बीजेपी के भीतर मोदी और अमित शाह की जोड़ी से परेशान तबके के लिए नितिन गडकरी एक राहत भरा नाम हैं। संगठन के भीतर ऐसा तिलस्म आखिर गडकरी कैसे रच पाए?
भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव में जो सबसे सशक्त और प्रभावी मुद्दा लेकर उतरी है, वो है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा। यानी मोदी के रहते बीजेपी में फिलहाल इस पद का कोई दूसरा दावेदार नहीं है। फिर भी यदि मोदी के बाद या मोदी के अतिरिक्त किसी नाम की चर्चा आजकल होती है तो उसमें केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का नाम सबसे ऊपर बताया जाता है।
अपनी सपाटबयानी के लिए चर्चा में रहने वाले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले तीन महीने के भीतर ही कई ऐसे बयान दे डाले हैं जो सीधे तौर पर प्रधानमंत्री और बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की ओर उंगली उठाते हैं। कई वरिष्ठ पत्रकारों की मानें तो मोदी मंत्रिमंडल में गडकरी एकमात्र ऐसे नेता हैं जो न सिर्फ मंत्रिमंडल की बैठक में सवाल पूछ सकते हैं बल्कि प्रधानमंत्री के फैसलों पर सवाल भी उठा सकते हैं।
गडकरी की इस ताकत के पीछे बीजेपी के पैतृक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उनके ऊपर वरदहस्त बताया जाता है और वो आरएसएस के सभी शीर्ष पदाधिकारियों के चहेते बताए जाते हैं।
नितिन गडकरी बीजेपी के उन नेताओं में शामिल हैं जिनका राजनीतिक संस्कार आरएसएस के संरक्षण में हुआ है। आरएसएस की शाखाओं के रास्ते अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले गडकरी उस समय बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने जब उनकी पार्टी संकट के दौर से गुजर रही थी और खुद उन्हें राष्ट्रीय राजनीति का कोई अनुभव नहीं था।
साल 2009 में बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से पहले नितिन गडकरी महाराष्ट्र में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे और महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य भी। महाराष्ट्र के नागपुर जिले में एक ब्रह्मण परिवार में जन्म लेने वाले नितिन गडकरी ने एलएलबी और एमकॉम तक की शिक्षा ली है।
नितिन गडकरी न सिर्फ खुद बचपन से ही संघ के एक प्रतिबद्ध और निष्ठावान स्वयंसेवक रहे बल्कि ये संस्कार उन्हें अपने परिवार से ही मिला। उनके पिता जहां संघ के एक सामान्य कार्यकर्ता थे, वहीं माता भी संघ की एक प्रचारक थीं।
1989 में वो पहली बार महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य चुने गए। 1983 में यही चुनाव वो हार भी चुके थे। लेकिन उसके बाद 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ने से पहले तक वो लगातार विधान परिषद के सदस्य रहे। महाराष्ट्र विधान परिषद में वो विपक्ष के नेता भी रहे।
1995 में नितिन गडकरी महाराष्ट्र में शिव सेना-बीजेपी की गठबंधन सरकार में लोक निर्माण मंत्री बनाए गए और चार साल तक मंत्री पद पर रहे। मंत्री के रूप में वो उन्होंने अपनी एक अच्छी और काम करने वाले मंत्री की छवि बनाई जो बाद में केंद्रीय मंत्री बनने के दौरान भी बनी रही। मोदी सरकार के मंत्रियों का जब भी मूल्यांकन होता है, नितिन गडकरी के विभाग यानी भूतल परिवहन मंत्रालय का काम उसमें सबसे ऊपर होता है।
नितिन गडकरी को करीब से जानने वाले पत्रकार वीवी त्रिपाठी कहते हैं, "मोदी मंत्रिमंडल में नितिन गडकरी शायद अकेले ऐसे नेता हैं जिनके काम की तारीफ विपक्षी भी करते हैं। यही वजह है कि महत्वपूर्ण मंत्रालयों का दायित्व संभालने के बावजूद जब उमा भारती ने जल संसाधन और गंगा संरक्षण मंत्रालय छोड़ा तो उसे निभाने की जिम्मेदारी गडकरी को ही मिली। गडकरी ने उस जिम्मेदारी को निभाया भी और रिपोर्टों के मुताबिक नमामि गंगे मिशन ने उसके बाद ही तेजी पकड़ी और कुछ हद तक असर भी दिखने लगा है।”
राजनीति में बिल्कुल निचले पायदान से शुरू करके केंद्रीय मंत्री और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तक पहुंचने के बावजूत नितिन गडकरी ने अपनी पहचान जमीन से जुड़े एक कार्यकर्ता के तौर पर बनाई है। लंबे समय से मुख्यधारा की राजनीति का हिस्सा होने के बावजूद वो ये बताना कभी नहीं भूलते कि वो राजनेता के साथ-साथ एक किसान और उद्योगपति भी हैं। उनकी खुद की कई कंपनियां हैं जिसमें वो प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़े हुए हैं।
राजनीति में लंबी पारी खेलने वाले नितिन गडकरी का विवादों से भी अच्छा-खासा रिश्ता रहा है। साल 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के खिलाफ कथित तौर पर आपत्तिजनक बयान देने के लिए चुनाव आयोग ने उनके खिलाफ मामला दर्ज किया था।
इसके अलावा पिछले कुछ समय से उनके कई बयान ऐसे आए हैं जिनकी वजह से कई बार पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ही कठघरे में खड़ा नजर आता है। एक जनसभा में ये कहना कि "सपने दिखाने वाले यदि सपने पूरे नहीं करते हैं तो जनता उन्हें पीटती भी है" या फिर तीन राज्यों में बीजेपी के चुनाव हारने के बाद ये कहना कि "यदि जीत का सेहरा नेतृत्व के सिर बंधता है तो हार की जिम्मेदारी भी नेतृत्व की ही होती है" सीधे तौर पर सरकार और पार्टी पर निशाना साधने के तौर पर देखा गया।
यही नहीं, "हर खाते में 15 लाख रुपये भेजने" को पहली बार जुमला बताने वाले भी नितिन गडकरी ही थे और एक कार्यक्रम में ये कहकर भी उन्होंने सरकार की एक तरह से पोल खोल दी थी कि "जब नौकरियां हैं ही नहीं, तो मिलेंगी कहां से।" इसके अलावा वो कई बाह नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक की तारीफ कर चुके हैं जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के दूसरे नेताओं के निशाने पर खासतौर पर नेहरू रहते हैं।
राज्य में भी और केंद्र में भी मंत्री रहते हुए नितिन गडकरी के काम की तारीफ भले ही विरोधी भी करते हों लेकिन इस दौरान उन पर भ्रष्टाचार के भी कई गंभीर आरोप लगे। कांग्रेस नेता नितिन गडकरी पर आरोप लगाते हैं कि वह अपनी राजनीतिक शक्तियों का इस्तेमाल अपना व्यापार बढ़ाने के लिए करते हैं। इंडिया अगेंस्ट करप्शन नामक संस्था का दावा है कि गडकरी ने महाराष्ट्र के किसानों की मदद करने की बजाए अपना निजी फायदा किया।
लोकसभा चुनाव से पहले दिल्ली के मुख्य मंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने जिन कथित भ्रष्ट लोगों की सूची तैयार की थी उनमें नितिन गडकरी भी शामिल थे। लेकिन आरोप साबित न कर पाने के कारण अरविंद केजरीवाल को नितिन गडकरी से सार्वजनिक तौर पर माफी भी मांगनी पड़ी थी।
नितिन गडकरी को करीब से जानने और कैबिनेट की बैठकों को नियमित तौर पर कवर करने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि नरेंद्र मोदी कैबिनेट में नितिन गडकरी एकमात्र ऐसे मंत्री हैं जो प्रधानमंत्री से खुलकर सवाल पूछ सकते हैं।
उनके मुताबिक, "कैबिनेट के अंदर की जब भी कोई खबर बाहर आती है तो उसमें ज्यादातर किस्से गडकरी से ही जुड़े होते हैं।" गडकरी के बारे में ये भी मशहूर है कि "अगर उन्होंने किसी चीज के लिए एक बार हां कर दी तो उसे हर हाल में निभाते हैं।"
अपने इस व्यवहार के चलते नितिन गडकरी ने सरकार और विपक्ष दोनों ही खेमों में कई दोस्त बनाए हैं तो विरोधी भी। कांग्रेस के कई बड़े नेताओं से उनके बेहद घनिष्ठ संबंध हैं और सदन में जब भी किसी अवरोध की स्थिति में विपक्ष से वार्ता की जरूरत पड़ी तो उसमें गडकरी ने ही मध्यस्थ की भूमिका निभाई। यही नहीं, राजनीति में धुर विरोधी शरद पवार और नवीन पटनायक के अलावा शिवसेना से भी उनके रिश्ते बेहद मधुर बताए जाते हैं।