Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

महाराष्ट्र में पलायन को मजबूर किसान

हमें फॉलो करें महाराष्ट्र में पलायन को मजबूर किसान
, सोमवार, 10 फ़रवरी 2020 (09:40 IST)
महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में पड़ने वाले 8 जिलों के किसान इन दिनों बहुत परेशान हैं। उनके सामने रोजगार का संकट पैदा हो गया है और ऐसे में गुजर-बसर करना मुश्किल हो रहा है।
महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र का बीड़ जिला सूखाग्रस्त इलाके में आता है। वहां आमतौर पर सामान्य से कम ही बारिश होती है। लेकिन पिछले साल बेमौसम बारिश के कारण वहां के किसान अब आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। पिछले साल बारिश इतनी हुई कि किसानों की अच्छी फसल चौपट हो गई और उन्होंने जो कर्ज लिया था, अब वे वह भी चुकाने में असमर्थ हैं।
 
गन्ना काटने के लिए पलायन करने वाले किसानों पर आई ऑक्सफैम इंडिया की एक नई रिसर्च बताती है कि हर साल 14 साल से कम उम्र के करीब 2 लाख बच्चे अपने माता-पिता के साथ गन्ना काटने के लिए सूखा प्रभावित मराठवाड़ा से पलायन करते हैं जबकि मराठवाडा खुद भी गन्ने की खेती का एक केंद्र है।
 
किसानों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और वकील विशाल कदम कहते हैं कि कपास, बाजरा और सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों को बहुत आर्थिक नुकसान हुआ है, साथ ही फसल बीमा कंपनियों की भूमिका भी भ्रष्ट रही है। राज्य सरकार और केंद्र सरकार को जिस तरह जिम्मेदारी लेनी चाहिए थी, वह उन्होंने सही तरीके से नहीं निभाई।
मराठवाड़ा इलाके में आमतौर पर खेत में काम करने वाले पुरुष मजदूर को 300 रुपए और महिला मजदूर को 150-200 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से दिहाड़ी मिलती है। लेकिन गांव में काम न होने के कारण वे पलायन कर रहे हैं। गांव से पलायन कर खेत मजदूर शहरी क्षेत्र जैसे पुणे व औरंगाबाद जा रहे हैं। किसानों का कहना है कि उन्होंने पूरी जिंदगी गांव में आत्मसम्मान और स्वाभिमान से बिताई लेकिन अब उन्हें ऐसे हालात में जिंदगी गुजारना पड़ रही है।
 
'किसान पुत्र आंदोलन' नाम के संगठन से जुड़े अमर हबीब बताते हैं कि पिछले साल शुरुआत में बारिश नहीं हुई लेकिन जब बाद में बारिश हुई तो वह आफत बन गई। किसानों और मजदूरों का पलायन तो पिछले कुछ सालों से जारी है लेकिन अब वह और बढ़ गया है। गांव के किसान और खेती मजदूर शहरों में जाकर कुछ भी काम कर लेते हैं जिससे वे जिंदगी चला सकें।
 
हबीब बताते हैं कि लैंड होल्डिंग कम होने की वजह से किसानों की हालत ज्यादा खराब हुई है और जितनी जमीन उनके पास बची है, उस पर किसानों का भी गुजारा होना मुश्किल है।
 
हबीब कहते हैं कि अगर किसी किसान के पास 2 एकड़ जमीन है तो वह क्या करेगा और वह किसको काम पर लगाएगा? ऐसे में किसान खुद आधे समय मजदूरी करता है। किसानों की आय का मुख्य स्रोत मजदूरी बन गया है। यही कारण है कि गांव में किसान कम बचे हैं और जो थे, वे पलायन कर चुके हैं।
 
दूसरी ओर विशाल कहते हैं कि किसानों के ऊपर बैंकों के कर्ज के साथ-साथ साहूकारों का भी कर्ज है। उनके मुताबिक कि बीड़ जिले के किसान साहूकारों के कर्ज के चक्र में फंसे हुए हैं। उन पर ब्याज बढ़ता ही जा रहा है। 
वे कहते हैं कि जब किसान अपना कर्ज नहीं चुका पाएगा और परिवार का गुजारा नहीं कर पाएगा तो वह कैसे खेत में काम करने वाले मजदूरों को मजदूरी दे पाएगा? किसानों के लिए काम करने वाले संगठनों का कहना है कि बीड़ जिले में मनरेगा का भी काम नहीं है, जो पलायन का एक और कारण है।
 
किसान और खेती मजदूरों के इस संकट पर विशाल का कहना है कि इन हालात में किसानों के पास खुदकुशी के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचता। महाराष्ट्र राजस्व विभाग के मुताबिक 2019 में किसान आत्महत्या के 2,808 मामले दर्ज किए गए थे।
 
हबीब कहते हैं कि बहुत सारे लोगों ने आत्महत्या की कोशिश की है लेकिन वे मामले दर्ज ही नहीं हैं। किसान और खेती मजदूर पलायन कर जीने का रास्ता निकाल रहे हैं और जिनके पास जीने का रास्ता ही नहीं बचा है, वे खुदकुशी कर रहे हैं। 
 
इस तरह महाराष्ट्र के छोटे-छोटे गांव के किसान बड़े शहरों में जाकर सड़क किनारे या झुग्गी बस्ती में गुमनाम जिंदगी बिताने को मजबूर हैं।
 
-रिपोर्ट आमिर अंसारी

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

क्या श्रीलंका को अब चीन नहीं भारत भा रहा है?