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पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली क्यों नहीं अपना पा रहे भारतीय

आम लोगों और छोटे व्यवसायों के लिए पर्यावरण अनुकूल विकल्पों को चुनना खर्चीला होता है। ऐसे में बुनियादी ढांचे में बदलाव करके और ऊर्जा के बेहतर इस्तेमाल के जरिए प्रदूषण कम किया जा सकता है।

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DW

, शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2025 (07:47 IST)
लगभग चार साल पहले भारत सरकार ने एक अभियान शुरू किया था जिसका उद्देश्य लोगों को पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करना था। जैसे, कार या बाइक की बजाय साइकल का इस्तेमाल करना और प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करना। इसे ‘लाइफस्टाइल फॉर  एनवायरनमेंट इनिशिएटिव (मिशन लाइफ) नाम दिया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कई वरिष्ठ मंत्रियों ने तब इसे देश के जलवायु लक्ष्यों की दिशा में एक बड़ा कदम बताया था और इसे बढ़ावा देने की कोशिश की थी।
 
हालांकि, अब इस अभियान की उतनी चर्चा नहीं होती है। पिछले दिनों आए भारत के आम बजट में भी इसका कोई जिक्र नहीं हुआ और ना इसके लिए फंड आवंटित किया गया। सरकार ने इस अभियान के लिए अलग से एक वेबसाइट बनाई थी जिस पर हर महीने मिशन की प्रगति से जुड़े अपडेट आया करते थे। लेकिन मार्च 2024 से इस वेबसाइट पर कोई अपडेट नहीं आया है। न्यूज एजेंसी एपी ने भारत के पर्यावरण मंत्रालय से मिशन लाइफ के बारे में सवाल पूछे थे लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
 
विशेषज्ञ कहते हैं कि इससे पता चलता है कि लोगों के रोजमर्रा के जीवन में बड़े बदलाव लाना कितना मुश्किल है, खासकर कोई आर्थिक प्रोत्साहन दिए बिना। लेकिन इससे मिले सबक भविष्य के लिए ऐसी योजनाएं बनाने में मदद कर सकते हैं जिनसे जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा अपनी प्रदूषण फैलाने वाली आदतों को छोड़ने के लिए प्रेरित हो सके।
 
क्यों कठिन है पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों को चुनना
लता गिरीश बेंगलुरु में एक कंपनी चलाती हैं, जो औद्योगिक स्तर के फूड स्टोरेज और रेफ्रिजरेशन के लिए प्लास्टिक की पैकेजिंग बनाती है। वह कहती हैं कि उनका ध्यान यह सुनिश्चित करने पर है कि उनका व्यवसाय चलता रहे, ना कि इसके उत्सर्जनों पर। वह बताती हैं, "कई छोटे व्यवसाय मालिकों के पास इतने संसाधन नहीं होते कि वे पर्यावरण के बारे में सोच सकें। हमारे क्षेत्र में किसी से भी पूछ लीजिए, मुझे भरोसा है कि उन्हें मिशन लाइफ और ऐसी किसी दूसरी पहल के बारे में जानकारी नहीं होगी।”
 
अगर वे अपने व्यवसाय में अधिक पर्यावरण-अनुकूल कच्चे माल का इस्तेमाल करेंगी तो उनके उत्पादों की कीमतें बढ़ जाएंगी। ऐसे में जो ग्राहक कम कीमत में सामान खरीदना चाहते हैं, वे उनसे दूर चले जाएंगे। गिरीश कहती हैं, "वे (ग्राहक) सिर्फ यह देखते हैं कि आप कितने प्रतियोगी हैं। वे यह नहीं देखते हैं कि आप पर्यावरण और सस्टेनिबिलिटी के लिए क्या कर रहे हैं या क्या नहीं कर रहे हैं।”
 
बुनियादी ढांचे में बदलाव करने की जरूरत
बेंगलुरु के सुनील मैसूर सस्टेनेबिलिटी के समाधान देने वाली कंपनी हिनरेन इंजीनियरिंग के सीईओ हैं। उनका मानना है कि जब तक एक बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा है, तब तक जलवायु अनुकूल बदलाव किए जा सकते हैं। वह बताते हैं, "अब मेरा घर ग्रिड से पूरी तरह अलग हो चुका है। हम अपने सारे कचरे का इस्तेमाल ऊर्जा पैदा करने के लिए करते हैं। घर की छत पर बने बगीचे से हमें सब्जियां मिल जाती हैं।” इसके अलावा, वह बारिश के पानी को भी इकट्ठा करते हैं, यानी उनका घर बेंगलुरू में बढ़ते पानी के संकट से भी सुरक्षित है।
 
वहीं, संजीव पोहित का मानना है कि मिशन लाइफ को सफल बनाने के लिए बुनियादी ढांचे में बड़े बदलाव करने की जरूरत है। संजीव नई दिल्ली स्थित ‘नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च' में सीनियर फैलो हैं। उन्होंने कहा, ‘समस्या की एक वजह यह है कि ऐसे प्रोजेक्ट जो लोगों की आदतें बदल सकते हैं, वे मिशन लाइफ का हिस्सा नहीं थे। जैसे, एक शहर के बुनियादी ढांचे में बदलाव करना ताकि लोगों के लिए निजी गाड़ियों की बजाय इलेक्ट्रिक ट्राम या ट्रेन से सफर करना ज्यादा आसान हो।”
 
क्या ऊर्जा दक्षता हासिल करना है एक समाधान
लोगों की जीवनशैली और आदतों को बदले बिना उत्सर्जनों में कमी लाने का एक तरीका यह है कि उनकी मौजूदा आदतों से होने वाले प्रदूषण को कम कर दिया जाए। मसलन, बिजली से चलने वाले हर उपकरण में यह संभावना रहती है कि वह बिजली का और बेहतर इस्तेमाल कर पाए। यानी पहले से कम ऊर्जा में काम कर पाए। यह बात छोटे बल्ब से लेकर बड़े रेफ्रिजरेटर तक पर लागू होती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि थोड़े से अतिरिक्त खर्च की मदद से कार्बन प्रदूषण को कम करने का यह एक अच्छा तरीका हो सकता है।
 
हालांकि, आम बजट में ऊर्जा सरंक्षण योजनाओं या भारत की ऊर्जा प्रणालियों को ज्यादा कुशल बनाने का काम करने वाली संस्थाओं के लिए कोई अतिरिक्त फंड आवंटित नहीं किया गया है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक, साल 2023 में वैश्विक ऊर्जा दक्षता में करीब एक फीसदी का ही सुधार हुआ। इसी साल, देशों ने इस दशक के अंत तक ऊर्जा दक्षता को दोगुना करने पर सहमति जताई।
 
क्या व्यक्तिगत आदतें बदलने से पड़ता है कोई प्रभाव
दुनियाभर में हर साल करीब 4,100 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जित होता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसे में बड़े प्रदूषकों के साथ-साथ व्यक्तिगत उत्सर्जन पर भी बात करना जरूरी है। बेंगलुरु के ‘सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस' की राम्या नटराजन के मुताबिक, लोगों के व्यवहार को बदलना मुश्किल और पेचीदा है। लेकिन नटराजन मानती हैं कि लोगों को उनके फैसलों के बारे में जागरूक करने से प्रभाव पड़ सकता है, जैसा कि मिशन लाइफ ने लक्ष्य रखा है।
 
राम्या कहती हैं, "यह एक दूरदर्शी कार्यक्रम है और एक तरह का सुझाव है जिसे हर कोई अपना सकता है और उसका पालन कर सकता है। मुझे लगता है कि इस बारे में सोचने के लिए प्रेरित करने में यह सफल रहा है।”
 
वहीं, सस्टेनेबिलिटी सॉल्युशंस के सीईओ सुनील के मुताबिक, जीवन जीने के लिए ज्यादा जलवायु-अनुकूल तरीकों को ढूंढ़ना सिर्फ उत्सर्जनों को कम करने के बारे में नहीं है। वह कहते हैं, "मेरे लिए यह सस्टेनेबल होने की खुशी है। मुझे पता है कि सिर्फ मेरे इन चीजों को करने से कार्बन उत्सर्जन में कोई बड़ी कमी नहीं आएगी लेकिन आप नहीं जानते कि कब एक चिंगारी आग में बदल सकती है।” यानी उन्हें उम्मीद है कि एक दिन उनके प्रयास एक अभियान का रूप ले सकते हैं।
(एएस/वीके) (एपी)

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