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क्या औरतों को है मस्जिदों में जाने की इजाजत?

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, मंगलवार, 16 अक्टूबर 2018 (12:32 IST)
क्या आपने कभी महिलाओं को मस्जिद में जा कर नमाज अदा करते देखा है? क्या इस्लाम महिलाओं की ऐसा करने की इजाजत नहीं देता? हमने इस सवाल का जवाब जानना चाहा।
 
 
पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने केरल में स्थित सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दे दी। उससे दो साल पहले मुंबई स्थित हाजी अली दरगाह में महिलाओं की एंट्री गर्भगृह तक भी कोर्ट के आदेश के बाद ही संभव हो सकी। इसके बाद केरल में ही हिंदू महासभा ने कोर्ट में मुस्लिम महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश के लिए पेटिशन डाली।
 
 
महिलाओं के पक्ष में कई फैसले आने के बाद अब आवाज उठ रही है कि मुस्लिम महिलाओं को मस्जिद में नमाज पढ़ने दिया जाए। धीरे धीरे ये आवाज सभी मस्जिदों में पहुंचने लगी है। ये सुगबुगाहट कहीं बढ़ कर तेज ना हो जाए, उससे पहले ही ज्यादातर मुस्लिम धर्मगुरु महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश और नमाज के पक्ष में आ गए हैं। लेकिन क्या ये वाकई संभव है?
 
 
मुस्लिम धर्मगुरुओं का मत
लखनऊ में सुन्नियों के सबसे प्रतिष्ठित धर्मगुरु मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली कहते हैं कि इस्लाम महिलाओं को मस्जिद में नमाज अदा करने की इजाजत देता है। वे कहते हैं, "बड़ी तादाद में मुस्लिम औरतें मस्जिदों में नमाज अदा करती हैं। कुछ दिनों में के लिए जब औरत नापाक (माहवारी के दौरान) होती है, तो मस्जिद में आना मना है। तब उनके लिए नमाज भी माफ है। ये जो बेबुनियाद बातें उठाई जा रही हैं, मैं उसकी निंदा करता हूं।"
 
 
वे आगे कहते हैं, "अब ये फैशन बन गया है कि मजहब के बुनियादी उसूल के खिलाफ आवाज उठाई जाए। नापाकी की हालत में मर्द हो या औरत कोई मस्जिद नहीं आ सकता।" फरंगी महल लखनऊ में ऐशबाग ईदगाह के इमाम भी हैं।
 
 
शिया धर्मगुरु मौलाना सैफ अब्बास का मानना है कि औरतें मस्जिद में नमाज पढ़ सकती हैं लेकिन कुछ शर्ते हैं। वे कहते हैं, "औरत और मर्द एक मस्जिद में नमाज पढ़ सकते हैं लेकिन पर्दा जरूरी है। जैसे औरतों और मर्दों के दरवाजे अलग अलग हों। उनका नमाज पढ़ने का हॉल अलग अलग हो। बेपर्दगी नहीं होनी चाहिए वरना नमाज कम और अजाब होगी।" सैफ अब्बास इस समय शिया मरकजी चांद कमेटी के अध्यक्ष भी हैं।
 
 
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के दीनियात विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ रेहान अख्तर के अनुसार इस्लाम में औरत को बराबरी का दर्जा दिया गया है और वे नमाज पढ़ सकती हैं। उनके अनुसार बहुत सी ऐसी मस्जिदें हैं जहां औरतें जा कर नमाज पढ़ती हैं।
 
 
क्या संभव है?
प्रतीकात्मक तौर पर कुछ जगह पर ये शुरू किया जा चुका है। लेकिन एक–दो बार मीडिया में फोटोग्राफी करवाने के बाद ये जारी नहीं रह सका। पिछले सालों में ऐशबाग ईदगाह में औरतों के लिए अलग सेक्शन बनाया जा चुका है। एक जुमे की नमाज शिया औरतों ने एतिहासिक आसफी मस्जिद में भी अदा करी। अन्य शहर जैसे जयपुर में भी मस्जिद में औरतों के लिए एक हाल जामा किया गया। लेकिन ये सब रोज नहीं चल पाया।
 
 
मौलाना सैफ अब्बास इस बारे में बताते हैं, "अलग एंट्रेंस होनी चाहिए, बीच में पार्टीशन हो। आसफी मस्जिद में ये सब टेंपररी पर्दा डाल कर बनाया गया था। हमारे देश में जो मस्जिदें हैं वो इस बात को ध्यान में रख कर नहीं बनी हैं। गल्फ में ऐसी मस्जिदें बनाई गई हैं जहां औरते नमाज पढ़ कर कब चली जाती हैं, पुरुष जान ही नहीं पाते।"
 
 
नमाज इस्लाम धर्म के पांच स्तंभों में से एक है। दिन में पांच बार नमाज अदा करनी होती है। जुमे के दिन विशेष नमाज होती है। मस्जिद में जमात के साथ नमाज अदा करने के अलग नियम हैं। लेकिन ज्यादातर मस्जिदों का संचालन पुरुषों के हाथ में है। मस्जिद में एक मुआज्जिन्न (अजान देने वाला) होता है और एक इमाम (जो नमाज पढ़ाता है)। ये दोनों पुरुष ही हैं और शायद ही कहीं औरत नमाज की इमामत करती हो।
 
 
पिछले दिनों केरल में जामिदा नाम की महिला ने जुमे की नमाज की इमामत की थी और "पहली मुस्लिम महिला इमाम" के रूप में खूब सुर्खियां बटोरी थी। इसके अलावा मस्जिद की प्रबंधन समिति में शायद ही कहीं कोई मुस्लिम महिला हो।
 
 
उत्तर प्रदेश सेंट्रल शिया वक बोर्ड के चेयरमैन सय्यद वसीम रिजवी के अनुसार उनके यहां लगभग पांच हजार वक्फ रजिस्टर्ड हैं लेकिन उन्हें किसी महिला मुतवल्ली (केयरटेकर) का नाम याद नहीं।
 
 
रिजवी कहते हैं, "ध्यान पड़ता है, हमने किसी महिला को किसी मस्जिद में मुतवल्ली जरूर बनाया हैं। यह एक रिवाज है कि औरतें नमाज पढ़ने मस्जिद नहीं जाती हैं। वो जाने लगें तो इंतजाम  भी हो जाएंगे। हज के दौरान औरत मर्द एक साथ नमाज पढ़ते हैं। अब काबा शरीफ से बड़ी तो कोई जगह नहीं हैं।"
 
 
औरतों की अलग मस्जिद
अब जब औरतों के अनुसार और शर्तों के अधीन कोई मस्जिद ही नहीं है, तो औरत मस्जिद में नमाज पढ़ने कैसे जाए? लखनऊ में ठाकुरगंज की निवासी मुस्लिम गृहणी सय्यदा खतीजा मानती हैं कि मुस्लिम औरतों को मस्जिद में जाना चाहिए, "अगर हम बाजार में हैं और नमाज का वक्त हो जाए, तो हम पास की किसी मस्जिद में जाकर नमाज नहीं पढ़ सकतीं क्योंकि एक तो आप बिलकुल अलग दिखेंगी और दूसरा कहीं पर कोई व्यवस्था नहीं हैं। सिर्फ इस्लाम इजाजत देता है, ये कह देने से नहीं होगा। जमीन पर क्या हालात हैं, ये देखिए।"
 
 
लखनऊ में औरतों के लिए विशेष प्रबंध के साथ अलग मस्जिद बनाई जा चुकी है। लेकिन वो दक्षिण लखनऊ में स्थित है। इसको बनानी वाली हैं शाइस्ता अंबर, जो ऑल इंडिया मुस्लिम वुमेन पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्षा हैं। शाइस्ता की बनाई हुई मस्जिद में कोई भी जा सकता है और नमाज पढ़ सकता है। इसमें महिलाएं सहज तरीके से जाती हैं और नमाज पढ़ती हैं लेकिन उनकी संख्या कम है।
 
 
अंबर इस मुद्दे पर कहती हैं, "गलती हमारी ही है। हमने आसानी का गलत फायदा उठाया और दीन को मुश्किल कर दिया। दीन को समझा नहीं। क्या हो जाता अगर मोहल्ले की मस्जिद में जुमे के दिन ही औरतों के लिए अलग इंतजाम कर दिया जाता। हमारी मस्जिद में औरतें आती हैं और दीन सीखती हैं।"
 
 
इसके अलावा लखनऊ में नमाज के वक्त आपको शायद ही कहीं औरतें मस्जिद जाती दिखें। इस्लाम इजाजत दे रहा है, तो फिर रोक कौन रहा है? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं हैं।
 
 
रिपोर्ट फैसल फरीद 
 
 

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