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ट्रंप के शुल्क के बाद नए साझेदारों की तलाश में चीन और यूरोप

अमेरिका की ओर से लगाए गए भारी शुल्क के बाद चीन और यूरोपीय संघ नए कारोबारी साझेदारों की तलाश में जुटे हैं। हालांकि इस बीच यूरोप में सस्ते सामान डंप किए जाने का भी खतरा मंडरा रहा है।

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DW

, सोमवार, 14 अप्रैल 2025 (09:12 IST)
-निक मार्टिन
 
अमेरिका की ओर से लगाए गए भारी शुल्क के बाद चीन और यूरोपीय संघ नए कारोबारी साझेदारों की तलाश में जुटे हैं। हालांकि इस बीच यूरोप में सस्ते सामान डंप किए जाने का भी खतरा मंडरा रहा है। 'जोखिम घटाओ, विविधता बढ़ाओ और व्यापार की रणनीति बदलो।' यह मंत्र कभी वैश्विक व्यापार पर चीन के बढ़ते दबदबे को रोकने के लिए इस्तेमाल होता था, अब यह अमेरिका के लिए लागू हो रहा है।
 
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुल्क लगाकर ऑस्ट्रेलिया से लेकर ब्राजील तक के वित्तीय बाजारों में हलचल मचा दी है। उन्होंने चीन निर्मित वस्तुओं पर शुल्क को 125 फीसदी तक बढ़ा दिया है। यह साल की शुरुआत में लगाए गए 20 फीसदी के अतिरिक्त है। गुरुवार को, व्हाइट हाउस ने साफ किया कि चीनी उत्पादकों को अमेरिका में आयात पर कुल 145 फीसदी शुल्क देना होगा, क्योंकि नया 125 फीसदी का शुल्क, साल की शुरुआत में लगाए गए 20 फीसदी शुल्क के अतिरिक्त है।
 
चूंकि कई चीनी सामान खास तौर पर अमेरिकी बाजार के लिए बनाए जाते हैं, इसलिए अर्थशास्त्रियों को चिंता है कि चीन उन उत्पादों को घरेलू उपभोक्ताओं तक पहुंचाने में मुश्किलों का सामना करेगा। ऐसे में चीन अपनी निर्यात रणनीति पर फिर से विचार कर रहा है ताकि अमेरिका को किए जाने वाले निर्यात कम होने के झटके से उबरने के लिए वह अन्य वैश्विक भागीदारों को प्राथमिकता दे सके।
 
चीन पर केंद्रित लंदन स्थित शोध संस्था एनोडो इकोनॉमिक्स की संस्थापक और मुख्य अर्थशास्त्री डायना चोयलेवा का मानना है कि बीजिंग अपने क्षेत्रीय पड़ोसियों के साथ निर्यात बढ़ाने पर विचार करेगा जिनमें से कुछ के साथ उसके ऐतिहासिक रूप से तनावपूर्ण संबंध रहे हैं।
 
पुराने दुश्मनों के साथ संबंध सुधारने की कोशिश में चीन
 
चोयलेवा ने डीडब्ल्यू से कहा, 'पिछले 6 साल में पहली बार, हाल ही में जापान और दक्षिण कोरिया के साथ बीजिंग की आर्थिक बातचीत फिर से शुरू हुई है। इससे पता चलता है कि इस क्षेत्र की बड़ी ताकतें अमेरिकी अनिश्चितता के जवाब में अपने रिश्तों पर फिर से विचार कर रही हैं। हालांकि दक्षिण कोरिया ने शुल्क के लिए 'संयुक्त प्रतिक्रिया' पर चीनी सरकारी मीडिया के दावों को खारिज कर दिया, लेकिन वर्षों के तनावपूर्ण संबंधों के बाद त्रिपक्षीय आर्थिक सहयोग का सिर्फ फिर से शुरू होना भी एक रणनीतिक बदलाव का संकेत देता है।'
 
पिछले दो दशकों में, चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया ने अपने व्यापारिक संबंधों को काफी मजबूत किया है। चीनी सरकार के आंकड़ों के अनुसार, 2023 में चीन और आसियान देशों के बीच कुल व्यापार करीब 872 अरब डॉलर तक पहुंच गया। यह आंकड़ा अब और बढ़ने वाला है, क्योंकि चीनी कंपनियां प्रभावी रूप से अमेरिकी बाजार से बाहर हो गई हैं।
 
सिंगापुर स्थित हिनरिच फाउंडेशन की व्यापार नीति प्रमुख डेबोरा एल्म्स ने डीडब्ल्यू को बताया, 'चीनी निर्माता दक्षिण-पूर्व एशिया में अवसरों की तलाश करेंगे जिन पर उन्होंने पहले शायद ज्यादा समय, प्रयास और पैसा नहीं लगाया होगा, क्योंकि उनके पास एक आकर्षक अमेरिकी बाजार था जहां उनका सारा उत्पादन खप जाता था।
 
यूरोप को भी व्यापार में विविधता लाने की जरूरत
 
अमेरिका की ओर से लगाए गए नए पारस्परिक शुल्कों पर फिलहाल 90 दिनों के लिए रोक लगा दी गई है, लेकिन इसके बावजूद अमेरिका को 416 अरब डॉलर मूल्य के निर्यात पर यूरोपीय संघ को 20 फीसदी का शुल्क चुकाना पड़ रहा है। ब्रसेल्स में नीति निर्माता चीन की तरह ही प्रतिक्रिया पर विचार कर रहे हैं। यूरोपीय संघ का कहना है कि वह अमेरिकी संरक्षणवाद का मुकाबला करने के लिए इंडो-पैसिफिक और ग्लोबल साउथ के देशों तक पहुंचने की योजना बना रहा है।
 
इस सप्ताह वियतनाम की तीन दिवसीय यात्रा के दौरान, स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज ने जोर देकर कहा कि यूरोप नए बाजारों की खोज करे। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ अधिक व्यापार के लिए, अपने देश और यूरोप को खोलने के लिए 'दृढ़ता से प्रतिबद्ध' है।
 
हालांकि यूरोपीय पॉलिसी सेंटर (ईपीसी) के नीति विश्लेषक वार्ग फोल्कमान ने चेतावनी दी कि यूरोप को अटलांटिक पार के निर्यात की भरपाई दूसरे बाजारों से करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था 'बड़ी और समृद्ध' दोनों है।
 
फोल्कमान ने नए व्यापार सौदों के लिए यूरोपीय संघ के सदस्यों के बीच 'बहुत ज्यादा प्रतिरोध' का जिक्र किया। इसमें उन्होंने दक्षिण अमेरिकी क्षेत्रीय ब्लॉक मर्कोसुर के साथ यूरोपीय संघ के व्यापार सौदे के दौरान, ब्राजील और अर्जेंटीना के लिए अपने कृषि क्षेत्र को खोलने को लेकर फ्रांस की सतर्कता पर जोर दिया। इस सौदे पर बातचीत करने में 25 साल लग गए और अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हुई है। उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, 'व्यापार सौदे विवादास्पद हैं। आज की जरूरत के बावजूद नए सौदों को लागू करना संभवतः काफी कठिन होगा।'
 
यूरोपीय संघ और चीन द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने का प्रयास कर सकते हैं। इसके बावजूद, अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं को यह भी डर है कि यूरोप को दोहरी मार झेलनी पड़ सकती है। एक तरफ अमेरिका की ओर से लगाया गया काफी ज्यादा शुल्क है तो दूसरी ओर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन के साथ नई व्यापारिक प्रतिस्पर्धा शुरू हो जाएगी।
 
चीन की काफी ज्यादा आपूर्ति यूरोपीय प्रतिद्वंद्वियों के लिए खतरा
 
वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक 'सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक ऐंड इंटरनेशनल स्टडीज' (सीएसआईएस) ने मंगलवार को प्रकाशित एक टिप्पणी में लिखा कि अमेरिका द्वारा चीन पर लगाए गए शुल्क की वजह से ऐसा हो सकता है कि चीन अपने माल को अब यूरोपीय यूनियन की तरफ भेजना शुरू कर दे। इससे यूरोप के उत्पादकों पर और ज्यादा दबाव पड़ेगा और हो सकता है कि ब्रसेल्स से व्यापार को बचाने के लिए संरक्षणवादी कदम उठाने की मांग उठने लगे।
 
यूरोपीय संघ लंबे समय से इस बात पर चिंता जता रहा है कि चीन की सरकार अपने उत्पादकों को भारी सब्सिडी देती है। इसकी वजह से वे बहुत सस्ते दामों पर सामान यूरोपीय बाजार में बेचते हैं यानी यूरोपीय बाजार में सस्ते सामान को 'डंप' करते हैं। इन सब्सिडियों के साथ-साथ सस्ती मजदूरी और बड़े पैमाने पर उत्पादन की वजह से यूरोप की कंपनियों पर भारी दबाव पड़ा है। इसका नतीजा यह हुआ कि कई कंपनियाँ बंद हो गईं और बहुत सारे लोगों की नौकरियां चली गईं।
 
इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) सबसे हालिया उदाहरण हैं। सरकारी अनुदान, टैक्स में छूट, और सस्ते कर्ज की बदौलत बीवाईडी, नियो, और एक्सपेंग जैसे चीनी ईवी ब्रांड अब ईयू के प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ते हुए आक्रामक रूप से यूरोपीय बाजारों में प्रवेश कर रहे हैं। यूरोप की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री इस समय बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है। इस कारण कई कारखानों के बंद होने, कुछ फैक्ट्रियों के छोटे होने और हजारों लोगों की नौकरियां जाने का खतरा है, खासकर जर्मनी में।
 
अमेरिका ने चीन निर्मित ईवी पर 100 फीसदी का शुल्क लगाया है जिससे चीन के कार निर्माता अमेरिकी बाजार से बाहर हो गए हैं। वहीं, यूरोपीय संघ का शुल्क चीनी कार निर्माता के हिसाब से अलग-अलग है। यह अधिकतम शुल्क 35।3 फीसदी है। जबकि, बीवाईडी पर सिर्फ 17 फीसदी शुल्क लगाया जाता है।
 
हाइनरिष फाउंडेशन की एल्म्स का मानना है कि एशिया से दुनिया के बाकी हिस्सों में सस्ते सामानों की 'शुरुआती बाढ़' आ सकती है, क्योंकि उत्पादक 'उत्पादों के पहाड़ पर बैठे हैं' यानी उन्होंने काफी ज्यादा उत्पादन कर रखा है। उन्होंने कहा, 'हालांकि वे ऐसे सामानों का उत्पादन जारी नहीं रखेंगे जिससे उन्हें फायदा नहीं होगा। इसलिए, चीनी कंपनियां जल्द ही दूसरे उत्पाद बनाने की ओर रूख करेंगी। ऐसा न करने पर, वे कारोबार से बाहर हो जाएंगी।'
 
जल्दी सचेत हो जाने पर 'डंपिंग ग्राउंड' बनने से बच सकता है यूरोप
 
चीन में जर्मन औद्योगिक दिग्गज 'बीएएसएफ' के पूर्व प्रमुख यॉर्ग वुटके ने चेतावनी दी कि चीन की ओर से 'ओवरकैपेसिटी सुनामी' यानी अतिरिक्त उत्पादन की लहर यूरोप की ओर आ रही है। उन्होंने उम्मीद जताई कि इसकी वजह से ईयू कोई नया व्यापारिक प्रतिबंध नहीं लगाएगा। उन्होंने ईयू और चीन के बीच बेहतर 'बातचीत और भरोसे' की जरूरत बताई ताकि यूरोप में नया सस्ता सामान डंप न किया जाए।
 
यूरोपीय औद्योगिक नीति के विशेषज्ञ फोल्कमान को संदेह है कि ईयू व्यापार में होने वाली गड़बड़ियों को बिना विरोध के स्वीकार करेगा। उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, 'यूरोपीय आयोग ने संकेत दिया है कि वह आयात पर कड़ी नजर रखेगा। अगर चीन या कहीं और से आयात में तेजी से वृद्धि होती है तो वह कार्रवाई करेगा।'
 
2023 में ईयू ने एक इंपोर्ट निगरानी टास्क फोर्स (आयात निगरानी कार्य बल) बनाने की योजना की घोषणा की थी जिसका मकसद यह था कि अगर किसी चीज का आयात अचानक बहुत ज्यादा बढ़ जाए और इससे यूरोप के उद्योग को खतरा हो तो उस पर नजर रखी जा सके। यह अर्ली वॉर्निंग सिस्टम (चेतावनी देने वाली व्यवस्था) इसलिए बनाया गया ताकि चीन से जुड़े जोखिमों को कम किया जा सके, खासकर जब भू-राजनीतिक तनाव और सस्ते सामान की डंपिंग को लेकर चिंता बढ़ रही है।
 
यह चिंता भी है कि दूसरे एशियाई देश और अमेरिका भी अपने बचे हुए सामान को सस्ते दामों पर ईयू में बेच सकते हैं। यह टास्क फोर्स ईयू को ऐसी स्थिति में तेजी से कार्रवाई करने में मदद कर सकता है। जैसे, सस्ते सामान की जांच करना (एंटी-डंपिंग जांच), शुल्क लगाना या कुछ समय के लिए आयात पर रोक लगाना।
 
हालांकि ईयू को इस बात के लिए आलोचना झेलनी पड़ सकती है कि वह ट्रंप की तरह संरक्षणवादी नीतियां अपना रहा है। यह ईयू की लंबे समय से चली आ रही मुक्त व्यापार की सोच से हटने जैसा होगा जिससे वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन के नियम कमजोर हो सकते हैं और दुनिया भर में व्यापार तनाव ज्यादा बढ़ सकता है।

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