साइकिल से अपनी किस्मत बदलती नेपाली महिलाएं

Webdunia
शनिवार, 18 मार्च 2017 (11:41 IST)
नेपाल में एक दशक तक चले गृहयुद्ध के दौरान बेघर हुईं दर्जनों महिलाओं को लिए साइकिलें अब रोजीरोटी का जरिया हैं। इन्हीं के सहारे वे गरीबी से बाहर निकल रही हैं।
 
नेपाल की सुरखेत घाटी में रहने वाली कुछ महिलाओं को साइकिल ने आजादी और रोजी रोटी, दोनों दी हैं। सुबह सुबह वे अपनी साइकिलों पर सब्जियां लादती हैं और बाजार की तरफ निकल पड़ती हैं। ये साइकिलें उन्हें एक विदेशी संस्था ने दी हैं।
 
इन्हीं महिलाओं में से एक नंदुकाला बसनेत कहती हैं कि साइकिल ने उनकी जिंदगी बदल दी। 33 साल की बसनेत के मुताबिक, "साइकिल के साथ जिंदगी बहुत अच्छी है। अगर मेरी साइकिल ठीक नहीं है तो मेरी जिंदगी भी ठीक नहीं है।"
 
जब नेपाल में गृहयुद्ध चरम पर था तो बसनेत को अपना गांव छोड़ना पड़ा। उनका गांव माओवादियों के नियंत्रण वाले इलाके में था जबकि उनके पति नेपाली सेना में सैनिक थे। इसलिए उन्हें वहां शक की निगाहों से देखा जाता था।
 
एक बार जब माओवादी विद्रोहियों के एक ठिकाने पर सेना के एक हेलीकॉप्टर ने बमबारी की तो वहां अफवाह फैल गई कि यह कार्रवाई बसनेत की तरफ से दी गई जानकारी के आधार पर ही की गई है। विद्रोहियों ने बसनेत को सबक सिखाने की ठानी। पड़ोसियों ने उनसे कहा कि वह गांव छोड़ दे। उन्हें रातोरात बीरेंद्रनगर आना पड़ा, जो सुरखेत घाटी का मुख्य शहर है।
 
नंदुकाला बसनेत बताती हैं, "यहां पहुंच कर मुझे बहुत संघर्ष करना पड़ा। मेरे पास कोई जमीन जायदाद नहीं थी। मैंने पैसे के लिए नदी से रेत तक निकाला और एक दिन तो पत्थर भी तोड़े।"
 
फिर उन्होंने सब्जियां बेचनी शुरू कीं, लेकिन उन्हें 30 किलोग्राम की टोकरी को ढोकर बाजार ले जाना पड़ता था। कई बार तो वह सिर्फ 100 रुपयों के साथ घर लौटती थीं। फिर उन्हें साइकिल मिली और उनका कारोबार चल निकला। अब बसनेत 100 किलोग्राम तक सामान बाजार ले जा सकती हैं, जिसमें सब्जियों के अलावा तिल और दालें भी शामिल हैं। साइकिल के जरिए वह दूर दूर के बाजारों में भी आसानी से जा सकती हैं। अपनी दिन भर की कमाई 600 रुपयों को गिनते हुए वह कहती हैं, "यह मेरा अब स्थायी काम बन गया है।"
 
हालांकि पुरुष प्रधान नेपाली समाज में महिलाओं का साइकिल पर चढ़ना कई लोगों को रास नहीं आता। खागीसारा रेमगी ने जब साइकिल उठाई तो उन्हें कई लोगों ने बुरा भला कहा। लेकिन पति की मौत के बाद चार बच्चों की परवरिश के लिए उनके सामने कोई और रास्ता नहीं बचा था। वह बताती हैं, "जब मैंने साइकिल उठाई तो लोगों ने कहा- वह साइकिल चलाना क्यों सीख रही है। क्या उसे शर्म नहीं आती?"
 
रुढ़िवादी नेपाली समाज में विधवाओं को लेकर कई तरह के पूर्वाग्रह भी हैं। उन्हें मनहूस समझा जाता है। लेकिन रेगमी अपनी साइकिल की बदौलत आज इस हालत में है कि अपने बच्चों को स्कूल में पढ़ा रही हैं। यही नहीं, अपनी झोपड़ी की जगह अब उन्होंने पक्का मकान भी बनवा लिया है।
 
एके/एमजे (एएफपी)
Show comments

अभिजीत गंगोपाध्याय के राजनीति में उतरने पर क्यों छिड़ी बहस

दुनिया में हर आठवां इंसान मोटापे की चपेट में

कुशल कामगारों के लिए जर्मनी आना हुआ और आसान

पुतिन ने पश्चिमी देशों को दी परमाणु युद्ध की चेतावनी

जब सर्वशक्तिमान स्टालिन तिल-तिल कर मरा

कोविशील्ड वैक्सीन लगवाने वालों को साइड इफेक्ट का कितना डर, डॉ. रमन गंगाखेडकर से जानें आपके हर सवाल का जवाब?

Covishield Vaccine से Blood clotting और Heart attack पर क्‍या कहते हैं डॉक्‍टर्स, जानिए कितना है रिस्‍क?

इस्लामाबाद हाई कोर्ट का अहम फैसला, नहीं मिला इमरान के पास गोपनीय दस्तावेज होने का कोई सबूत

अगला लेख