कोविड के टीकों पर माहवारी की मुश्किलें

DW
शनिवार, 15 जनवरी 2022 (09:08 IST)
रिपोर्ट:  सोन्या अंगेलिका डीन
 
कोविड का टीका लगने के बाद अनियमित माहवारी झेल चुकीं सोन्या अंगेलिका डीन को अब थोड़ा भरोसा जगा है कि उन पर जो बीती थी उसकी तसदीक वैज्ञानिक तौर पर भी हो गई है। लेकिन इसमें इतना लंबा समय कैसे लगा?
 
कोविड का टीका लगाने के विश्वव्यापी आह्वानों के बीच सेहत से जुड़े कुछ नाजुक मुद्दों और साइड इफेक्ट की परवाह भी नहीं की गई। माहवारी ऐसा ही एक विषय है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय अध्ययन ने टीकाकरण के अंध-समर्थकों और चिकित्सा विशेषज्ञों की आंखें खोल दी हैं। कोविड-19 का टीकाकरण शुरू होने के बाद, ऐसी घटनाएं सामने आने लगीं जिनमें पता चला कि कुछ औरतों को टीका लगने के बाद मासिक चक्र में बदलाव का अनुभव हो रहा था।
 
लंबे समय से इस पर मीडिया का ध्यान नहीं गया और बहुत सारे चिकित्सा विशेषज्ञ जनता को ये विश्वास दिलाते रहे कि कोविड टीकों से ऐसे कोई साइड अफेक्ट नहीं होते हैं। ऐसी घटनाएं सिर्फ आपसी बातचीत, इंटरनेट फोरमों और सोशल मीडिया तक ही सीमित रह गईं। मुझे बायोनटेक-फाइजर का पहला टीका गर्मियों में लगा था। वैसे तो कुछ लोगों ने मुझे बताया था कि टीका लगने के बाद वे कितना बीमार महसूस कर रहे थे, लेकिन मुझे तसल्ली थी कि मेरे साइड इफेक्ट हल्के-फुल्के ही थे।
 
एक महीने बाद, मुझे दूसरा टीका लगा और उसके बाद मैं अपने परिवार के साथ छुट्टियों पर निकल गईं। यात्रा की शुरुआत में ही मेरे पीरियड आ जाने चाहिए थे। एक दिन मुझे काफी ज्यादा ब्लीडिंग हुई, अगले दिन एक बूंद भी नहीं। फिर एक सप्ताह से ज्यादा समय तक यानी करीब करीब पूरी छुट्टियों के दौरान मेरा खून बहता रहा। ब्लीडिंग बहुत ज्यादा हो रही थी और दर्द भी ज्यादा हो रहा था। मेरे लिए ये सामान्य बात नहीं थी।
 
मैं डर गई थी। मैंने एमआरएनए टीकों के बारे में खून संबंधी बहुत दुर्लभ साइड अफेक्ट के बारे में सुना था। इसे इम्यून थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया कहते हैं, प्लेटलेट्स की कमी। मुझे चिंता होने लगी कि मेरे साथ भी कहीं वही तो नहीं हो रहा था। योनि में अत्यधिक रक्तस्राव उसका एक संभावित लक्षण है। मैं घबराकर गूगल डॉक्टर की बेशुमार सलाहें टटोलने लगी थी। आखिरकार ब्लीडिंग रुक गई और मेरा महापीरियड पूरा हुआ। मुझे लगता था कि वो सिर्फ मेरे अकेले का डर और घबराहट थी, लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं था।
 
कोविड टीकों से माहवारी पर असर पड़ सकता है
 
अपनी तरह के पहले, महिलाओं की अगुवाई वाले और विशेषज्ञों से समीक्षित अध्ययन में माहवारी वाले लोगों के अनुभवों के हवाले से इस बात की तसदीक हो चुकी है कि कोविड-19 निरोधी टीके, पीरियड पर असर डालते हैं। ऐसी करीब 4,000 महिलाएं जिनमें से कुछ को टीके लगे हैं और कुछ को नहीं, उन सभी के डाटा की मदद से, माहवारी के एक ट्रैकिंग ऐप का इस्तेमाल करते हुए शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन्हें नया नया टीका लगा है उनके पीरियड में चिकित्सकीय लिहाज से अहम बदलाव आया है यानी उनके पीरियड औसतन एक दिन ज्यादा तक खिंच जाते हैं।
 
इस शोध से मेरी जैसी औरतों ने राहत की सांस ली है। जो मैंने अनुभव किया वो असामान्य था, लेकिन सामान्य हो गया। फिर भी मेरे पास बहुत सारे सवाल हैं। सबसे अहम बात ये कि हम लोगों को टीका लगाने से पहले उसके संभावित साइड इफेक्ट के बारे में क्यों नहीं बताया गया? पता ये चला है कि मासिक धर्म से जुड़ी सूचना कोविड-19 टीकों के क्लिनिकल अध्ययनों में दर्ज नहीं की गई है।
 
वैक्सीन लेने वालों को अपने साइड इफेक्ट्स खुद ही दर्ज करने की सुविधा देने वाले अमेरिका स्थित डाटाबेस वायेर्स (वीएईआरएस) में भी माहवारी के साइड इफेक्ट ट्रैक नहीं किए जाते हैं। ये बहुत परेशानी की बात है। औरतों को भी सुना जाना चाहिए और हर किसी को सूचित किया जाना चाहिए। महिलाओं की सेहत में इसकी अहमियत के बावजूद पीरियड के बारे में बातें करना अक्सर वर्जित रहा है। 
 
सही शिकायतें भी दरकिनार
 
प्रजनन की उम्र आने पर स्त्रियों में माहवारी सबसे बुनियादी पैमानों में से एक है। लिहाजा उसमें किसी तरह का बदलाव होता है तो वो एक बड़ी महत्त्वपूर्ण बात मानी जाती है। इसके बावजूद मासिक धर्म को लेकर वर्जनाएं कायम हैं। टीके लगने के बाद माहवारी के साइकल में बदलाव की रिपोर्टों की बार बार अनदेखी की गई है या उन्हें खारिज किया जाता रहा है। खासकर टीकाकरण के समझदार समर्थकों ने भी, प्रजनन क्षमता को नुकसान पहुंचाने से जुड़ी भ्रांतियों का जवाब देने के चक्कर में, टीके से जुड़े उपरोक्त तथ्य को नजरअंदाज किया है।
 
माहवारी से जुड़ा अध्ययन जारी होने के बाद भी, मैं देख रही थी कि उसके नतीजों को कमतर दिखाने वाली हेडलाइनें आ रही हैं। जाहिर है, कुछ लोगों को अपने मासिक चक्र में कोई बदलाव नहीं अनुभव किया या कुछ ने बिलकुल भी गौर नहीं किया। लेकिन सूचना के अभाव का उन लोगों पर बड़ा पक्का मनोवैज्ञानिक असर पड़ा हो सकता था जिनका पीरियड साइकल गड़बड़ा गया था और जिन्हें पता नहीं था कि ऐसा क्यों हुआ। हो सकता है वे गर्भधारण करने की कोशिश कर रही हों या शायद वे गर्भ से परहेज कर रही हों। या शायद मेरी तरह वे 'नियमित' माहवारी में गड़बड़ी पर घबरा गई या डर गई हों।
 
महिलाओं की बातों को गंभीरता से लें
 
टीकों से जुड़ी आलोचनाओं या एहतियातों को अक्सर अतार्किक, बेतुके या साजिशी सिद्धांतकारों की भ्रांतियां कहकर दरकिनार कर किया जाता है। लेकिन किसी न्यायसंगत या जायज मुद्दे पर बेहिचक या सजा सुनाए बगैर, चर्चा किए जाने की संभावना बनी रहनी चाहिए। टीकों को लेकर जारी सांस्कृतिक लड़ाइयों की पृष्ठभूमि के खिलाफ, मैं टीकाकरण की प्रबल पक्षधर हूं। लेकिन मुझे जो अनुभव हुआ उससे मेरा विचार डगमगा गया है।
 
मैं ये नहीं मानती हूं कि यहां पर विज्ञान फेल हो गया है, मुझे लगता है कि लोग फेल हुए हैं। टीकों को सुरक्षित बताने के जोश और आवेश में, वैक्सीन समर्थकों ने वास्तविक अनुभवों की उपेक्षा की है। चिकित्सा विशेषज्ञों ने जरूरी और जायज चिंताओं को अनसुना किया है। नतीजतन ये संभव है कि कुछ महिलाओं का टीकाकरण पर भरोसा उठ चुका हो। हमें पीरियडों से जुड़ी चर्चाओं पर मंडराते निषेधों को हटाना होगा। हमें शिक्षा और स्वास्थ्य कल्याण में स्त्री प्रजनन स्वास्थ्य के मुद्दे को और अधिक केंद्र में लाना होगा।
 
समाज को और विज्ञान को, स्त्रियों की बात सुननी होगी। वे ऐसा नहीं करेंगे तो तकलीफ सहेंगे।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरूर पढ़ें

मेघालय में जल संकट से निपटने में होगा एआई का इस्तेमाल

भारत: क्या है परिसीमन जिसे लेकर हो रहा है विवाद

जर्मनी: हर 2 दिन में पार्टनर के हाथों मरती है एक महिला

ज्यादा बच्चे क्यों पैदा करवाना चाहते हैं भारत के ये राज्य?

बिहार के सरकारी स्कूलों में अब होगी बच्चों की डिजिटल हाजिरी

सभी देखें

समाचार

Rajasthan: BJP ने 7 में से 5 सीटों पर हासिल की जीत, BAP के खाते में 1 सीट

LIVE: विनोद तावड़े बोले- आज रात या कल तक तय हो जाएगा महाराष्ट्र का CM

UP विधानसभा उपचुनावों में BJP की जीत का श्रेय योगी ने दिया मोदी को

अगला लेख