से कम गैप होने की स्थिति में सेंसर काम नहीं कर पाता।
जुर्माना व सजा
देश में अपने किस्म के इस पहले हादसे के बाद मेट्रो रेलवे की तकनीक पर भी सवाल खड़े हुए हैं। अब मेट्रो रेलवे ने ऐसे यात्रियों पर जुर्माना लगाने और जेल की सजा देने का फैसला किया है। इसके अलावा मोटरमैन के केबिन के बाहर एक शीशा लगाने का भी फैसला किया गया है ताकि वह यह देख सके कि कोई यात्री दरवाजे में तो नहीं फंसा है। इसके साथ ही मेट्रो स्टेशनों पर तैनात रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) के जवानों के अलावा स्टेशन मैनेजर के कक्ष में लगे सीसीटीवी कैमरों के जरिए ऐसे यात्रियों पर निगाह रखी जाएगी जो हाथ, पैर या बैग फंसा कर मेट्रो के दरवाजों को बंद होने से रोक देते हैं।
मेट्रो रेलवे की मुख्य जनसंपर्क अधिकारी इंद्राणी बनर्जी बताती हैं, "हादसों को रोकने का यह एकमात्र उपाय है। हमने रेलवे अधिनियम की धारा 146 को कड़ाई से लागू करने का फैसला किया है। दोषी यात्रियों को कितना जुर्माना भरना होगा, इसका फैसला मौके पर मौजूद रेलवे के अधिकारी करेंगे।" वह बताती हैं कि अगर कोई यात्री बंद होते दरवाजों को खोलने के प्रयास में अपने हाथ और पैर बीचे में फंसा देता है तो इसका मतलब यह है कि वह अपनी जान तो खतरे में डाल ही रहा है, ट्रेन के चलने में भी बाधा पहुंचा रहा है। वैसी स्थिति में उसे एक हजार का जुर्माना भरने के अलावा छह महीने जेल की सजा भी काटनी पड़ सकती है।
मेट्रो रेलवे के सूत्रों का कहना है कि ताजा हादसे से रेलवे की साख पर बट्टा लगा है। इसलिए वह अपनी छवि सुधारने की कवायद के तहत कई कदम उठा रही है। इसके तहत आगे चल कर जुर्माना भरे वाले यात्रियों की तस्वीरें भी विभिन्न स्टेशनों पर लगाई जाएंगी। कोलकाता मुख्यालय वाले पूर्व व दक्षिण पूर्व रेलवे के अधिकारियों ने भी मेट्रो रेलवे प्रबंधन के इस फैसले की सराहना करते हुए कहा है कि बंगाल में ऐसी घटनाएं सबसे ज्यादा होती हैं। ऐसे में रेलवे अधिनियम पर कड़ाई से अमल कर कई हादसे रोके जा सकते हैं।
कई गैर-सरकारी संगठनों ने भी मेट्रो रेलवे के इस फैसले की सराहना की है लेकिन साथ ही कहा है कि रेलवे को ट्रेनों के सही समय पर संचालन पर ध्यान देना चाहिए। एक ऐसे संगठन के सचिव उपेंद्रनाथ घोराई कहते हैं, "मेट्रो ट्रेनें अगर समय पर चलें तो उनमें भारी भीड़ नहीं होगी। लेकिन इनके अक्सर लेट चलने की वजह से लोग हड़बड़ी में ट्रेन में चढ़ने का प्रयास करते हैं। इससे अक्सर कुछ लोगों के सामान दरवाजे के बीच फंस जाते हैं और हादसों को न्योता मिलता रहता है।"