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सरकार कैसे बंद करती है इंटरनेट और क्या बिना इंटरनेट चैट की जा सकती है?

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, शनिवार, 28 दिसंबर 2019 (09:19 IST)
कानून व्यवस्था बिगड़ने का अंदेशा होते ही सरकार इंटरनेट बंद करती है। लेकिन इंटरनेट बंद किया कैसे जाता है? क्या बिना इंटरनेट के भी चैट की जा सकती है? क्या सरकार द्वारा इंटरनेट बंद करने पर भी इंटरनेट चलाया जा सकता है?
भारत दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ इंटरनेट बाजार है, लेकिन इसके साथ एक नकारात्मक आंकड़ा भी जुड़ा हुआ है। भारत दुनिया में सबसे ज्यादा बार इंटरनेट बंद करने वाला देश भी है। इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकनॉमिक रिलेशंस के मुताबिक साल 2012 से जनवरी 2019 तक किसी न किसी कारण से भारत में केंद्र या राज्य सरकारों ने 367 बार इंटरनेट बंद किया था।
 
2019 में 20 दिसंबर तक करीब 95 बार अलग-अलग कारणों से इंटरनेट बंद किया गया। इसमें 60 बार 24 घंटे से कम समय के लिए, 55 बार 24 से 72 घंटे और 39 बार 72 घंटे से ज्यादा के लिए इंटरनेट बंद किया गया। 2012 से 2017 के बीच कुल मिलाकर 16 हजार घंटे इंटरनेट बंद रहा। राज्यों की बात करें तो 5 अगस्त 2019 से पहले तक सबसे ज्यादा 180 बार जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट बंद हुआ। 5 अगस्त 2019 से 27 दिसंबर 2019 को ये आर्टिकल लिखे जाने तक कश्मीर के इलाके में इंटरनेट पूरी तरह बंद है।
 
27 दिसंबर को कारगिल में इंटरनेट चालू होने की बात सामने आई है। 2016 में चरमपंथी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद हुए प्रदर्शनों के बीच भी 4 महीने इंटरनेट बंद रहा। 2012 से 2017 तक इंटरनेट बंद होने से 3 अरब डॉलर का वित्तीय घाटा हुआ। साथ ही ऑनलाइन व्यापार करने और ऑनलाइन सुविधाओं का लाभ उठाने वाले उपभोक्ताओं को भी परेशानी उठानी पड़ती है।
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इंटरनेट बंद क्यों किया जाता है?
 
सामान्य परिस्थितियों में इंटरनेट भी सामान्य तरीके से चलता रहता है। लेकिन जब सरकार को कानून व्यवस्था बिगड़ने की आशंका होती है तो इंटरनेट को बंद किया जाता है। हाल के समय में देखा गया है कि किसी सांप्रदायिक या राजनीतिक तनाव की घटना में इंटरनेट पर मौजूद मैसेजिंग ऐप्स या सोशल मीडिया के जरिए फेक न्यूज तेजी से फैलाई जाती है। इसमें हिंसा करने के लिए लोगों को इकट्ठा करने और दूसरी तरह की हिंसक गतिविधियां शामिल होती हैं।
 
कश्मीर में इंटरनेट बंद करने के पीछे सरकार ने तर्क दिया था कि पत्थरबाजी करने या आतंकी गतिविधियों के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल किया जा रहा है। इंटरनेट बंद करने के मामले में दूसरे नंबर पर राजस्थान है, जहां 67 बार इंटरनेट बंद किया गया।
 
राजस्थान में कानून व्यवस्था बिगड़ने के अलावा कई प्रतियोगी परीक्षाओं के दौरान इंटरनेट बंद किया गया। 2019 में अनुच्छेद 370 हटाने, राम मंदिर विवाद के फैसले और नागरिकता संशोधन अधिनियम के दौरान इंटरनेट बंद करना सामान्य तौर पर देखा गया। साल 2011 में सरकार ने बल्क मैसेजिंग पर रोक लगाई थी। तब 1 दिन में किए जा सकने वाले मैसेजों की संख्या 100 तक सीमित कर दी गई थी।
 
इंटरनेट को बंद करने की प्रक्रिया समझने के लिए सबसे आसान तरीका है वाईफाई को समझना। वाईफाई का एक राउटर होता है। राउटर चालू होता है तो वाईफाई काम करता है, वैसे ही फोन में चलने वाले इंटरनेट का राउटर मोबाइल टॉवर होता है। कई सारे मोबाइल टॉवर इसके लिए राउटर का काम करते हैं। इसे दो तरह से बंद किया जा सकता है।
 
अगर आप वाईफाई राउटर बंद कर देंगे तो फोन में वाईफाई के सिग्नल आने बंद हो जाएंगे। ऐसी स्थिति में वाईफाई का कोई इस्तेमाल नहीं हो सकेगा। लेकिन अगर आपका वाईफाई सर्विस प्रोवाइडर आपकी सर्विस बंद कर देगा तो आपका राउटर काम करता रहेगा, मोबाइल में वाईफाई सिग्नल आएंगे लेकिन इंटरनेट नहीं चल सकेगा। जैसे वाईफाई का एक सर्विस प्रोवाइडर है वैसे ही इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (आईएसपी) होते हैं। मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियां आईएसपी होती हैं।
 
सरकार के पास ऐसा कोई बटन नहीं होता है जिसे दबाने से इंटरनेट बंद होता हो। सरकार आईएसपी कंपनियों को आदेश देती है और इंटरनेट बंद करवा देती है। आईएसपी कंपनियां सरकारी और प्राइवेट दोनों हो सकती हैं। सरकारी कंपनियां का पूरा नियंत्रण सरकार के हाथ में हैं।
 
निजी आईएसपी कंपनियों को सरकार लाइसेंस देती है। ऐसे में अगर ये सरकार के निर्देशों का पालन नहीं करेंगी तो सरकार इनका लाइसेंस रद्द कर सकती है। इसलिए इन्हें सरकार के आदेश को मानना पड़ता है। ये आईएसपी कंपनियां इंटरनेट कनेक्टिविटी डिवाइसेज को बंद कर देती हैं। इससे फोन में सिग्नल आने के बावजूद इंटरनेट नहीं चलता। जितने इलाके का इंटरनेट बंद करना होता है उतने इलाके के कनेक्टिविटी डिवाइसेज को बंद किया जाता है।
 
यही वजह है कि मोबाइल इंटरनेट बंद होने के आदेश होने पर वाईफाई राउटर बंद नहीं होते। मोबाइल इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर और वाईफाई सर्विस प्रोवाइडर कंपनियां अलग-अलग होने के चलते वाईफाई इंटरनेट चलते रहते हैं।
 
कभी-कभी सरकार सिर्फ कुछ वेबसाइटों का एक्सेस बंद करती है। सरकार ने भारत में पिछले दिनों 700 पोर्न वेबसाइटों का एक्सेस बंद किया था। वेबसाइट बंद 2 तरीके से होती है। पहला तरीका है वेबसाइट के सर्वर को बंद करना। लेकिन इस परिस्थिति में वेबसाइट का सर्वर उस सरकार के अधिकार क्षेत्र में होना चाहिए। विदेशों से चलने वाली वेबसाइटों के सर्वर भी दूसरे देश में होते हैं। ऐसे में सरकार उन सर्वरों को बंद नहीं कर सकती।
 
दूसरा तरीका इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडरों को नोटिस देकर उन डॉमेन को ब्लॉक कर दिया जाता है। ऐसे में जब कोई व्यक्ति ब्राउजर में उस वेबसाइट का एड्रेस डालेगा तो इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर उस वेबसाइट को खोलेगा ही नहीं। ब्लॉक की गई वेबसाइट को वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क से एक्सेस किया जा सकता है। लेकिन वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क का इस्तेमाल कई देशों में गैरकानूनी है।
 
क्या भारत में इसके लिए कोई नियम है?
 
भारत में किसी इलाके का इंटरनेट बंद करने के लिए नियम बनाए गए हैं। 2017 में आए टेंपरेरी सस्पेंसन ऑफ टेलीकॉम सर्विसेज पब्लिक इमरजेंसी या पब्लिक सेफ्टी रुल्स में ये नियम बताए गए हैं। नियम के मुताबिक स्थिति को देखते हुए केंद्र या राज्य सरकार के गृह सचिव इंटरनेट बंद करने का आदेश देते हैं। इस आदेश को पुलिस अधीक्षक या उससे ऊपरी रैंक के अधिकारियों को भेजा जाता है। ये अधिकारी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर से उक्त इलाके का इंटरनेट बंद करने का आदेश देते हैं।
 
इस आदेश को अगले कामकाजी दिवस में केंद्र या राज्य सरकार के रिव्यू पैनल को भेजना होता है। यह रिव्यू पैनल अगले 5 कामकाजी दिनों में इसकी समीक्षा करते हैं। केंद्र सरकार के रिव्यू पैनल में कैबिनेट सचिव, लॉ सचिव और संचार सचिव होते हैं वहीं राज्य सरकार के पैनल में मुख्य सचिव, लॉ सचिव और एक और सचिव स्तर का अधिकारी होता है।
 
आपातकालीन स्थिति में केंद्र या राज्य के गृह सचिव या उनके द्वारा अधिकृत संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी इंटरनेट बंद करने का आदेश दे सकते हैं। इस आदेश को 24 घंटे में गृह सचिव की अनुमति जरूरी होती है। 2017 से पहले जिला कलेक्टर के पास जिले का इंटरनेट बंद करवाने का अधिकार होता था। सरकार के पास इंटरनेट के अलावा कॉल और मैसेज को भी बंद करने का अधिकार होता है।
 
क्या बिना इंटरनेट के चैट नहीं की जा सकती है?
 
ऐसा नहीं है। इंटरनेट मतलब नेटवर्कों का जाल होता है। इस जाल को अलग तरीकों से भी बनाया जा सकता है। जैसे आजकल कई ऐप्स वाईफाई से फाइल ट्रांसफर की सुविधा देते हैं। साथ ही ब्लूटूथ से फाइल ट्रांसफर का पुराना तरीका आज भी काम आता है। ब्लूटूथ और मोबाइल के वाईफाई और हॉटस्पॉट का इस्तेमाल कर मैसेज आगे पहुंचाया जा सकता है।
 
कई सारे मोबाइलों के वाईफाई या ब्लूटूथ को बनाए गए नेटवर्क को मैश नेटवर्क कहते हैं। इनकी पहुंच ज्यादा नहीं होती है। एक मोबाइल के मैश नेटवर्क की रेंज उसके ब्लूटूथ और वाईफाई की रेंज तक सीमित होती है। लेकिन अगर कई सारे मोबाइलों को आपस में जोड़ा जाए तो इस मेश नेटवर्क की रेंज असीमित की जा सकती है। हांगकांग में हुए प्रदर्शनों के दौरान ऐसी कई ऐप्स का इस्तेमाल किया गया था, जो मेश नेटवर्क पर बिना इंटरनेट के काम करती हैं।
 
रिपोर्ट ऋषभ कुमार शर्मा

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