विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि एक ही टीके की दो खुराक लेने की जगह दो अलग-अलग टीकों की खुराक लेने से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली बेहतर होती है। साथ ही, एंटीबॉडी भी ज्यादा विकसित होते हैं।
इस साल 7 दिसंबर को यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी और यूरोपियन सेंटर फॉर डिजीज प्रिवेंशन ऐंड कंट्रोल ने स्पष्ट तौर पर कहा कि कोरोना वायरस से बचने के लिए मिक्स ऐंड मैच टीकाकरण की जरूरत है। इसमें कोविड-19 से बचाव के लिए तैयार किए गए वेक्टर आधारित और एमआरएनए दोनों तरह के टीके शामिल हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो मेडिकल एजेंसी ने एक ही टीके की दो खुराक लेने की जगह, दो अलग-अलग टीकों की दो खुराक लेने की सिफारिश की है।
यह सिफारिश तब की गई है जब इंग्लैंड में ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के वायरोलॉजिस्ट मैथ्यू स्नेप ने कहा कि मिक्स ऐंड मैच टीकाकरण का सकारात्मक परिणाम दिख रहा है। स्नेप इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता हैं। उन्होंने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बात करते हुए इन परिणामों के बारे में बताया।
मिक्स एंड मैच वैक्सीन की शुरुआत कैसे हुई
यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी से मंजूरी मिलने के बाद इस साल जनवरी महीने में जर्मनी में सभी वयस्कों को कोविड-19 की एस्ट्राजेनेका वैक्सीन लगाई गई थी। हालांकि, टीकाकरण की स्टैंडिंग कमेटी ने अप्रैल में एस्ट्राजेनेका का इस्तेमाल 60 साल से ऊपर के लोगों तक ही सीमित रखने की सिफारिश की थी क्योंकि वैक्सीन लगने के बाद विशेष रूप से कुछ युवतियों के मस्तिष्क में खून का थक्का बनने का खतरा बढ़ गया था।
हालांकि, तब तक काफी संख्या में लोग एस्ट्राजेनेका की पहली खुराक ले चुके थे। इन लोगों को दूसरी खुराक बायोनटेक-फाइजर या मॉडर्ना वैक्सीन की दी गई। आज जर्मनी में हर उम्र के बालिगों को फिर से एस्ट्राजेनेका का वैक्सीन लग सकता है बशर्ते वैक्सीन लगवाने वाले व्यक्ति और डॉक्टर पहले से उस पर सहमत हों।
दो खुराकों पर अलग अलग स्टडी
इस साल जून महीने में ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने शुरुआती नतीजों की सफलता के बारे में बताया था। उन्होंने पाया था कि जिन रोगियों को पहली खुराक ऑक्सफर्ड-एस्ट्राजेनेका की लगी और चार सप्ताह बाद दूसरी खुराक बायोनटेक-फाइजर वैक्सीन की लगी, उनमें एस्ट्राजेनेका की दो खुराक लगाने वालों की तुलना में ज्यादा एंटीबॉडी विकसित हुईं।
कॉम-सीओवी परीक्षण के तौर पर ऑक्सफर्ड के शोधकर्ताओं ने 50 वर्ष से ज्यादा उम्र के 830 वॉलन्टियर को दो अलग-अलग वैक्सीन लगाए। इससे मिले नतीजों के मुताबिक, सबसे ज्यादा एंटीबॉडी उन लोगों में विकसित हुईं जिन्होंने बायोनटेक की दो खुराक ली थीं। इसके बाद, वे लोग थे जिन्होंने एक खुराक एस्ट्राजेनेका की ली थी और दूसरी बायोनटेक की। फिर वे लोग थे जिन्होंने एस्ट्राजेनेका की दो खुराक ली थीं।
बाल रोग विशेषज्ञ और वैक्सीनोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर और इस शोध का नेतृत्व करने वाले मैथ्यू स्नेप ने बीबीसी को बताया था कि कॉम-सीओवी के नतीजे कोरोना वायरस महामारी से लड़ने में एस्ट्राजेनेका की दो खुराक की अहमियत को कम नहीं आंक रहे हैं। उन्होंने कहा था, "दोनों वैक्सीन कोरोना के खिलाफ काफी कारगर हैं। ये डेल्टा वेरिएंट के प्रभाव को भी कम करती हैं। इसे लगवाने के बाद अस्पताल में भर्ती होने और गंभीर रूप से बीमार होने से बचा जा सकता है।"
पश्चिमी जर्मनी में स्थित जारलैंड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया है कि जिन लोगों को पहली खुराक एस्ट्राजेनेका की लगी थी और दूसरी बायोनटेक-फाइजर की, उनमें उन लोगों के मुकाबले ज्यादा प्रतिरोधक क्षमता देखी गई जिन्हें एक ही वैक्सीन की दो खुराक लगी थीं, चाहे वह एस्ट्राजेनेका की हो या बायोनटेक की। जारलैंड विश्वविद्यालय के नतीजों को दूसरे वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया और ये नतीजे जुलाई के आखिर में नेचर जर्नल में प्रकाशित भी हुए।
10 गुना ज्यादा एंटीबॉडी
जारलैंड के होम्बुर्ग विश्वविद्यालय के अस्पताल में 200 से ज्यादा लोगों ने इस परीक्षण में हिस्सा लिया था। उनमें से कुछ को एस्ट्राजेनेका की दो खुराक लगाई गईं और कुछ को बायोनटेक-फाइजर की। तीसरे समूह को पहले एस्ट्रजेनेका की खुराक लगाई गई और फिर बायोनटेक-फाइजर की। शोधकर्ताओं ने वैक्सीन की दूसरी खुराक लगाने के दो सप्ताह बाद सभी की जांच की। सभी की एंटीबॉडी की तुलना की गई।
जारलैंड विश्वविद्यालय में ट्रांसप्लांटेशन और इंफेक्शन इम्यूनोलॉजी की प्रोफेसर मार्टिना सेस्टेर ने बताया, "हमने परीक्षण में शामिल होने वाले लोगों में न सिर्फ कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ने वाली एंटीबॉडी की संख्या देखी, बल्कि यह भी देखा कि कथित न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी कितने प्रभावी थे। इसी से पता चलता है कि ये एंटीबॉडी कोरोना वायरस संक्रमण से हमारे शरीर बचाने में कितनी कारगर हैं।"
एंटीबॉडी विकसित होने के मामले में, बायोनटेक की दो खुराक के साथ-साथ एस्ट्राजेनेका-बायोनटेक की एक-एक खुराक, एस्ट्राजेनेका की दो खुराकों से बेहतर थीं। जिन लोगों ने दो अलग-अलग वैक्सीन की खुराक ली थीं, उनमें एस्ट्राजेनेके की दो खुराक लेने वालों की तुलना में 10 गुना ज्यादा एंटीबॉडी विकसित हुई। सेस्टेर ने बताया कि न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी को देखते हुए, दो अलग-अलग वैक्सीन की खुराक लेने वालों की स्थिति बायोनटेक की दो खुराक लेने वालों से थोड़ी बेहतर' थी। हालांकि, स्वास्थ्य अधिकारी आमतौर पर यह कहते हैं कि जिन वैक्सीन की दो खुराक लेनी होती हैं, उनमें दूसरी खुराक भी उसी वैक्सीन की लेनी चाहिए जिसकी पहली खुराक ली थी।
एंटीबॉडी में 'उल्लेखनीय' वृद्धि
स्पेन के कार्लोस- III हेल्थ इन्स्टीट्यूट में कॉम्बिवैक्स का परीक्षण किया गया था। इसमें कुल 663 लोग शामिल हुए थे। इस परीक्षण के नतीजे भी कुछ इसी तरह के हैं। इस परीक्षण की शुरुआती रिपोर्ट नेचर पत्रिका में छपी है। हालांकि, जारलैंड विश्वविद्यालय के नतीजों की तरह इसकी रिपोर्ट भी अभी फाइनल नहीं हुई है। नेचर पत्रिका में जो रिपोर्ट छपी है, उसमें अब तक तक के नतीजों की जानकारी दी गई है। अभी तक स्वतंत्र वैज्ञानिकों ने इस रिपोर्ट की जांच नहीं की है।
इस परीक्षण में शामिल दो तिहाई लोगों को पहली खुराक एस्ट्राजेनेका की लगाई गई और दूसरी बायोनटेक-फाइजर की। हालांकि, शुरुआती जांच के नतीजे आने तक एक-तिहाई लोगों को वैक्सीन की दूसरी खुराक नहीं लगी थी। बार्सिलोना में वालडेहेब्रॉन यूनिवर्सिटी अस्पताल में कॉम्बिवैक्स स्टडी की जांचकर्ता माग्डेलीना कहती हैं, "जिन लोगों ने पहली खुराक के बाद अलग वैक्सीन की दूसरी खुराक लगवाई उनके शरीर में तेजी से एंटीबॉडी विकसित हुईं। परीक्षण के दौरान देखा गया कि ये एंटीबॉडी सार्स-कोविड-2 के प्रभाव को निष्क्रिय करने में सक्षम थीं।"
नेचर पत्रिका में छपी रिपोर्ट में कनाडा के हैमिल्टन विश्वविद्यालय में इम्यूनोलॉजिस्ट चाऊ जिंग कहती हैं, "ऐसा लगता है कि बायोनटेक-फाइजर वैक्सीन की एक खुराक लेने के बाद, एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की एक खुराक लेने पर ज्यादा एंटीबॉडी विकसित होती हैं।" जिंग इस अध्ययन में शामिल नहीं थीं। वह कहती हैं, "एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की दूसरी खुराक लेने वाले लोगों की तुलना में यह वृद्धि और भी अधिक स्पष्ट दिखाई दी।"
हालांकि, ये नतीजे अंतिम नहीं हैं। एक समस्या यह है कि स्पेन के इस परीक्षण में उन लोगों को शामिल नहीं किया गया है कि जिन्होंने एक ही वैक्सीन की दोनों खुराक ली हैं। इसलिए, दोनों समूहों के बीच तुलना नहीं की जा सकती। अभी जर्मनी में जब तक कोई व्यक्ति एक वैक्सीन या दो अलग-अलग वैक्सीन की दो खुराक नहीं ले लेता, तब तक यह माना जाता है कि उसका टीकाकरण पूरा नहीं हुआ है। जर्मन सरकार पॉल एर्लिच इंस्टीट्यूट (पीईआई) के दिशा-निर्देशों का पालन करती है।