अब उमर अब्दुल्लाह और महबूबा मुफ्ती पर लगा पब्लिक सेफ्टी एक्ट

Webdunia
शनिवार, 8 फ़रवरी 2020 (12:03 IST)
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्लाह और महबूबा मुफ्ती समेत 4 नेताओं पर उनकी 6 महीने लंबी हिरासत के आखिरी दिन कश्मीर का विवादास्पद कानून पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) लगा दिया गया।
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कश्मीर में हालात सामान्य होने में अभी काफी समय लगेगा, इसका एक और प्रमाण 6 फरवरी की देर रात सामने आया। पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर राज्य के 2 पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्लाह और महबूबा मुफ्ती समेत 4 नेताओं के खिलाफ उनकी 6 महीने लंबी हिरासत के आखिरी दिन कश्मीर का विवादास्पद कानून पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) लगा दिया गया।
 
पीएसए के तहत आरोपी को कई महीनों तक सुनवाई के बिना हिरासत में रखा जा सकता है। पूर्व मुख्यमंत्रियों के अलावा 2 और नेताओं नेशनल कॉन्फ्रेंस के अली मोहम्मद सागर और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के सरताज मदनी के खिलाफ भी पीएसए लगा दिया गया।
 
एक और पूर्व मुख्यमंत्री और उमर के पिता फारुक अब्दुल्लाह पहले से ही पीएसए के तहत हिरासत में हैं। ट्विटर पर इसकी पुष्टि खुद महबूबा मुफ्ती ने अपने ट्विटर हैंडल के जरिए की जिसे आजकल उनकी बेटी चला रही है।
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माना जा रहा है कि सरकार ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि अब इन नेताओं को निवारक हिरासत में रखना मुश्किल हो गया था और सरकार अभी उन्हें रिहा नहीं करना चाह रही थी। उमर और मुफ्ती के खिलाफ पीएसए लगाए जाने पर विपक्षी पार्टियों ने और कई स्वतंत्र समीक्षकों ने भी आक्रोश व्यक्त किया है। 
 
पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने ट्विटर पर लिखा कि वे इस कार्रवाई से 'हैरान और परेशान' हैं। उन्होंने यह भी लिखा कि आरोपों के बिना कैद लोकतंत्र में सबसे घृणास्पद बात है। कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने ट्वीट कर सवाल उठाया कि किस आधार पर उमर और मुफ्ती के खिलाफ पीएसए लगाया गया है?
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दिलचस्प बात यह है कि 6 फरवरी को ही संसद में एक चर्चा में भाग लेते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों पर कथित रूप से भड़काऊ टिप्पणी देने का आरोप लगाया था। मोदी के अनुसार उमर ने कहा था कि 'आर्टिकल 370 को हटाने से ऐसा भूकंप आएगा कि कश्मीर भारत से अलग हो जाएगा'।
 
लेकिन उमर ने कभी ऐसा कहा कि इसका कोई प्रमाण नहीं है बल्कि उमर के हवाले से यही टिप्पणी एक ऐसी वेबसाइट ने छापी थी जिसे कई बार फेक न्यूज छापने का दोषी पाया गया है। मोदी ने यह टिप्पणी उस वेबसाइट पर छपे एक व्यंग्य लेख से ली। प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य के बाद सोशल मीडिया पर उनकी काफी आलोचना हुई।
 
माना जाता है कि पीएसए जम्मू और कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्लाह के कार्यकाल में 1978 में लागू हुआ था। इसमें बिना आरोप और बिना सुनवाई के व्यक्ति को हिरासत में रखने का प्रावधान है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसे 'गैरकानूनी कानून' की संज्ञा दी है। इसका इस्तेमाल पिछले 4 दशकों से लगातार होता रहा है। इसके तहत हजारों लोगों को हिरासत में रखा जा चुका है और इनमें से ज्यादातर लोग सरकार से राजनीतिक मतभेद व्यक्त करने वाले थे।
 
-रिपोर्ट चारु कार्तिकेय

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