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ये खाएं- सेहत और दुनिया दोनों बचाएं

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, शुक्रवार, 14 जून 2019 (10:49 IST)
2050 तक दुनिया की आबादी दस अरब को पार कर जाएगी। ऐसे में खाने की आदतें ना बदलीं तो खाना उगाना ही मुश्किल हो जाएगा। इसलिए जरूरी है कि खाने के ऐसे विकल्पों को चुना जाए जो सेहत के लिए भी अच्छे हैं और पर्यावरण के लिए भी।
 
 
बदलें अपनी आदतें
दुनिया भर में सबसे ज्यादा खेती गेहूं, चावल और मक्के की होती है। जाहिर है, ऐसा इसलिए क्योंकि इनकी खपत भी सबसे ज्यादा है। लेकिन जिस तेजी से दुनिया की आबादी बढ़ रही है, कुछ दशकों में सभी को गेहूं-चावल मुहैया कराना मुमकिन नहीं रह जाएगा। संयुक्त राष्ट्र की संस्था WWF ने कुछ ऐसी चीजों की सूची जारी की है जिनसे हम कुदरत को होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं।
 
 
नारंगी टमाटर
क्या जरूरी है कि टमाटर लाल ही हो? दुनिया भर में उगने वाली सब्जियों की सूची में लाल टमाटर सबसे ऊपर है। लेकिन नारंगी टमाटर सेहत और पर्यावरण दोनों के लिहाज से बेहतर हैं। इनमें विटामिन ए और फोलेट की मात्रा लगभग दोगुना होती है और एसिड आधा। स्वाद में ये लाल टमाटरों से ज्यादा मीठे होते हैं।
 
अखरोट
इंसान 10,000 सालों से अखरोट खाता आया है और आगे भी इसे खाता रह सकता है। बादाम इत्यादि की तुलना में अखरोट में प्रोटीन, विटामिन और मिनरल ज्यादा होते हैं। ये विटामिन ई और ओमेगा 3 फैटी एसिड का अच्छा स्रोत होते हैं।
 
कुट्टू
भारत में इसे व्रत के दौरान खाया जाता है। कुछ लोग कुट्टू के आटे की रोटी बनाते हैं, तो कुछ इसकी खिचड़ी। पश्चिमी दुनिया में अब इसे सुपरफूड बताया जा रहा है और गेहूं का एक बेहतरीन विकल्प भी। सुपरमार्केट में अब बकवीट यानी कुट्टू से बनी ब्रेड और पास्ता भी बिक रहे हैं।
 
दालें
इंसान ने जब खेती करना शुरू किया तब तरह तरह की दालें उगाईं। आज जितनी तरह की दालें भारत में खाई जाती हैं, उतनी शायद ही किसी और देश में मिलती हों। शाकाहारी लोगों के लिए ये प्रोटीन का बेहतरीन स्रोत हैं। मीट की तुलना में दालें उगाने पर 43 गुना कम पानी खर्च होता है।
 
फलियां
इन्हें उपजाने से जमीन की गुणवत्ता बेहतर होती है। ये जंगली घास को दूर रखती है, इसलिए अन्य फसलों के साथ इसे लगाने से फायदा मिलता है। साथ ही ये मधुमक्खियों को भी खूब आकर्षित करती हैं। सेहत के लिहाज से देखा जाए तो ये फाइबर से भरपूर होती हैं।
 
कैक्टस
ये सब जगह तो नहीं मिलता, इसलिए हर कहीं खाया भी नहीं जाता। लेकिन वक्त के साथ इसकी मांग बढ़ रही है। इसके फल को भी खाया जा सकता है, फूल को भी और पत्तों को भी। सिर्फ इंसान के खाने के लिए ही नहीं, जानवर के चारे के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है और बायोगैस बनाने के लिए भी।
 
टेफ
भारत में अब तक इस अनाज का इस्तेमाल शुरू नहीं हुआ है। मूल रूप से यह इथियोपिया में मिलता है जहां इसका आटा बनाया जाता है और फिर डोसे जैसी रोटी बनाई जाती है जिसे वहां इंजेरा कहते हैं। हाल के सालों में यूरोप और अमेरिका में इसकी मांग बढ़ी है। यह ऐसा अनाज है जिस पर आसानी से कीड़ा नहीं लगता। यह सूखे में भी उग सकता है और ज्यादा बरसात होने पर भी।
 
अलसी
कहते हैं रोज एक चम्मच अलसी के बीज खाने चाहिए। इससे पेट भी साफ रहता है और खून में वसा और चीनी की मात्रा भी नियंत्रित रहती है। यूरोप में ऐसे कई शोध चल रहे हैं जिनके तहत प्रोसेस्ड फूड में गेहूं की जगह अलसी के आटे के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा रहा है, खास कर केक और मफिन जैसी चीजों में।
 
राजमा
इनका जितना इस्तेमाल उत्तर भारत में होता है, उतना ही मेक्सिको और अन्य लातिन अमेरिकी देशों में भी। अगर इन्हें अंकुरित कर खाया जाए तो इनमें मौजूद पोषक तत्व तीन गुना बढ़ जाते हैं। ये प्रोटीन से भरपूर होते हैं और इसलिए मीट का एक अच्छा विकल्प भी।
 
कमल ककड़ी
एशियाई देशों में इसका खूब इस्तेमाल होता है। कमल के पौधे की इसमें खास बात होती है कि उसे बहुत ज्यादा रखरखाव की जरूरत नहीं होती। इसे थोड़े ही पानी की जरूरत होती है और इसलिए पर्यावरण के लिए यह एक कमाल का पौधा है।

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