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क्या भारत बंद करने वाला है रूस से तेल खरीदना?

रूस, भारत के कच्चे तेल के आयात का सबसे बड़ा स्रोत है। रूसी तेल कंपनियों पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा दिया है। इसके बाद, भारतीय नियामक संस्थाएं और प्रमुख तेल रिफाइनरियां जोखिमों और विकल्पों का आकलन कर रही हैं।

DW
बुधवार, 29 अक्टूबर 2025 (08:23 IST)
मुरली कृष्णन (नई दिल्ली से)
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने रूसी तेल कंपनियों 'लुकऑइल' और 'रोजनेफ्ट' पर प्रतिबंध लगा दिया है। इससे भारत पर अपनी ऊर्जा रणनीति को नए सिरे से तय करने का दबाव बढ़ रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप ने पिछले हफ्ते सैंक्शन लगाने की घोषणा की थी।
 
ट्रंप के इन कदमों का मतलब है कि भारतीय तेल रिफाइनरियों के साथ-साथ बैंकों और शिपिंग कंपनियों के लिए भी जोखिम बढ़ गया है। अगर वे 21 नवंबर की अंतिम तिथि तक ब्लैक लिस्ट की गई इन रूसी कंपनियों के साथ अपना व्यापारिक लेन-देन खत्म नहीं करती हैं, तो उन पर भी द्वितीयक प्रतिबंध (सेकेंडरी सैंक्शन) लग सकते हैं।
 
इससे पहले, अगस्त में ट्रंप सरकार ने कहा था कि भारत लगातार रूसी तेल की खरीद कर रहा है। इस वजह से अमेरिका, भारत से आने वाली चुनिंदा वस्तुओं पर 50 फीसदी का शुल्क लगाएगा।
 
वैश्विक कारोबार का विश्लेषण करने वाली कंपनी 'केप्लर' के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल सितंबर में भारत ने प्रतिदिन लगभग 16 लाख बैरल रूसी कच्चा तेल खरीदा।
 
ट्रंप ने हालिया हफ्तों में कई बार यह भी दावा किया कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे कहा था कि भारत रूसी तेल खरीदना बंद कर देगा। मोदी सरकार ने इन दावों की न तो पुष्टि की है और न ही खंडन, सिवाय 17 अक्टूबर को भारतीय विदेश मंत्रालय के एक बयान के।
 
संबंधित बयान में जोर दिया गया कि भारत का लक्ष्य "स्थिर ऊर्जा कीमतें सुनिश्चित करना" है और "बाजार की स्थितियों के मुताबिक अपने ऊर्जा स्रोतों को व्यापक बनाना और उनमें विविधता लाना है।"
 
रूसी कच्चे तेल की खरीदारी कम करने के संकेत
मीरा शंकर, अमेरिका में भारत की पूर्व राजदूत रही हैं। उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि यह दिलचस्प है कि अमेरिकी प्रतिबंध रूसी तेल पर नहीं, बल्कि रूस की दो बड़ी ऊर्जा कंपनियों पर लगाए गए हैं। उन्होंने कहा, "वैश्विक बाजार से रूसी तेल को पूरी तरह हटा दिया जाए, तो ऊर्जा की कीमतें बढ़ जाएंगी। यह स्थिति अमेरिका या यूरोप, किसी के लिए भी राजनीतिक या आर्थिक रूप से सही नहीं होगी।"
 
मीरा शंकर आगे बताती हैं, "अधिकांश रूसी तेल, भारत में निजी कंपनियां आयात कर रही हैं। वे कोई भी फैसला अपने मुनाफे के हिसाब से लेंगी। भारत सरकार ने खरीदारी के स्रोत में विविधता लाने की अपनी कोशिशों के तहत अमेरिका से ऊर्जा खरीद बढ़ाने की पेशकश की है।"
 
रिलायंस इंडस्ट्री इस समय रूस से सबसे ज्यादा कच्चा तेल खरीदती है। रिफाइंड पेट्रोलियम, उत्पाद का सबसे बड़ा निर्यातक भी है। इस कंपनी ने संकेत दिया है कि वह 'रोजनेफ्ट' से अपनी खरीदारी कम करने की तैयारी कर रही है। पिछले हफ्ते समाचार एजेंसी 'रॉयटर्स' ने कई रिफाइनरी सूत्रों के हवाले से यह जानकारी  दी है। 
 
रिलायंस के एक प्रवक्ता ने आधिकारिक तौर पर कहा कि उनकी रिफाइनरी रूसी तेल पर हाल ही में पश्चिमी देशों की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों के 'असर का आकलन' कर रही है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वह 'लागू प्रतिबंधों और नियामक ढांचों' के अनुपालन से जुड़ी जरूरी शर्तों को पूरा करने के लिए 'रिफाइनरी के संचालन में जरूरी बदलाव' करेंगे।
 
इस अनुपालन में यूरोपीय संघ की ओर से जारी किए गए नए दिशानिर्देशों का पालन करना भी शामिल है। ये दिशानिर्देश रूसी-स्रोत वाले रिफाइंड पेट्रोलियम प्रॉडक्ट के आयात पर प्रतिबंध लगाते हैं, या उन्हें सीमित करते हैं। रिलायंस ने आगे कहा कि जब भी "भारत सरकार से कोई दिशानिर्देश" आएगा, वह उसका "पूरी तरह से पालन" करेगा।
 
ट्रंप ने बढ़ाया दबाव
साल 2022 में यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद, भारत ने भारी छूट पर रूसी कच्चा तेल खरीदना शुरू कर दिया। इससे रूस अब भारत के कच्चे तेल के आयात का सबसे बड़ा स्रोत बन गया है। जबकि, यूक्रेन युद्ध से पहले भारत आने वाले कच्चे तेल में रूसी तेल की हिस्सेदारी बेहद कम थी। भारत में मुख्य रूप से मध्य पूर्व से तेल आता था।
 
भारत की ओर से खरीदे जाने वाले रूसी कच्चे तेल की कीमत अब थोड़ी बढ़ गई है, फिर भी सस्ते रूसी तेल के आयात से भारत को अरबों डॉलर की बचत हुई है। हालांकि, रूस के युद्ध का समर्थन करने के लिए भारत की आलोचना की गई है, लेकिन पश्चिमी देशों ने वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों में स्थिरता लाने के लिए रूसी कच्चे तेल के आयात का अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन किया है। अब ट्रंप सरकार, रूसी सरकार के खजाने पर और दबाव बना रही है। 
 
अमेरिकी वित्त मंत्रालय ने कहा कि इस कदम का मुख्य लक्ष्य यह है कि 'युद्ध से जुड़ी गतिविधियों के लिए धन जुटाने की रूसी सरकार की क्षमता को कम किया जाए।'
 
ऐसे में भारत को अब यह फैसला लेना है कि क्या वह रूसी तेल की खरीद जारी रखकर अमेरिका के सेकेंडरी सैंक्शन का जोखिम लेगा, या फिर अमेरिका के साथ होने वाले एक संभावित महत्वपूर्ण व्यापार समझौते को पूरा करने के लिए रूसी तेल से दूरी बना लेगा।
 
दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर अरुण कुमार ने डीडब्ल्यू को बताया, "भारत के पास अमेरिकी प्रतिबंधों के आगे झुकने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि इससे हमारे बैंकों और ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियों पर द्वितीयक प्रतिबंध लगने का खतरा है। अतीत में भी अमेरिका ने भारत से कहा था कि वह ईरान और वेनेजुएला से तेल आयात बंद कर दे। भारत ने ऐसा किया भी था।"
 
अन्य किन देशों से तेल खरीद सकता है भारत?
लेखा चक्रवर्ती, दिल्ली स्थित राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान की प्रोफेसर और अध्यक्ष हैं। उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि रिलायंस जैसी भारतीय रिफाइनरियां पहले से ही रूस से आने वाले कच्चे तेल की भरपाई के लिए मध्य पूर्व से अधिक आयात कर रही हैं।
 
उन्होंने आगे कहा, "हम पहले ही देख रहे हैं कि इराक के बसरा मीडियम कच्चे तेल की खरीद में भारी उछाल आया है, जो अब भारत के कुल तेल आयात का लगभग 20 फीसदी है। इसके साथ ही सऊदी अरब और यूएई से कुल 22 फीसदी तेल का आयात हो रहा है।"
 
लेखा चक्रवर्ती बताती हैं, "ऊर्जा स्रोतों में किया गया यह रणनीतिक बदलाव बाजार में आपूर्ति को स्थिर बनाए रखने में तो मदद करेगा, लेकिन इसके लिए एक बड़ी आर्थिक कीमत चुकानी पड़ सकती है। ईंधन की बढ़ती कीमतें भारत के सात फीसदी विकास लक्ष्य में बाधा डाल सकती हैं। साथ ही, विनिर्माण तथा परिवहन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में लाभ को कम कर सकती हैं।"
 
उन्होंने बताया, "वैश्विक चुनौतियां बढ़ने के कारण, भारत की आर्थिक गति कुछ समय तक के लिए धीमी पड़ने की संभावना है। रियायती दर पर मिलने वाले सस्ते रूसी तेल से दूर हटने का यह कदम विकास के लिए लाभकारी नहीं है। लेकिन, ये परेशानियां अस्थायी हैं और भारत इनसे निपटने के लिए तेजी से बदलाव करने में सक्षम है।"
 
हालांकि, लेखा चक्रवर्ती ने इस बात पर जोर दिया कि भारत के पास 700 अरब डॉलर का बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार है। इसके अलावा, भारत अपने व्यापारिक संबंधों में तेजी से विविधता ला रहा है और अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर सक्रिय रूप से बातचीत चल रही है। इन सब कारणों से भारत की आर्थिक चुनौतियों से निपटने की क्षमता मजबूत बनी हुई है।
 
उन्होंने बताया, "भारत अपनी तेल खरीद की व्यवस्था को तेजी से बदल रहा है। इसके साथ ही, वह आपसी व्यापारिक शुल्कों पर समझौता कर रहा है। क्षेत्रीय साझेदारियों को मजबूत कर रहा है। इन कदमों से भारत भू-राजनीतिक रूप से अलग-थलग पड़ने के जोखिम को कम कर रहा है। यह भारत की उस क्षमता को साबित करता है कि वह वैश्विक गठबंधन के दबाव के बावजूद किसी भी झटके का सामना करने में सक्षम है।"
 
भारत की रणनीतिक स्वायत्तता
अजय बिसारिया, पूर्व भारतीय राजनयिक और अब भू-राजनीति पर कॉर्पोरेट सलाहकार हैं। उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि भारत ऊर्जा नीति को लेकर दीर्घकालिक रणनीति पर काम कर रहा है। उसका मुख्य उद्देश्य आपूर्ति स्रोतों और व्यापारिक फैसलों में अधिकतम लचीलापन बनाए रखना है।
 
उन्होंने कहा, "ऊर्जा के प्रति भारत का दृष्टिकोण रणनीतिक स्वायत्तता पर आधारित है, जिसका लक्ष्य हमेशा अपने उपभोक्ताओं के लिए सबसे किफायती तेल उपलब्ध कराना रहा है। आदर्श रूप से, भारत एक ऐसा वैश्विक बाजार चाहता है जहां ऊर्जा के स्रोत आसानी से बदले जा सकें। हालांकि, भू-राजनीतिक हकीकत और अमेरिकी नीति में अप्रत्याशित बदलावों ने अब इस पूरी स्थिति को काफी जटिल बना दिया है।"
 
बिसारिया ने आगे बताया, "हालांकि, भारत मध्यम अवधि में रूसी तेल खरीदने से इनकार नहीं कर रहा है, लेकिन नए अमेरिकी प्रतिबंधों ने इस क्षेत्र में काम कर रही भारतीय कंपनियों के लिए बड़ी बाधाएं पैदा कर दी हैं। फिर भी, सरकार रूसी आयात को रोकने के लिए कंपनियों को स्पष्ट आदेश देने से बच रही है। इससे वह आपूर्ति में लचीलापन और अंतरराष्ट्रीय मामलों में अपनी सौदेबाजी की शक्ति, दोनों को बरकरार रख पाएगी।"
 
भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर जारी बातचीत के बीच रूसी तेल आयात को रोकने से कूटनीतिक राहत मिलेगी। साथ ही, यह लचीलापन भी बना रहेगा कि जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हालात सुधरेंगे, तो भारत फिर से रूसी तेल आयात कर पाएगा।
 
बिसारिया कहते हैं, "जब ये प्रतिबंध हटा लिए जाएंगे, तो व्यापार पहले की तरह सामान्य रूप से शुरू हो जाएगा। ये पाबंदियां भारत के लिए फैसले लेना सिर्फ मुश्किल बनाएंगी, लेकिन भारत को मजबूरन कोई फैसला लेने के लिए बाध्य नहीं करेंगी।"
 
'टाइम्स ऑफ इंडिया' अखबार से बात करते हुए भारतीय विश्लेषकों ने कहा कि उन्हें रूसी कच्चे तेल के आयात में निकट भविष्य में गिरावट की उम्मीद है, लेकिन रिफाइनरियां बिना प्रतिबंध वाले तीसरे पक्ष के मध्यस्थों के माध्यम से रूसी तेल खरीदना जारी रखेंगी।
 
फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि यह पूरी परिस्थिति कब और किस पैमाने तक बदलेगी। इसके अलावा, यह अनिश्चितता भी बनी हुई है कि क्या अमेरिका भविष्य में आपूर्ति के इन वैकल्पिक मार्गों को भी प्रतिबंधों के दायरे में ला सकता है।

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