कहां करते हैं जर्मन सेना के जवान शिकायत

Webdunia
शुक्रवार, 13 जनवरी 2017 (11:12 IST)
जर्मनी में भी सेना के जवानों को अनुशासन में रहना पड़ता है लेकिन उन्हें अधिकारियों के रहमोकरम पर नहीं छोड़ दिया गया है। दो संस्थाएं सैनिकों की समस्याओं का ख्याल रखती हैं।
 
इनमें से एक संस्था बुंडेसवेयरफरवांड यानी कि जर्मन सेना संघ है। यह पूर्व सैनिकों और मौजूदा सैनिकों का संगठन है जिसमें सेना से जुड़े पेशेवर और सामाजिक मामलों की चर्चा होती है और समस्याओं के समाधान खोजे जाते हैं। संस्था खुद को जर्मन सेना से जुड़े लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाला संगठन बताती है जिसके इस समय दो लाख सदस्य हैं। वह सैनिकों के सर्विस और पेंशन से जुड़े सभी मामलों में अपने सदस्यों की मदद करती है। जरूरत पड़ने पर कानूनी सहायता भी देती है।
 
बुंडेसवेयरफरवांड सेना के कर्मचारियों की अग्रणी संस्था है और राजनीतिक तथा आर्थिक तौर पर स्वतंत्र है। जर्मन सरकार और संसद सैनिकों और उनके परिजनों से संबंधित मामलों पर कानून बनाते समय संगठन से परामर्श करती है। इस संस्था के प्रयासों से ही कार्रवाई के दौरान हताहत होने वाले सैनिकों और उनके परिजनों की मदद के लिए कानून बनाए गए। संस्था में जर्मन सेना में पुरुषों और महिलाओं की बराबरी के लिए भी लगातार संघर्ष किया है जिसे आखिरकार 2001 में लागू किया गया।
 
जर्मनी उन बिरले देशों में है जहां सैनिकों को किसी संस्था में संगठित होने की आजादी है। यूरोप के कई दूसरे देशों में तो इस पर प्रतिबंध है। जर्मनी के बुंडेसवेयरफरवांड का गठन 1956 में 23 सेनाधिकारियों, 25 अंडर अफसरों और 7 जवानों ने मिलकर किया था। यह पहला मौका था कि जर्मन सेना के सभी स्तरों के सैनिकों ने मिलकर अपने प्रतिनिधित्व के लिए एक संस्था बनाई। सैनिकों के लिए तनख्वाह और भत्ते के अलावा परिवार से अलग रहने वाले सैनिकों के लिए अलग रहने का भत्ता तय करवाने में संस्था ने शुरू से ही काम किया है।
 
जर्मनी में सैनिकों का ख्याल रखने वाली दूसरी संस्था संसद की संस्था है। 1956 में ही संविधान के प्रावधानों के अनुरूप सेना पर संसदीय नियंत्रण के लिए संसद के सेना आयुक्त का पद बनाया गया। एक कानून के जरिये उसके चुनाव की प्रक्रिया और अधिकारों को तय किया गया। सेना आयुक्त वेयरवेआफट्राग्टे सरकारी अधिकारी नहीं होता, वह संसद द्वारा चुना गया संसद का प्रतिनिधि होता है और हर साल संसद को सेना की स्थिति पर एक रिपोर्ट देता है। इस रिपोर्ट में वह सेना और सैनिकों की मुश्किलों के बारे में बताता है। हर सैनिक सेना आयुक्त को अपने अफसर से अनुमति लिए बिना अपनी शिकायत भेज सकता है।
 
जर्मन सेना को संसदीय सेना समझा जाता है और सैनिकों को वर्दी वाले नागरिक। द्वितीय विश्वयुद्ध के मलबे पर बनी सेना में इस बात को समझना शुरू में बहुत ही मुश्किल था। इसलिए सेना आयुक्त की रिपोर्टों में अक्सर मौलिक अधिकारों के हनन और अफसरों की मनमानी की शिकायतें होती थीं। एक समय में तो संसद के प्रतिनिधि को साल में औसत छह हजार शिकायतें मिलती थीं। पिछले सालों में सेना आयुक्त कार्यालय को प्रति एक हजार सैनिक 20 से 25 शिकायतें मिली हैं। इन शिकायतों के बारे में आयुक्त सेना से जवाबतलब करता है लेकिन शिकायतकर्ता का नाम गुप्त रखता है।
 
रिपोर्ट- महेश झा
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