बिजली के जरिये नेपाल में चीन को जवाब दे रहा है भारत

DW
शुक्रवार, 26 मई 2023 (08:04 IST)
नेपाल की पनबिजली क्षमताओं से फायदा उठाने में चीन और भारत में होड़ मची है। फिलहाल इस होड़ में भारत चीन से आगे है। कई विशेषज्ञ और उद्योग से जुड़े लोगों को डर है कि इन ताकतवर देशों की होड़ कहीं नेपाल का नुकसान ना करा दे।
 
बीते कुछ सालों में नेपाल ने नदियों को संसाधन की तरह देखना शुरू किया है। उसका इरादा देश में बिजली की कमी को पूरा करने और अतिरिक्त ऊर्जा का निर्यात करने का है ताकि अर्थव्यवस्था को विकास के रास्ते पर रफ्तार दी जा सके। नेपाल में कुल 42000 मेगावाट पनबिजली उत्पादन की क्षमता  है।
 
चीन और भारत की नेपाल में होड़
चीन और भारत लंबे समय से पड़ोसी देश नेपाल पर अपने प्रभुत्व के लिए कोशिशों में जुटे हैं। इन कोशिशों का नतीजा पिछले दशक में अरबों डॉलर की पनबिजली परियोजनाओं के रूप में सामने आया है। हालांकि भारत इसमें चीन से आगे दिखाई दे रहा है क्योंकि उसने नेपाल की बिजली खरीदने के लिए ज्यादा करार हासिल कर लिये हैं।
 
नियमों के तहत भारत नेपाल से वह बिजली नहीं खरीद सकता जिसमें चीन की सहभागिता या फिर निवेश हो। अब यह भागीदारी उपकरण, मजदूर या सबकंट्रैक्टर चाहे जिस रूप में हो।
 
राजनीति और ऊर्जा के जानकारों का कहना है कि भारत नेपाल के पनबिजली संसाधनों पर नियंत्रण चाहता है ताकि इलाके में चीन के प्रभुत्व को बढ़ने से रोका जा सके। नेपाल की त्रिभुवन यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंध और कूटनीति के प्रोफेसर खड़का के सी का कहना है, "भारत कई तरीकों से अपना प्रभुत्व फिर से कायम करने की कोशिश में है, इनमें नेपाल की बिजली का भी एक औजार की तरह इस्तेमाल हो रहा है।"
 
भारत ने नेपाल के साथ 2014 में बिजली खरीदने के लिए एक समझौता किया था। हालांकि 2018 में अपनी नीतियों में बदलाव कर इसे रोक दिया गया। नई नीतियों के तहत ऐसी बिजली खरीदने पर रोक लगा दी गई जो किसी तीसरे देश के निवेश के जरिये पैदा की गई हो और जिस देश के साथ "बिजली क्षेत्र में सहयोग के लिए द्विपक्षीय समझौता ना हुआ हो।"
 
इसका मतलब साफ है कि भारत और उसकी कंपनियां वह बिजली नहीं खरीद सकते जो चीन के पैसे से या फिर चीन के बनाए संयंत्रों से पैदा की जा रही हैं।
 
इसके बाद नेपाल के पास अपने पनबिजली क्षेत्र के भविष्य के लिए भारत के आगे झुकने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। हालांकि उसके सामने इस रिश्ते और अतिरिक्त ऊर्जा को लेकर चिंता बनी हुई है। 
 
भारत की रणनीति का असर
नेपाल की सरकारी कंपनी, हाइड्रोइलेक्ट्रिसिटी इनवेस्टमेंट एंड डेवलपमेंट कंपनी (एचआईडीसीएल) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अर्जुन कुमार गौतम का कहना है, "यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि अब भारत वह ऊर्जा नहीं खरीदेगा जो चीनी कंपनी के सहयोग से बनेगी।"
 
नेपाल के ऊर्जा, जल संसाधन और सिंचाई मंत्रालय के सूचना अधिकारी बाबू राज के मुताबिक भारत के रुख में आए बदलाव के बाद नेपाल ने चीनी कंपनियों को छह हाइड्रोपावर प्रोजेक्टों से बाहर कर दिया और चार परियोजनाएं भारतीय कंपनियों को दे दी हैं।
 
भारतीय कंपनियों को दी गई परियोजनाओं में से दो पहले चीनी कंपनियों को दी गई थीं। इनमें से एक तो चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियोजना से भी जुड़ी थीं। अधिकारी ने बताया कि इसे 2019 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के दौरे के बाद शुरू किया गया था।
 
खड़गा के सी इसे "भारतीय कंपनियों का एकाधिकार" बता कर इस पर चिंता जताते हैं। एक इंटरव्यू में खड़गा ने कहा, "भविष्य में यहां बिजली की कमी हो सकती है। अगर तब नेपाल को बिजली की जरूरत हुई तो उसे भारतीय कंपनियों से ऊंची कीमतों पर बिजली खरीदनी पड़ सकती है। इसलिए सरकार की सारी परियोजनाओं को एक ही देश के हवाले करना गलत है। 
 
सुशील चंद्र तिवारी नेपाल के जल और ऊर्जा आयोग के सचिव हैं। उनका कहना है कि नेपाल सरकार भारत के साथ नेपाल से बिजली खरीदने पर एक लंबे समय का करार करने की कोशिश में है। तिवारी ने कहा, "भारत में ऊर्जा की मांग बहुत ज्यादा है, नेपाल की ऊर्जा को भारत के नहीं खरीदने का कोई कारण नहीं है।" भारत या चीन के दूतावासों ने और भारत के ऊर्जा मंत्रालय ने इस मामले में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
 
खरीदार नहीं मिलने से बेकार जाती बिजली
नेपाल में फिलहाल पनबिजली के 124 संयंत्र चल रहे हैं। इनसे कुल मिला कर 2600 मेगावाट बिजली पैदा होती है। इसके अलावा 235 संयंत्रों को बनाने का काम चल रहा है। नेपाल के बिजली विकास विभाग के मुताबिक इनके चालू होने पर नेपाल में कुल 8,667 मेगावाट बिजली का उत्पादन होने लगेगा। विभाग के इंजीनियर दुर्गा नारायण भुसाल का कहना है कि भारतीय कंपनियों के पास 10 संयंत्रों को बनाकर चलाने का ठेका है। दूसरी तरफ चीनी कंपनियों के पास ऐसे पांच संयंत्रों के लिए ठेके हैं।
 
नेपाल कुल मिलाकर 2700 मेगावट बिजली पैदा करता है इनमें से ज्यादातर पनबिजली संयंत्रों से पैदा की जाती है। देश में बिजली की मांग 1,700 मेगावाट है। हालांकि नेपाल की कुल पनबिजली क्षमता का यह महज सात फीसदी ही है।
 
नेपाल के बिजली प्राधिकरण को तैयार बिजली के नहीं बिकने को लेकर चिंता है। खासतौर से मानसून के मौसम में यहां बिजली का उत्पादन मांग से बहुत ज्यादा हो जाता है। अगर भारत ने अतिरिक्त बिजली नहीं खरीदी तो यह बेकार हो जाएगी।
 
पिछले साल जून से लेकर अक्टूबर के बीच नेपाल ने हर दिन 500 मेगावाट ऐसी बिजली पैदा की जो बेची नहीं जा सकी। एनईए के मुताबिक इसकी कीमत कुल 9 करोड़ डॉलर है। इंडिपेंडेंट पावर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष गणेश कार्की का कहना है अगर भारत ने अपनी बिजली खरीद नीति नहीं बदली तो, "नेपाल को करोड़ों रुपयों का नुकसान होगा।"
 
नेपाली निवेशकों ने भारत को बिजली बेचने की उम्मीद में पनबिजली परियोजनाओं में निवेश किया है लेकिन भारत ने नेपाल से केवल 452 मेगावाट बिजली ही खरीदी। यह उन संयंत्रों से खरीदी गई जिनमें चीन की भागीदारी नहीं है। 
 
इस बीच चीन नेपाल से बिजली भौगोलिक बाधाओं की वजह से नहीं खरीद सका है।
 
ऊर्जा में चीनी निवेश को नेपाल की ना
मई 2022 में नेपाली सरकार ने बूढ़ीगंडकी हाइड्रो प्रोजेक्ट बनाने का चीनी कंपनी का लाइसेंस रद्द कर दिया। तब नेपाल में चीन के राजदूत होउ यांकी ने एक ऑनलाइन प्रेस कांफ्रेंस में कहा, "नेपाल की नीतियों ने निवेशकों को मार दिया है।"
 
भारत की बिजली खरीदने की नीति ने ऐसा लगता है कि नेपाल के राजनेताओं के सामने सिर्फ एक ही सीधा विकल्प छोड़ा है। पिछले साल नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था, "हमें पनबिजली परियोजनाएं भारत को दे देनी चाहिए क्योंकि भारत चीन की भागीदारी वाली परियोजनाओं की बिजली नहीं खरीदता है।"
 
नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल आने वाले महीनों में भारत यात्रा की तैयारी कर रहे हैं और पनबिजली से जुड़े करार और ऊर्जा का व्यापार उनके एजेंडे में काफी ऊपर रहेंगे। पिछले साल अप्रैल में तत्कालीन प्रधानमंत्री देउबा ने दिल्ली का दौरा किया था। तब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत, "आप जितनी बिजली पैदा करेंगे वह खरीदेगा... मैं यह तय करना चाहता हूं कि नेपाल में अतिरिक्त बिजली बेकार ना हो।"
 
चीन में नेपाल के राजदूत रहे तनका कार्की का कहना है कि भारत के रुख को लेकर चिंताओं के बावजूद वो नहीं मानते कि भारत नेपाल के ऊर्जा क्षेत्र पर "अनैतिक दबाव" बना रहा था। कार्की का कहना है, "चीन की सक्रिय मौजूदगी को भारत पसंद नहीं करता है और ऐसा लगता है कि वह चीन को पनबिजली के जरिये जवाब दे रहा है। नेपाल को अपनी छत्रछाया में रखना भारत की रणनीति है ताकि वह उसके प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण रखे।"
 
एनआर/ओएसजे (रॉयटर्स)

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