हर आदमी लाइव हो जाएगा तो टीवी चैनल कहां जाएंगे!

Webdunia
गुरुवार, 6 अक्टूबर 2016 (10:28 IST)
फेसबुक का लाइव फीचर आम आदमी की ताकत बन रहा है। इसमें टेलिविजन के लिए चुनौती पेश करने की ताकत है। आम आदमी टीवी चैनलों की जगह ले रहा है।
6 जुलाई को अमेरिका के मीनियापोलिस में जो हुआ, वह अलग-अलग तरीके से पिछले एक साल में दर्जनों बार हो चुका था। पुलिस ने कार चला रहे एक काले आदमी को रोका और गोली मार दी। पिछली दर्जनों बार की तरह काला आदमी मर गया। लेकिन इस बार एक बात अलग थी और ऐसी थी कि दुनिया हिल गई। यह घटना अप्रैल 2016 के बाद हुई जबकि फेसबुक का लाइव फीचर लॉन्च हो चुका था। तो घटना के दौरान ही मृतक फिलैंडो कास्टिल की गर्लफ्रेंड डायमंड रेनल्ड्स ने एफबी लाइव बटन दबा दिया। जो हो रहा था, लोग उसे लाइव देख रहे थे। तहलका मचना लाजमी था। काले आदमी की पुलिस की गोली से मौत की तीसमारखां रिपोर्टरों की खबरें जो तहलका नहीं मचवा पाई थीं, एक काली औरत के स्मार्टफोन के कैमरे ने मचवा दिया। वादिम लावरूसिक का सपना पूरा हुआ।
 
वादिम लावरूसिक ही वह शख्स हैं जिसने फेसबुक लाइव फीचर के बारे में सोचा और इसे बनाया है। वह पत्रकार हैं। कोलंबिया के जर्नलिज्म स्कूल से पढ़े हैं। अप्रैल 2011 में उन्होंने बतौर जर्नलिज्म प्रोग्राम मैनेजर फेसबुक में नौकरी शुरू की और दुनिया के सबसे बड़े सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म को पत्रकारिता से जोड़ने का काम शुरू किया। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था, 'मैं चार साल पहले ही फेसबुक को इस बात के लिए मनाने की कोशिश कर रहा था कि लाइव वीडियो शुरू किया जाए। लेकिन तब तकनीक इतनी अच्छी नहीं थी। और मुझे ऐसा भी लगता है कि फेसबुक के अंदर लोगों को इस बात का भरोसा नहीं था कि आम लोगों के लिए यह कोई काम की चीज होगी।'
 
लावरूसिक सही साबित हुए। आम लोगों ने फेसबुक लाइव को जिस तरह हाथोहाथ लिया है उसकी मिसाल तो आपको अपनी फेसबुक वॉल पर दिखती ही होगी। भारत हो या पाकिस्तान, पत्रकार हो या गैरपत्रकार, मीडिया संस्थान या कोई और, हर जगह से फेसबुक लाइव हो रहा है। भारत में सोशल मीडिया के साथ लगातार प्रयोग करने वाले विचारक प्रकाश के रे कहते हैं कि फेसबुक लाइव उसी कड़ी का हिस्सा है जो कभी ऑरकुट से शुरू हुई। वह कहते हैं, 'तकनीक के साथ आम आदमी की ताकत लगातार बढ़ती गई है। फेसबुक लाइव भी उसी ताकत में इजाफा करता है।' प्रकाश के रे ने कई मौकों पर लाइव सुविधा का इस्तेमाल किया और समाचार चैनलों से ज्यादा तेजी से सूचनाएं लोगों तक पहुंचाईं। जेएनयू छात्रसंघ चुनावों के दौरान उनका फेसबुक लाइव खासा चर्चित रहा था और लोग उनके विश्लेषण पर ज्यादा भरोसा कर रहे थे। इसी को प्रकाश स्थानीयकरण की ताकत कहते हैं। उनके शब्दों में, 'भारत में मीडिया की सबसे बड़ी दिक्कत ही यह रही है कि उसका लोकलाइजेशन नहीं हो पाया है। समाचार चैनल तो खासतौर पर दिल्ली और उसके इर्द गिर्द की खबरों को ही राष्ट्रीय खबरें बताकर परोसते रहते हैं। फेसबुक लाइव लोकलाइजेशन की ताकत देता है जबकि दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर घट रही किसी घटना के लाइव हो पाने की संभावना बढ़ जाती है। अब उस घटना को राष्ट्रीय मीडिया के रहमोकरम पर रहने की जरूरत नहीं है।'
 
रे की दी मिसाल पूरी दुनिया में सच होती दिखी है। कराची में एक पत्रकार ने सब्जी मंडी में अवैध कब्जे के मुद्दे पर फेसबुक लाइव शो किया तो वह देखते ही देखते वायरल हो गया। और उसका असर ऐसा हुआ कि सिंध प्रांत की सरकार को फौरन कार्रवाई करनी पड़ी। पाकिस्तानी पत्रकार और विचारक हफीज चाचड़ कहते हैं कि लोगों की ताकत बढ़ी है। वह बताते हैं, 'एक पत्रकार रोजाना शाम को एफबी लाइव पर एक शो करता है। वह खासा मशहूर हो गया है। खूब लोग उसे देखते हैं। कोई सेंसरशिप नहीं है। आप आर्मी के खिलाफ बोल सकते हैं। टीवी पर ऐसा कहां हो पाता है!' चाचड़ अपने दोस्तों के साथ महफिल को अक्सर फेसबुक पर लाइव कर देते हैं। लाहौर में हो रही उस महफिल का हिस्सा भारत के उनके दोस्त भी बन जाते हैं और एक कमरा सारी सीमाओं को तोड़ कर पूरी दुनिया में फैल जाता है। चाचड़ कहते हैं, 'एफबी पर लाइव होना टीवी से अलग है क्योंकि टीवी के लिए तो लोगों को घर पर बक्से के सामने बैठना होगा। यहां आप मोबाइल तक पर देख सकते हैं, कहीं भी रहते हुए।'
 
लावरूसिक ने एकदम यही सोचा था। इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, 'अगली पीढ़ी के टीवी को मोबाइल पर कैसे लाया जाए। फेसबुक लाइव टैब से यह सच हो रहा है।' यही वजह है कि दुनियाभर में संगीतकार, कॉमेडियन, एक्टर, पत्रकार, गीतकार, गायक, कवि और हर वह आदमी टीवी एंकर बन गया है जो कुछ कहना चाहता है। यूं तो ट्विटर और स्नैपचैट आदि पर लाइव की सुविधा पहले से थी लेकिन फेसबुक की ताकत का स्तर ही कहीं अलग है। एक अरब 70 करोड़ लोग फेसबुक पर हैं जिनमें से लगभग आधे रोजाना लॉग इन करते हैं। यही वजह है कि एक वीडियो अगर वायरल होता है तो उसे करोड़ों लोग देखते हैं। बजफीड ने रबर के छल्लों में तरबूज को बांधकर फोड़ने का वीडियो एफबी पर लाइव किया था तो उसे आठ लाख लोगों ने देखा था। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की पहली डिबेट को भी फेसबुक पर लाइव किया गया और उसे उतने ही लोगों ने देखा, जितने टीवी पर देख रहे थे।
 
यानी ताकत तो असीम है। और ताकत के गलत इस्तेमाल की संभावना भी उतनी ही ज्यादा है। जैसे कि इस साल पांच से ज्यादा कत्ल फेसबुक पर लाइव हो चुके हैं। फ्रांस में एक पुलिस अधिकारी के कत्ल के बाद आईएस के एक आतंकी ने एफबी लाइव करके अपनी बात का प्रचार किया। अमेरिका के मिलवॉकी में 14-15 साल के दो किशोरों ने सेक्स करने का अपना वीडियो लाइव कर दिया। प्रकाश के रे कहते हैं कि खतरे तो होते ही हैं। वह कहते हैं, 'जब सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ने लगा तो उसके खतरे भी बढ़ने लगे थे। लेकिन कोशिश उनसे निपटने की करनी है। मीडियम को छोड़ना ना तो संभव है न सही।'
 
मीनियापोलिस में डायमंड रेनल्ड्स का वीडियो वायरल होने के बाद फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग ने लिखा था, 'जो तस्वीरें हमने देखी हैं वे वीभत्स और दर्दनाक हैं। मैं उम्मीद करता हूं कि ऐसा वीडियो हमें दोबारा कभी ना देखना पड़े।' फेसबुक इसके लिए कोशिशें भी कर रहा है। निगरानी बढ़ाई जा रही है। कोशिश की जा रही है कि फेसबुक लाइव की लगातार मानवीय निगरानी हो। इसके बावजूद हर तरह के वीडियो लाइव होंगे क्योंकि अब यह ताकत करोड़ों का सामान लिए बैठे टीवी चैनलों और उनके एंकरों से निकलकर आम आदमी के हाथ में पहुंच गई है। और वह क्या लाइव करना चाहेगा, वही तय करेगा। तो क्या टीवी एंकरों के दिन लदने वाले हैं?
 
रिपोर्ट : विवेक कुमार 

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