Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

क्या यह भारत का पहला "व्हाट्सएप चुनाव" है?

हमें फॉलो करें क्या यह भारत का पहला
, गुरुवार, 11 अप्रैल 2019 (10:20 IST)
भारत में स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वाले अधिकांश लोगों के लिए खबरों का एक अहम स्रोत है व्हाट्सएप। लेकिन व्हाट्सएप पर मिलने वाली हर खबर सच नहीं होती। चुनावी माहौल में इस बात को समझना और भी जरूरी हो गया है।
 
 
मार्च 2019। लोकसभा चुनाव शुरू होने से ठीक एक महीना पहले। फेसबुक पर लाइव वीडियो के दौरान एक व्यक्ति एक ऑडियो क्लिप चलाता है। क्लिप में आवाजें हैं गृहमंत्री राजनाथ सिंह, बीजेपी के पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और एक महिला की। दावों के अनुसार विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की। तीनों पुलवामा हमले पर चर्चा कर रहे हैं। एक आवाज कहती है, "चुनाव के लिए हमें जंग की जरूरत है।"
 
 
चुनाव से कुछ ही हफ्तों पहले इस तरह के शब्द जनता का ध्यान खींचने के लिए काफी हैं। 24 घंटे के भीतर यह वीडियो 25 लाख बार देखा गया और डेढ़ लाख लोगों ने इसे शेयर किया। जब फैक्ट चेकिंग वेबसाइट बूम ने इसकी जांच की तो पता चला कि कई ऑडियो फाइलों को मिला कर, शब्दों को इधर उधर से जोड़ कर एक फर्जी ऑडियो क्लिप तैयार किया गया था। बूम भारत में फेसबुक की साझेदार वेबसाइट है और चुनावों के दौरान फेक न्यूज को फैलने से रोकने की कोशिश में लगी है।
 
 
चुनावी मौसम में सोशल मीडिया पर जंगल की आग की तरह फैल रही फेक सामग्री का ये महज एक छोटा सा उदाहरण है। फैक्ट चेकिंग वेबसाइटें जिस तेजी से इनका पर्दाफाश कर रही हैं, उससे कहीं ज्यादा तेजी से फेक न्यूज फैक्ट्रियां इंटरनेट में नई सामग्री झोंक रही हैं। लोकसभा चुनावों पर इनका बहुत बड़ा असर पड़ सकता है।
 
 
करोड़ों नए यूजर
2019 के लोकसभा चुनाव खास हैं क्योंकि इनमें 90 करोड़ लोगों के पास मतदान का अधिकार है। किसी भी देश के इतिहास में यह मतदाताओं की सबसे बड़ी संख्या है। इस वक्त भारत में 56 करोड़ लोगों के पास इंटरनेट की पहुंच है। जबकि पिछले लोकसभा चुनावों में महज 25 करोड़ लोग ही ऑनलाइन थे। यानी इतने लोग आज तक कभी ऑनलाइन नहीं थे जितने वर्तमान में हैं। इसलिए मतदाताओं को सोशल मीडिया के जरिए बहलाने की संभावना भी अभूतपूर्व है।
 
 
इस बीच ना सिर्फ फोन सस्ते हुए हैं, बल्कि मोबाइल डाटा के दाम इतने कम हो गए हैं कि पूरी दुनिया भारत को हैरानी भरी नजरों से देख रही है। ग्रामीण लोगों तक भी इंटरनेट पहुंचा है। दिल्ली स्थित साइबर एक्सपर्ट जितेन जैन ने डॉयचे वेले से बातचीत में इस बारे में कहा, "लाखों लोग जिंदगी में पहली बार इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। इनके पास ना तो साइबर सिक्यूरिटी की समझ है ना ही फेक न्यूज की। इसलिए ये लोग हर उस चीज पर भरोसा कर लेते हैं, जो ये व्हाट्सएप या फेसबुक पर देखते हैं।"
 
 
भारत में 30 करोड़ लोग फेसबुक पर रजिस्टर्ड हैं और 20 करोड़ व्हाट्सएप का इस्तेमाल कर रहे हैं। फेसबुक और व्हाट्सएप दोनों के लिए भारत सबसे बड़ा बाजार है। आंकड़े बताते हैं कि देश में स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वालों में 90 फीसदी से ज्यादा के पास व्हाट्सएप है। इस बीच बाजार में बेचे जा रहे स्मार्टफोन में पहले से ही फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे ऐप डले होते हैं। यानी स्मार्टफोन लोगों को सीधे तौर पर सिर्फ इंटरनेट से ही नहीं, बल्कि सोशल मीडिया से भी जोड़ रहा है।
 
 
फेक न्यूज का प्रचार
व्हाट्सएप पर आए किसी भी मेसेज को आगे बढ़ा देना या यूं कहें कि फॉरवर्ड कर देना आम जनता में लत जैसा हो गया है। बहुत बार ये सूचना गलत होती है। 2018 में ऐसी ही गलत जानकारी के चलते देश के अलग अलग हिस्सों में भीड़ ने 30 से ज्यादा लोगों की जान ले ली। व्हाट्सएप पर फैले मेसेज और वीडियो के अनुसार बच्चों का अपहरण करने वाला गिरोह शहर में घुस आया था। भीड़ कुछ लोगों पर शक के बिनाह पर टूट पड़ी और कुछ निर्दोषों को पीट पीट कर मार डाला गया।
 
 
जिस तरह से सोशल मीडिया लोगों की सोच पर असर डाल रहा है, उससे वह पार्टियों की छवि बनाने और बिगाड़ने का काम भी कर रहा है। जितेन जैन का कहना है, "अगर सोशल मीडिया महज दस-पंद्रह फीसदी लोगों की सोच पर भी प्रभाव डालता है, तो भी इससे चुनाव के नतीजों पर असर पड़ेगा क्योंकि भारत में सिर्फ पांच या छह फीसदी के अंतर से चुनाव के नतीजे तय होते हैं।"
 
 
इसे रोकने के लिए सोशल मीडिया कंपनियां अब खुद जागरूकता फैलाने का काम भी कर रही हैं। व्हाट्सएप ने टीवी, रेडियो और अखबारों के माध्यम से कई विज्ञापन दिए हैं। साथ ही मेसेज फॉरवर्ड करने की सीमा को भी पांच पर नियमित कर दिया गया है।
 
 
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च के अनुसार बीजेपी के पास दो से तीन लाख व्हाट्सएप ग्रुप हैं, तो कांग्रेस के पास करीब एक लाख। दिलचस्प बात ये है कि व्हाट्सएप एंड-टू-एंड इनक्रिप्शन का इस्तेमाल करता है। इसका मतलब ये हुआ कि मेसेज भेजने और रिसीव करने वाले के अलावा उसे कोई नहीं देख सकता। खुद व्हाट्सएप भी नहीं। जहां इस ऐप को अपने इस फीचर के चलते डाटा के लिहाज से बेहद सुरक्षित माना जाता है, वहां यही फीचर व्हाट्सएप के गले की फांस बन गया है क्योंकि कंपनी खुद भी नहीं देख सकती कि किस ग्रुप में किस तरह के मेसेज फैल रहे हैं।
 
 
देर से जागा चुनाव आयोग
इस बीच फेसबुक जैसी कंपनियां स्थानीय पत्रकारों के साथ मिल कर फेक न्यूज की पहचान करने के लिए कई तरह के वर्कशॉप आयोजित कर रही हैं। इसके अलावा एक बड़ा कदम ये लिया गया है कि चुनाव आयोग ने सभी बड़ी सोशल मीडिया कंपनियों के साथ मिल कर एक स्वैच्छिक आचार संहिता पर चर्चा की है। कंपनियों ने इसका पालन करने का ना केवल वायदा किया है, बल्कि फेसबुक ने तो बीजेपी और कांग्रेस के समर्थन में चलने वाले सैकड़ों ऐसे पेजों को ब्लॉक कर दिया है, जिन पर चुनाव संबंधी आपत्तिजनक सामग्री थी।
 
 
थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष समीर सरन के अनुसार, "चुनाव आयोग द्वारा हाल में उठाए गए कदम जिसमें बड़ी सोशल मीडिया कंपनियों को भी साथ लाया गया है, सराहनीय जरूर हैं लेकिन काफी नहीं हैं। इन कंपनियों को आचार संहिता के अंतर्गत लाना जरूरी है लेकिन जितने बड़े स्तर की ये चुनौती है, उसका सामना सिर्फ अनुचित राजनीतिक विज्ञापनों को हटा कर नहीं किया जा सकता।" समीर आगे कहते हैं, "ऐसा नहीं लगता कि ऐन मौके पर लिए गए इन कदमों से चुनावों में दखलअंदाजी का खतरा टल जाएगा क्योंकि इनकी योजना महीनों पहले से ही बन चुकी होती है।"
 
 
वहीं व्हाट्सएप इंडिया के प्रेसीडेंट अभिजीत बोस ने एक बयान में कहा है, "हम सुरक्षित चुनाव के लिए पूरी सक्रियता के साथ चुनाव आयोग और स्थानीय साझेदारों के साथ मिल कर काम कर रहे हैं और ये हमारी प्राथमिकता है। लोगों में गलत जानकारी वाले संदेशों को पहचानने की जागरूकता फैलाना हमारे यूजरों की सुरक्षा को बढ़ाने की दिशा में एक और कदम है।"
 
 
भारत अकेला नहीं है
ऐसा नहीं है कि भारत दुनिया का एकमात्र देश है जहां सोशल मीडिया चुनावों को प्रभावित कर रहा है। 2016 के अमेरिकी चुनावों में लगातार बाहरी हस्तक्षेप की बात आती रही। कैम्ब्रिज एनेलिटिका के खुलासे के बाद दुनिया भर में फेसबुक की निंदा हुई। फेसबुक ने स्वयं माना कि लोगों तक ऐसे पोस्ट गए जिनसे उम्मीदवारों की छवि पर असर पड़ा।
 
 
इसके अलावा 2018 में ब्राजील और मलेशिया में हुए चुनावों में भी सोशल मीडिया का फेक न्यूज फैलाने के लिए खूब इस्तेमाल किया गया था। भारत की तरह ब्राजील भी व्हाट्सएप के लिए एक बेहद अहम बाजार है। कंपनी को वहां आपत्तिजनक सूचना फैलाने वाले सैकड़ों अकाउंट बंद करने पड़े थे। अब जल्द ही इंडोनेशिया और यूरोपीय संघ में चुनाव होने हैं और वहां भी फेक न्यूज को ले कर चिंता दिखाई दे रही है।
 
 
भारत के लिए एक बड़ी समस्या ये भी है कि सभी बड़ी पार्टियों के पास अपनी आईटी टीमें हैं जो सुनियोजित तरीके से सोशल मीडिया का इस्तेमाल करती हैं ताकि ट्विटर पर हैशटैग ट्रेंड कराए जा सकें और एक फेक न्यूज का जवाब दूसरी फेक न्यूज से दिया जा सके। जितेन जैन का कहना है, "सभी पार्टियां छद्म विज्ञापन फैलाने के लिए अपनी आईटी सेल्स का इस्तेमाल कर रही हैं। चुनाव आयोग इसे रोकने की पूरी कोशिश कर रहा है लेकिन ये एक ऐसी समस्या है जो शायद इस चुनाव में तो नहीं रुक पाएगी।"

रिपोर्ट ईशा भाटिया सानन

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ नहीं पर चंदा देने वाले की पहचान जाहिर हो: चुनाव आयोग