कोरोना काल : मरीजों के बीच भरोसा कायम करते डॉक्टर

DW
बुधवार, 17 जून 2020 (11:21 IST)
रिपोर्ट : आमिर अंसारी
 
कोरोना वायरस महामारी के बीच डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ बिना थके मरीजों की सेवा में लगे हुए हैं। घर पर उनका भी परिवार चिंतित रहता है लेकिन उनका कहना है कि वे भी सैनिक की तरह देश की सेवा में लगे हुए हैं।
 
भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत तो पहले से ही अच्छी नहीं थी, लेकिन कोरोना वायरस ने इस व्यवस्था को और हिलाकर रख दिया है। भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी मरीजों को कोरोना से बचाने के लिए ढाल बने हुए हैं। वे 12-12 घंटे काम करते हैं, परिवार से दूर रहते हैं और फिर क्वारंटीन में चले जाते हैं। उनकी जगह कोई और डॉक्टर ले लेता है।
ALSO READ: Corona से जंग : केजरीवाल की डॉक्टरों से अपील, फोन पर दें मुफ्त चिकित्सा परामर्श
यह सिलसिला बिना रुके पिछले 3 महीने से ऐसे ही चल रहा है। डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ के सामने केवल यही चुनौतियां ही नहीं हैं। पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) किट पहनना और उसे उतारना भी किसी चुनौती से कम नहीं है। पीपीई किट पहनने के दौरान न तो डॉक्टर और न ही स्वास्थ्यकर्मी टॉयलेट जा सकते हैं और न ही पानी पी सकते हैं।
 
राजस्थान के उदयपुर के आरएनटी मेडिकल कॉलेज में 16 से लेकर 31 मई तक कोरोना के लिए बने आईसीयू वार्ड के इंचार्ज रहे डॉ. नरेंद्र सिंह देवल डीडब्ल्यू से कहते हैं कि कोविड-19 न केवल मरीजों के लिए बल्कि डॉक्टरों के लिए भी एक नई बीमारी है। जब मेरी कोविड-19 के लिए ड्यूटी लगी तो उस वक्त इस अस्पताल में 300 के करीब कोरोना के मरीज थे। अस्पताल का आईसीयू भी पूरी तरह से भरा था। डॉ. देवल कहते हैं कि उस वक्त आसपास का इलाका कोरोना का हॉटस्पॉट बना हुआ था।
 
डॉ. देवल बताते हैं कि सामान्य ड्यूटी की तुलना में कोविड-19 की ड्यूटी बेहद अलग है, क्योंकि आपको इसमें पीपीई किट पहनना पड़ता है। आमतौर पर मरीज के साथ कोई-न-कोई तीमारदार होता है लेकिन कोविड-19 के केस में कोई नहीं होता है। मरीज भी आपसे ही अपनी इच्छा जाहिर करते हैं। लेकिन दवा के अलावा हमें मरीजों की इच्छाओं का भी ध्यान रखना पड़ता है, जैसे कि किसी ने बिस्किट खाने की मांग कर दी या फिर सेब। वे बताते हैं कि मरीजों की इच्छा को पूरा करने के लिए कई बार निजी तौर पर भी काम करना पड़ा।
ALSO READ: कोरोना काल में डॉक्टरों को नहीं मिला वेतन, सामूहिक इस्तीफे की चेतावनी
थकावट और तनावभरा काम
 
कोविड-19 के फैलने के साथ ही समाज में एक भय का माहौल है। लोगों के दिमाग में इस महामारी को लेकर पहले से ही कई चीजें चल रही हैं। ज्यादातर नकारात्मक ही हैं। डॉक्टर या स्वास्थ्यकर्मी ड्यूटी पर जाते हैं तो परिवार और शुभचिंतकों को कई तरह की चिंताएं होने लगती हैं।
 
कोविड-19 की ड्यूटी के दौरान डॉक्टरों को विशेष सुरक्षा कवच के साथ-साथ अपने सहयोगी, परिवार और शुभचिंतकों के बारे में भी सोचना पड़ता है। उन्हें यह सोचना पड़ता है कि कहीं उनकी एक गलती से संक्रमण न फैल जाए। उन्हें ड्यूटी के दौरान चौकस रहते हुए और पीपीई किट पहने हुए मरीजों की जांच करनी पड़ती है। दिमाग के किसी कोने में परिवार और बच्चों के बारे में भी कुछ-न-कुछ चलता रहता है।
 
दिल्ली के पास गुरुग्राम में मेदांता अस्पताल में इंटर्नल मेडिसिन विभाग में काम करने वाले डॉ. शुभांक सिंह कहते हैं कि कोविड-19 में काम करने वाले डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी किसी सैनिक से कम नहीं हैं। वे कहते हैं कि स्वास्थ्यकर्मी सीधे कोविड-19 से लड़ रहे हैं।
ALSO READ: अमेरिका में COVID-19 से खराब महिला के फेफड़े का ट्रांसप्लांट, मेरठ के डॉक्टर का कमाल
मेदांता अस्पताल के कोविड-19 वार्ड में ड्यूटी दे चुके डॉ. शुभांक के मुताबिक कोविड-19 वार्ड में बहुत एहतियात के साथ जाना पड़ता है। यहां वैसे भी बहुत गर्मी है तो ऊपर से नीचे तक ढंका रहना बहुत मुश्किलभरा रहता है। डॉ. शुभांक कहते हैं कि जिस वायरस से पूरी दुनिया डरी हुई है, उससे स्वास्थ्यकर्मी भी भयभीत हैं। वे कहते हैं कि आपका परिवार और माता-पिता चिंतित होते हैं। कोरोना के मरीजों के बीच जाने से पहले अपने आपको मानसिक तौर पर तैयार करना पड़ता है। इसके अलावा पीपीई किट को पहनना भी एक बड़ी चुनौती है।
डॉ. शुभांक कहते हैं कि इन सब चुनौतियों के बावजूद आपको अपने सहयोगियों और मरीजों से जो सहयोग मिलता है, वह काफी शक्ति देता है। उनके मुताबिक कि मरीज जब आपके प्रति आभार व्यक्त करते हैं तो नई ऊर्जा मिलती है। डॉ. शुभांक कहते हैं कि कोविड-19 के कार्य में अत्यधिक एहतियात बरतना पड़ता है। उनके मुताबिक एक भी गलत कदम दूसरों के लिए जोखिमभरा साबित हो सकता है।
 
वहीं डॉ. देवल कहते हैं कि जूनियर डॉक्टर भी कोरोना के खिलाफ लड़ाई में बहुत ही ज्यादा बढ़-चढ़कर काम कर रहे हैं। वे कहते हैं कि जूनियर डॉक्टरों को जब हमने काम करते देखा तो वे हमारे लिए प्रेरणास्रोत बने। मुझे लगा कि जब वे इतनी मेहनत से काम कर रहे हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते?
 
डॉक्टर और नर्स ही नहीं, बल्कि डिसइंफेक्शन के काम से जुड़े लोग भी लगातार जोखिम के साथ सैनिटाइजेशन का काम करते हैं। कंधे पर स्प्रेयर लटकाकर उन्हें भीषण गर्मी में कई घंटों तक काम करना पड़ता है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे शहरों में घनी झुग्गी बस्तियों में सैनिटाइजेशन का काम भी अपने आप में बड़ी चुनौती है। वहां सामाजिक दूरी तो संभव ही नहीं है, ऐसे में सफाई कर्मचारी मास्क और दस्ताने के सहारे ही कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने का काम कर रहे हैं। 
ALSO READ: कोरोना मरीजों के रिकवरी रेट में देश में दूसरे नंबर पर मध्यप्रदेश, डॉक्टर से जानें मरीजों के स्वस्थ होने का राज
कुछ समय पहले सरकार ने डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों को हमलों से बचाने के लिए एपिडेमिक डिजीजेज एक्ट में संशोधन किया था। संशोधित कानून के मुताबिक स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला एक संज्ञानयोग्य अपराध माना जाएगा और इसमें जमानत भी नहीं मिलेगी। स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला करने का दोषी पाए जाने पर 6 महीने से लेकर 7 साल तक की सजा हो सकती है। यह मांग डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ पिछले कुछ सालों से कर रहे थे।
 
डॉ. देवल कहते हैं कि भविष्य में अगर कोरोना वायरस के मरीजों के बीच मेरी ड्यूटी लगती है तो मैं उसके लिए दोबारा तैयार हूं। कोरोना को लेकर जो डर था, वह अब खत्म हो चुका है।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरूर पढ़ें

मेघालय में जल संकट से निपटने में होगा एआई का इस्तेमाल

भारत: क्या है परिसीमन जिसे लेकर हो रहा है विवाद

जर्मनी: हर 2 दिन में पार्टनर के हाथों मरती है एक महिला

ज्यादा बच्चे क्यों पैदा करवाना चाहते हैं भारत के ये राज्य?

बिहार के सरकारी स्कूलों में अब होगी बच्चों की डिजिटल हाजिरी

सभी देखें

समाचार

क्या शिंदे पर बनाया गया दबाव, कांग्रेस का नया बयान

संभल हिंसा को लेकर पुराना वीडियो वायरल, गलत दावे के साथ किया जा रहा शेयर

संभल की सच्चाई : क्या है तुर्क बनाम पठान का एंगल? जानिए पूरी कहानी

अगला लेख