लॉकडाउन में मरे होंगे 2,67,000 से ज्यादा शिशु: रिपोर्ट

DW
शुक्रवार, 27 अगस्त 2021 (10:34 IST)
कोरोनावायरस ने बच्चों को सीधे तौर पर तो प्रभावित नहीं किया लेकिन पाबंदियों के जरिए जानें बहुत लीं। एक रिपोर्ट कहती है कि आर्थिक पाबंदियों ने शिशुओं की जानें लीं। कोरोनावायरस को फैलने से रोकने के लिए जो आर्थिक पाबंदियां लगाई गईं, उनके कारण कम विकसित और गरीब देशों में 2 लाख 67 हजार ज्यादा शिशुओं की जान गई होगी। वर्ल्ड बैंक ने ऐसा अनुमान जाहिर किया है।
 
ब्रिटिश 'मेडिकल जर्नल' में छपे वर्ल्ड बैंक के शोध के मुताबिक गरीब और मध्यम आय वाले देशों में कोरोनावायरस के कारण लगीं पाबंदियों का घातक असर हुआ है। इन पाबंदियों ने आर्थिक असमानता और गरीबी तो बढ़ाई ही है, पिछले सालों के मुकाबले ज्यादा औसत जानें भी लीं।
 
स्वास्थ्य सेवाओं पर असर
 
इस रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल आर्थिक पाबंदियों ने औसत से 2,67,000 ज्यादा शिशुओं की जानें ली होंगी। वैसे वायरस का शिशुओं की मौत पर सीधा असर बहुत कम हुआ है, लेकिन इस बात की आशंका बहुत ज्यादा है कि 'आर्थिक प्रभावों और स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़े असर के कारण' ज्यादा शिशुओं की जानें गईं।
 
रिपोर्ट कहती है कि 128 देशों में शिशु मृत्यु दर में लगभग 7 फीसदी की वृद्धि का अनुमान है। बदलती अवधि और गंभीरता वाली पाबंदियों ने अमीर और गरीब, ज्यादातर देशों की जीडीपी को प्रभावित किया है। ज्यादातर देशों में कोरोनावायरस को प्राथमिकता देने के कारण अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं को या तो कम कर दिया गया या पूरी तरह बंद कर दिया गया।
 
वर्ल्ड बैंक के शोधकर्ता कहते हैं कि कोरोनावायरस की रोकथाम और इलाज के लिए कोशिशों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए लेकिन देशों को 'सामाजिक सुरक्षा को मजबूत करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि जरूरी स्वास्थ्य सेवाएं' उपलब्ध रहें।
 
जीडीपी गिरावट से बढ़ी गरीबी
 
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि गरीब और मध्यम आय वाले देशों में जीडीपी में एक प्रतिशत की गिरावट से हर हजार बच्चों पर मृत्यु दर में 0.23 फीसदी की वृद्धि होती है। इन देशों में लॉकडाउन के कारण हो रही आर्थिक तंगी से निपटने के लिए जरूरी धन नहीं था।
 
इससे पहले भी वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट आई थी जिसमें कहा गया था कि महामारी और लॉकडाउन ने दुनियाभर में 1.2 से 1.5 करोड़ लोगों को गरीबी में धकेल दिया है। जून में बैंक ने अनुमान जारी किया था कि 2020 में जीडीपी साढ़े तीन फीसदी की गिरावट के बाद इस साल वैश्विक अर्थव्यवस्था 5.6 फीसदी की दर से बढ़ सकती है। लेकिन यह चेतावनी भी जारी की गई है कि गरीब देशों को एक असमान आर्थिक बहाली से गुजरना होगा।
 
वीके/एए (डीपीए, रॉयटर्स)

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