चिटफंड घोटाले की जांच के मुद्दे पर केंद्रीय जांच ब्यूरो और कोलकाता पुलिस के बीच हुई लड़ाई के तीन पहलू हो गए हैं। यह लड़ाई केंद्र बनाम राज्य और बीजेपी बनाम तृणमूल कांग्रेस भी हो गई है।
केंद्र की मोदी सरकार और पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार में टकराव तो बीते तीन-चार साल से चल रहा था। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हमलावर रुख और उसके बाद कोलकाता के पुलिस आयुक्त के घर पहुंची सीबीआई टीम ने इस टकराव की आग में घी डालने का काम किया है। अब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जहां इसके विरोध में धरने पर बैठी हैं, वहीं सुप्रीम कोर्ट में भी लड़ाई शुरू हो गई है। वहां मंगलवार को इस विवाद पर सुनवाई होगी। दूसरी ओर, संसद में भी सोमवार को इस मुद्दे पर जमकर हंगामा हुआ।
मुख्यमंत्री धरने पर
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई पश्चिम बंगाल में शारदा व रोजवैली चिटफंड घोटाले की जांच कर रही है। इसी सिलसिले में पूछताछ के लिए रविवार शाम को सीबीआई टीम कोलकाता के पुलिस आयुक्त के घर पहुंची थी। लेकिन वहां पुलिसवालों के साथ धक्कामुक्की के बाद उन सबको थाने ले जाकर तीन घंटे तक बिठाए रखा गया। उसके बाद ममता भी पुलिस आयुक्त के घर पहुंच गईं। उन्होंने वहीं से धरना शुरू करने का एलान किया।
राज्य में सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस ने बीती रात से ही राज्य के विभिन्न इलाकों में प्रदर्शन और रेल रोको अभियान शुरू कर दिया है। ममता ने केंद्र की बीजेपी सरकार पर बदले की राजनीति से प्रेरित होकर काम करने का आरोप लगाया है। उन्होंने इस घटना के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल को जिम्मेदार ठहराया है।
ममता की दलील है, "चिटफंड घोटाले की जांच मेरी सरकार ने शुरू की थी और कई ऐसी कंपनियों के मालिकों को गिरफ्तार किया था। सीबीआई वर्ष 2013 से ही सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इस घोटाले की जांच कर रही है। लेकिन चुनाव नजदीक आते ही केंद्र के इशारे पर यह जांच एजेंसी सक्रिय हो जाती है।” उनका आरोप है कि केंद्र सरकार यहां संवैधानिक संकट पैदा करने का प्रयास कर रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की राज्य के मामलों में कथित रूप से बढ़ती दखलंदाजी के विरोध में ममता महानगर के धर्मतल्ला इलाके में धरने पर हैं। यह वही जगह है जहां उन्होंने सिंगुर के किसानों की जमीन लौटाने की मांग में भूख हड़ताल की थी। मुख्यमंत्री का कहना है कि राज्य में चिटफंड का धंधा 1980 में लेफ्टफ्रंट सरकार के जमाने से चल रहा था। लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद कई चिटफंड कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की। इसकी जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया और न्यायिक आयोग बनाया गया। ठगी के शिकार लोगों के पैसे लौटाने के लिए सरकार ने तीन सौ करोड़ का एक कोष भी बनाया था। ममता कहती हैं, देश, संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए उनका धरना जारी रहेगा।
बीती 19 जनवरी को ममता की महारैली में शामिल तमाम राजनीतिक दलों व नेताओं ने भी ममता का समर्थन किया है। इनमें शिवसेना भी शामिल है।
पुराना है टकराव
बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस में टकराव कोई नया नहीं है। बीते लोकसभा चुनावों के समय से ही दोनों के बीच खटास लगातार बढ़ती रही है। नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुद्दों पर ममता के मुखर विरोध और राज्य में बीजेपी के बढ़ते असर ने इस खाई को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। इन तमाम मुद्दों पर ममता जहां नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पर हमले करती रहीं, वहीं बीजेपी के शीर्ष नेता भी ममता, तृणमूल कांग्रेस और राज्य सरकार पर हमले करते रहे। बीते सप्ताह बंगाल दौरे पर आए अमित शाह ने ममता सरकार पर राज्य में लोकतंत्र का गला घोंटने का आरोप लगाया तो शनिवार को यहां पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ममता बनर्जी और उनकी सरकार पर बेहद आक्रामक अंदाज में हमला बोला।
ममता कहती हैं, "प्रधानमंत्री ने अपने भाषणों में अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल किया है। इस पद पर बैठे किसी व्यक्ति को ऐसी भाषा शोभा नहीं देती।” अब ताजा विवाद के बाद बीजेपी नेताओं ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की है। दूसरी ओर, ममता ने चुनौती दी है कि अगर केंद्र में हिम्मत है तो वह ऐसा कर दिखाए। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख का आरोप है कि मोदी व शाह राज्य में तख्तापलट का प्रयास कर रहे हैं, जबकि सत्ता सौंपने या छीनने का फैसला जनता करती है।
क्या था चिटफंड घोटाला
बंगाल में शारदा व रोजवैली समूह के मालिकों ने चिटफंड योजनाओं के जरिए आम लोगों से करोड़ों वसूले थे। इस मामले में तृणमूल कांग्रेस और लेफ्टफ्रंट के कई नेताओं पर भी पैसे लेने के आरोप लगे थे। तृणमूल कांग्रेस सरकार ने वर्ष 2013 में इन मामलों की जांच शुरू की थी। उसके बाद दोनों कंपनियों के मालिकों को गिरफ्तार किया गया था। वह फिलहाल जेल में हैं।
सरकार ने इन घोटालों की जांच के लिए जिस विशेषज्ञ जांच टीम (एसआईटी) का गठन किया था मौजूदा पुलिस आयुक्त राजीव कुमार उसके मुखिया थे। बाद में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी। लेकिन सीबीआई बीते दो-तीन साल से जांच में राज्य पुलिस व प्रशासन पर असहयोग के आरोप लगाती रही है। जांच एजेंसी का आरोप है कि इस मामले के कई अहम सबूत या तो गायब हैं या फिर नष्ट कर दिए गए हैं। वह इसी मामले में राजीव कुमार से पूछताछ करना चाहती है। लेकिन ममता बनर्जी ने इसे अपनी नाक का सवाल बना लिया है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि सीबीआई के बहाने केंद्र व राज्य सरकार के बीच पैदा होने वाला यह टकराव लोकसभा चुनावों तक और तेज होगा। एक विश्लेषक मनोहर गोस्वामी कहते हैं, "इस मामले में कोई भी झुकने को तैयार नहीं है। ऐसे में तमाम निगाहें अब सुप्रीम कोर्ट की ओर टिकी हैं। वहां कल सुबह इस मुद्दे पर सुनवाई होनी है।''