चारु कार्तिकेय
	विपक्षी दलों ने राज्यसभा के अध्यक्ष और भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है। जानिए राज्यसभा अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर क्या कहता है संविधान।
 
									
			
			 
 			
 
 			
					
			        							
								
																	
	 
	विपक्षी इंडिया ब्लॉक ने मंगलवार 10 दिसंबर की सुबह राज्यसभा के अध्यक्ष और भारत के उपराष्ट्रपति जगदी धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव राज्यसभा के महासचिव पी सी मोदी को सौंप दिया। विपक्ष का आरोप है कि धनखड़ ने "अत्यंत पक्षपातपूर्ण तरीके से" राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन किया है।
 
									
										
								
																	
	 
	विपक्ष ने इस बात की जानकारी नहीं दी है कि कितने सांसदों ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं, लेकिन मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि प्रस्ताव सफल नहीं हो पाएगा। इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से दावा किया कि प्रस्ताव पर 65 सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं। एनडीटीवी के मुताबिक प्रस्ताव पर कांग्रेस के अलावा तृणमूल कांग्रेस, आप, एसपी, डीएमके और आरजेडी के 50 से ज्यादा सांसदों के हस्ताक्षर हैं।
 
									
											
									
			        							
								
																	
	 
	क्या है प्रावधान
	भारत के उप-राष्ट्रपति राज्यसभा के अध्यक्ष भी होते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 67 के मुताबिक अगर राज्यसभा के सदस्य अध्यक्ष को उनके पद से हटाना चाहते हैं तो सबसे पहले उन्हें अविश्वास प्रस्ताव का एक नोटिस पेश करना होता है। नोटिस पेश करने के 14 दिन बाद ही प्रस्ताव सदन में लाया जा सकता है।
 
									
											
								
								
								
								
								
								
										
			        							
								
																	
	 
	प्रस्ताव पारित करने के लिए सदन में बहुमत का समर्थन अनिवार्य होता है, यानी कुल सांसदों की संख्या के आधे से एक ज्यादा। इस समय राज्यसभा में 231 सदस्य हैं, तो बहुमत के लिए कम से कम 116 मतों की जरूरत होगी। इस समय राज्यसभा में कांग्रेस के 27, तृणमूल कांग्रेस के 12, आप के 10, एसपी के चार, डीएमके के 10 और आरजेडी के पांच सदस्य हैं, यानी कुल मिलाकर 68।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	विपक्ष को प्रस्ताव को पारित कराने के लिए कम से कम 48 और मतों की जरूरत होगी। अगर राज्यसभा से प्रस्ताव पारित भी हो गया तो उसके बाद उसे लोकसभा से भी पारित करवाना होगा और वहां विपक्ष के लिए बहुमत जुटाना और मुश्किल होगा।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	सांकेतिक कदम
	मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि विपक्ष जानता है कि यह प्रस्ताव पारित नहीं हो पाएगा और वो इसे यह संदेश देने के लिए लाया है कि राज्यसभा में उसके सांसदों के खिलाफ पक्षपात किया जा रहा है।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगस्त में भी विपक्ष ने धनखड़ के खिलाफ यह प्रस्ताव लाने की कोशिश की थी। विपक्ष का दावा था कि उसे 80 से भी ज्यादा सांसदों का समर्थन भी मिल गया था, लेकिन फिर बजट सत्र का अंत हो गया और प्रस्ताव नहीं लाया गया।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	उपराष्ट्रपति बनने से पहले पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे धनखड़ पेशे से वकील हैं और अपने राजनीतिक करियर में कई पार्टियों में रह चुके हैं। वो 1980 के अंत के दशकों में जनता दल में थे, उसके बाद कांग्रेस में चले गए और 2003 में वो बीजेपी में शामिल हो गए।