पाकिस्तान में किस हाल में हैं बुद्ध?

Webdunia
शनिवार, 10 जून 2017 (11:49 IST)
पाकिस्तान के खैबर पख्तून ख्वाह प्रांत में जूलियां नामक जगह पर स्थित प्राचीन बौद्ध मठ और विश्वविद्यालय के अवशेषों को यूनेस्को ने विश्व विरासत घोषित किया हुआ है। यह जगह प्राचीन तक्षशिला विश्वविद्यालय से ज्यादा दूर नहीं है।
 
गंधारा सभ्यता
यह जगह खैबर पख्तून ख्वाह प्रांत के हरीपुर जिले में पड़ती है जहां प्राचीन बौद्ध मठ और विश्वविद्यालय के अवशेष मौजूद हैं। पहाड़ी पर स्थित गंधारा सभ्यता की इस ऐतिहासिक धरोहर का कालखंड 1500 ईसापूर्व से लेकर पांचवी शताब्दी तक माना जाता है।
 
विश्व विरासत
पाकिस्तान में विभिन्न सभ्यताओं से जुड़े कई स्थानों को यूनेस्को ने अपनी विश्व धरोहरों की सूची में शामिल किया है। इन्हीं में तक्षशिला भी शामिल है जिसे एक स्थान के रूप में नहीं बल्कि एक विशाल परिसर के रूप में सूची में शामिल किया गया था। जूलियां का बौद्ध मठ भी इसी परिसर का हिस्सा है।
भिक्षु छात्रों के कमरे
इस प्राचीन बौद्ध मठ और विश्वविद्यालय की इमारत में ऐसे पत्थरों और मिट्टी से बनाये गये दर्जनों छोटे कमरे शामिल हैं। आज से 16-17 सदी पहले धर्म, दर्शन और अध्यात्म की शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र यहां रहते थे। इन कमरों की छतें अब नहीं बचीं लेकिन दीवारें मजबूती से खड़ी हैं।
 
मठ का मुख्य स्तूप
जूलियां मठ में छात्रों के कमरों और उनके नहाने के लिए बनाये गये तालाब से कुछ दूर इस विश्वविद्यालय का एक केंद्रीय स्तूप था। पिछले करीब डेढ़-दो हजार साल के दौरान इस केंद्रीय स्तूप को तो बहुत नुकसान पहुंचा लेकिन आसपास बनाए गए 21 छोटे स्तूप अब भी काफी बेहतर स्थिति में हैं।
 
इक्कीस सहायक स्तूप
सहायक स्तूप मुख्य स्तूप के बाद वहां बनाये गये थे। पुरातत्व विभाग ने मौसमी प्रभाव से मठ को सुरक्षित करने के लिए एक छत बनायी है। इन अवशेषों पर बनायी बुद्ध की कई छोटी-बड़ी छवियां और प्रतिमा आज भी अपना अस्तित्व बनाये हुए हैं।
मिट्टी और पत्थरों से निर्माण
करीब दो हजार साल पहले सिर्फ पत्थरों और मिट्टी से इन स्तूपों का निर्माण इस तरह किया गया कि ये कई विनाशकारी भूकंप और सदियों के उतार चढ़ाव के बाद भी हमारे सामने मौजूद हैं। पत्थरों के चौकोर ढेर पर मिट्टी के लेप के बाद हाथ से बुद्ध की मूर्तियां बनायी गयी हैं।
 
ऊपरी मंजिल पर जाने वाली सीढ़ियों
एक विशेष निर्माण शैली के साथ और बड़े आनुपातिक ढंग से दूसरी या तीसरी सदी के बाद बनी ये सीढ़ियों जूलियां मठ और विश्वविद्यालय की सबसे ऊपरी मंजिल तक जाती हैं जहां दायें और बायें दोनों तरफ प्रार्थना के लिए बरामदे मौजूद हैं।
 
दान में मिली प्रतिमा
मठ में बुद्ध की एक ऐसी विशेष मूर्ति भी है, जिसमें उन्हें ध्यान की मुद्रा में बैठे दिखाया गया है। इस मूर्ति पर उस व्यक्ति का नाम भी लिखा है जिसने उस वक्त इसे मठ को दान दिया था। यह नाम 'बुद्ध मित्र धर्म आनंद' है।
सबसे अच्छी अवस्था वाली मूर्तियां
यहां आप एक ऐसे स्तूप देख सकते हैं जिस पर अंकित मूर्तियां लगभग समूची अवस्था में मौजूद हैं। इस तस्वीर में दिखने वाले 45 वर्षीय रफाकत बेग एक साइट अटेंडेंट हैं, जो 28 वर्षों से यहां सरकारी कर्मचारी के रूप में काम कर रहे हैं और पर्यटकों के लिए गाइड का काम भी करते हैं।
 
छात्रों के मिलने की जगह
यह जगह छात्रों के जमा होने की जगह थी, जहां हर रोज वे शिक्षा के लिए इकट्ठा होते थे। यह खुला बरामदा काफी अच्छी स्थिति में है लेकिन अगर यहां लगे पुरातत्व विभाग के टूटे बोर्ड को देखें तो अहसास होता है पाकिस्तान में इस विश्व सांस्कृतिक विरासत का ध्यान और बेहतर तरीके से रखे जाने की जरूरत है।
 
ड्रेनेज सिस्टम
इस मठ में रहने वाले बौद्ध श्रद्धालु करीब दो हजार साल पहले इस जगह को खाना पकाने और भोजन के बर्तन धोने के लिए इस्तेमाल किया करते थे। इससे जुड़ा एक रसोईघर था, जिसके साथ ही प्राचार्य के रहने का कक्ष होता था।
 
चक्की
यह है मठ में रहने वाले लोगों की चक्की, जिससे अनाज पीस कर रोटी के लिए आटा बनाया जाता था। दस्तावेजों के अनुसार जूलियां को इसका वर्तमान नाम ब्रिटिश औपनिवेशिक युग में दिया गया था, जब इस क्षेत्र में पुरातात्विक अंग्रेज विशेषज्ञों ने खुदाई की थी।
 
युग प्रवर्तक बुद्ध
यह "हीलिंग बुद्धा" की प्रतिमा है, जो दुनिया भर में मशहूर है। यहां आने वाले श्रद्धालु और स्थानीय छात्र इस प्रतिमा में बने छेद में अपनी दाहिने हाथ की तर्जनी ऊंगली डाल कर अपने बीमार प्रियजनों के ठीक होने की प्रार्थना करते हैं।
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