इंदौर में डिस्पोजेबल बर्तनों का उपयोग न करने वालों को जरूरत के मुताबिक बर्तन उपलब्ध कराए जाए रहे हैं।
मध्यप्रदेश की व्यावसायिक नगरी इंदौर को लगातार चौथी बार देश का सबसे स्वच्छ शहर बनाने की कवायद जारी है। इसी क्रम में शहर को "डिस्पोजेबल फ्री" बनाने की मुहिम तेज कर दी गई है। इसके लिए नगर निगम ने 'बर्तन बैंक' भी बनाया है। जो व्यक्ति अपने आयोजनों में डिस्पोजेबल बर्तनों का उपयोग नहीं करता, उसे इस बैंक से स्टील के बर्तन उपलब्ध कराए जा रहे हैं, जिनका उन्हें कोई किराया नहीं देना होता है।
विभिन्न आयोजन भी कचरा बढ़ाते हैं क्योंकि इन आयोजनों में खाने के लिए डिस्पोजेबल बर्तनों का उपयोग किया जाता है। इससे कचरा फैलने के साथ कचरा जमा करने वालों का काम बढ़ जाता है। इसे कम करने के लिए नगर निगम ने बर्तन बैंक की शुरुआत की है।
नगर निगम आयुक्त आशीष सिंह ने बताया कि विवाह, जन्मदिन से लेकर विविध तरह के आयोजनों में डिस्पोजेबल बर्तनों का इस्तेमाल कम हो, इसके लिए बर्तन बैंक बनाया गया है। इस प्रयोग से जहां पर्यावरण को लाभ होगा, वहीं लोगों में जागरूकता भी आएगी। नगर निगम ने यह बर्तन बैंक एक गैर सरकारी संगठन बेसिक्स के साथ मिलकर शुरू किया है। संबंधित व्यक्ति को इस बैंक को बताना होता है कि उसने डिस्पोजेबल बर्तन का उपयोग न करने का फैसला किया है। लिहाजा उसे बर्तन उपलब्ध कराए जाएं।
बेसिक्स के डायरेक्टर गोपाल जगताप का कहना है कि इंदौर को डिस्पोजेबल और प्लास्टिक फ्री बनाने के मकसद से यह बर्तन बैंक शुरू किया गया है। यहां लोगों को बर्तन दिए जा रहे हैं, जिसका उन्हें किराया नहीं देना होता। यहां से बर्तन लेने वालों के लिए सिर्फ एक ही शर्त रहेगी कि वे अपने आयोजन में डिस्पोजेबल बर्तन का उपयोग नहीं करेंगे।
पहले कभी इंदौर भी अन्य शहरों की तरह ही हुआ करता था। यहां जगह-जगह कचरों के ढेर देखा जाना आम था। 2015 के स्वच्छता सर्वेक्षण में 25वें स्थान पर रहा इंदौर अब नंबर एक पर पहुंच गया है। इंदौर के लिए यह मुकाम हासिल करना आसान नहीं था। 2011-12 में इंदौर सफाई के मामले में 61वें स्थान पर था।
इंदौर के स्वच्छता अभियान से शुरुआत से जुड़े जन विकास सोसायटी के निदेशक रोई थॉमस ने आईएएनएस को बताया कि इंदौर शहर की तस्वीर एक दिन में नहीं बदली, इसके लिए नगर निगम प्रशासन और स्थानीय लोगों ने अपनी हिस्सेदारी निभाने के साथ शहर को साफ सुथरा बनाने का संकल्प लिया और उसी का नतीजा है कि बीते तीन बार से इंदौर देश का सबसे साफ सुथरा शहर होने का गौरव हासिल कर रहा है।
रोई थॉमस बताते हैं कि सबसे पहले शहर को साफ सुथरा बनाने के लिए नगर निगम ने विभिन्न गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर जन जागरण अभियान चलाए। लोगों को इस बात के लिए तैयार किया कि शहर को जनता के सहयोग के बिना स्वच्छ नहीं रखा जा सकता।
शहर को स्वच्छ बनाने के लिए घर घर से कचरा इकट्ठा करने का अभियान शुरू किया गया। उसके बाद सूखा और गीला कचरा अलग अलग लिया जाने लगा। इसके लिए हर घर पर छोटा वाहन पहुंचता है। व्यावसायिक क्षेत्रों में दिन में दो बार कचरा इकट्ठा किया जाता है। शहर को खुले डस्टबिन से मुक्ति दिलाने के लिए डस्टबिन फ्री अभियान चलाया गया और सड़क पर रखे जाने वाले कचरा डिब्बों को हटाया गया। ऐसा करने से लोगों को कचरा वाहन को कचरा देना जरूरी हो गया।
निगम के अधिकारी बताते हैं कि अभियान आगे बढ़ा तो वाहन में पूरी तरह से बंद दो डस्टबिन लगाए गए, जिसमें सूखा और गीला कचरा अलग अलग इकठ्ठा होता है। इन वाहनों में जीपीएस लगा हुआ है। इसके साथ शहर में 10 जगहों पर ट्रांसपोर्टेशन हब बनाए गए। यहां से सारा कचरा ट्रेंचिग ग्राउंड पहुंचता है। शहर को स्वच्छ रखने की जिम्मेदारी सात हजार सफाईकर्मियों की है, जो सफाई में जुटे रहते हैं। इनमें से 60 प्रतिशत महिलाकर्मी हैं।
शहर को स्वच्छ बनाए रखने में इंटरनेशनल वेस्ट मैनेजमेंट के 200 कर्मी गाड़ियों से सड़कें साफ करते हैं। रात में मशीनों से पूरे शहर की 500 किलोमीटर लंबी मुख्य सड़कों की सफाई की जाती है। जो लोग सफाई अभियान में सहयोग नहीं करते, उन पर जुर्माने का प्रावधान है, अर्थात कचरे को सड़क पर अथवा अन्य स्थान पर फेंकना जुर्म है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के 'स्वच्छ सर्वेक्षण 2017' में देश में इंदौर को पहला स्थान मिला, तो उसके बाद इंदौर ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब यहां का हर नागरिक स्वयं इतना जागरूक है कि वह कचरे के लिए कचरा गाड़ी का इंतजार करता है। 350 से ज्यादा छोटी गाड़ियां पूरे शहर में घूमती रहती हैं। इन गाड़ियों पर कैलाश खेर की आवाज में गूंजते गीत अपनी मौजूदगी का अहसास करा जाते हैं।
जानकारों की मानें तो इंदौर में सबसे पहले घर घर कचरा जमा करने की मुहिम शुरू हुई। शत प्रतिशत गीले और सूखे कचरे को अलग अलग लिया जाता है। यहां कचरे को खत्म करने के लिए थ्री-आर का सहारा लिया गया, यानी रिड्यूस, रिसाइकिल और रियूज सिद्धांत लागू किया गया। इसमें रोज निकलने वाले 1100-1200 टन कचरे में से 150 टन प्रतिदिन की कमी लाने का लक्ष्य तय किया गया। शहर को डिस्पोजेबल फ्री करने की शुरुआत बीते साल 56 दुकानों के साथ हुई थी।