नगालैंड में शांति प्रक्रिया पर संशय के बादल

Webdunia
मंगलवार, 22 अक्टूबर 2019 (16:01 IST)
जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद अब नगालैंड में फिर अलग झंडे व संविधान की मांग उठी है। हालांकि केंद्र सरकार ने साफ कहा है कि बंदूकों के साए में उग्रवादी समूह के साथ अंतहीन बातचीत उसे स्वीकार नहीं है।
 
केंद्र सरकार ने कहा है कि वह 31 अक्टूबर तक नगा शांति प्रक्रिया को पूरा कर लेना चाहती है लेकिन नगालैंड के लिए अलग झंडे या संविधान की अनुमति नहीं दी जाएगी। इससे 2 दशकों से भी लंबे अरसे से जारी इस प्रक्रिया और इसके जरिए राज्य में शांति बहाली पर सवाल उठने लगे हैं। इसकी वजह यह है कि अलग झंडा और अलग संविधान शांति प्रक्रिया में शामिल नगा गुटों की मुख्य मांगें रही हैं। इनके बिना उग्रवादग्रस्त पूर्वोत्तर भारत में शांति बहाल करना मुश्किल ही नजर आ रहा है।
 
यह पूर्वोत्तर राज्य देश की आजादी के बाद से ही उग्रवादी आंदोलनों के लिए कुख्यात रहा है। राज्य के नगा गुटों ने खुद को कभी भारत का हिस्सा समझा ही नहीं। दशकों लंबे चले उग्रवाद के बाद केंद्र सरकार ने 1997 के आखिर में इस समस्या को खत्म कर इलाके में शांति की बहाली के लिए नगा संगठनों के साथ शांति प्रक्रिया शुरू की थी।
 
18 साल तक देश-विदेश में केंद्र सरकार और नगा संगठनों के प्रतिनिधियों के बीच हुई बैठक के बाद 4 साल पहले समझौते के एक प्रारूप पर हस्ताक्षर किए गए थे, हालांकि उसका खुलासा नहीं किया गया। लेकिन तब दोनों पक्षों ने इसे एक बड़ी कामयाबी बताते हुए समस्या के शीघ्र हल होने का भरोसा जताया था। बावजूद इसके समस्या जस की तस है।
 
अब जब केंद्र ने शांति प्रक्रिया में लंबे समय से वार्ताकार रहे एन. रवि को नगालैंड का राज्यपाल बनाया तो नए सिरे से इस विवाद के हल होने की उम्मीद जगी थी। लेकिन अब आखिरी समय में शांति प्रक्रिया में शामिल उग्रवादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (एनएससीएन) का इसाक-मुइवा गुट राज्य के लिए अलग झंडे और अलग संविधान की मांग उठाकर इस प्रक्रिया को पटरी से उतारने का प्रयास कर रहा है। हालांकि केंद्र ने उनकी यह मांग खारिज कर दी है। लेकिन इससे ऐन मौके पर गतिरोध तो पैदा हो ही गया है। अब दोनों पक्ष एक-दूसरे के खिलाफ नगा समस्या के समाधान सूत्रों पर आम लोगों को गुमराह करने का आरोप लगा रहे हैं।
नगालैंड में उग्रवाद की पृष्ठभूमि ऐतिहासिक रही है। वर्ष 1826 में अंग्रेजों ने असम को ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य में मिला लिया था। वर्ष 1881 में नगा हिल्स भी इसका हिस्सा बन गया। 1946 में अंगामी जापू फिजो के नेतृत्व में नगा नेशनल काउंसिल (एनएनसी) का गठन किया गया। इस संगठन ने 14 अगस्त 1947 को नगालैंड को एक स्वाधीन राज्य घोषित कर दिया।
 
22 मार्च 1952 को फिजो ने भूमिगत नगा फेडरल गवर्नमेंट और नगा फेडरल आर्मी का गठन किया था। इलाके में सिर उठाने वाले उग्रवाद से निपटने के लिए भारत सरकार ने 1958 में इलाके में सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (अफ्स्पा) लागू कर दिया। 1963 में असम के नगा हिल्स जिले को अलग कर नगालैंड राज्य का गठन किया गया। शिलांग समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए एनएनसी नेताओं का एक गुट 11 नवंबर 1975 को सरकार से मिला।
 
बैठक में हथियार छोड़ने पर सहमति जताई गई। लेकिन उस समय चीन में रहने वाले टी. मुइवा के नेतृत्व में लगभग 140 सदस्यों के एक गुट ने शिलांग समझौते को मानने से इंकार कर दिया। इस गुट ने 1980 में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (एनएससीएन) का गठन किया। 1988 में एक हिंसक टकराव के बाद एनएससीएन 2 हिस्सों में बंट गया। पहले गुट की कमान मुइवा के हाथों में आई और दूसरे की खापलांग की।
 
जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद अब नगालैंड में फिर अलग झंडे व संविधान की मांग उठी है। हालांकि केंद्र सरकार ने इस मांग को खारिज करते हुए साफ कहा है कि बंदूकों के साए में उग्रवादी समूह के साथ अंतहीन बातचीत उसे स्वीकार नहीं है। नगा वार्ता के लिए वार्ताकार और नगालैंड के राज्यपाल आरएन रवि ने कहा है कि केंद्र सरकार दशकों लंबी शांति प्रक्रिया को शीघ्र किसी नतीजे पर पहुंचाएगी।
 
राज्यपाल ने कहा है कि अंतिम समझौते का मसौदा तैयार है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि एनएससीएन-आईएम नगालैंड के लिए अलग झंडे और संविधान के विवादास्पद मुद्दों को उठा रहा है। वह इन मुद्दों पर केंद्र की स्थिति से पूरी तरह अवगत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह कई मौकों पर एक राष्ट्र एक ध्वज और एक संविधान की बात कह चुके हैं।
 
राज्यपाल ने कोहिमा में बीते 18 अक्टूबर को नगा सोसाइटी के सदस्यों के साथ बैठक की थी। इस बैठक में नगालैंड के सभी 14 जनजातियों के शीर्ष नेता मौजूद थे। इसमें नेताओं ने शांति प्रक्रिया को जल्द पूरा करने पर अपनी सहमति दी।
 
इससे पहले एनएससीएन महासचिव टी. मुइवा ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा था कि नगालैंड के लोग इस बात को लेकर संशय में हैं कि नगा समस्या का ठोस समाधान हो पाएगा या नहीं? राज्य का अलग झंडा और संविधान नगा लोगों की पहचान और उनके गौरव से जुड़ा है। संगठन ने सरकार से कहा था कि इन दोनों मुद्दों पर चर्चा के बिना नगा समस्या का बेहतर तरीके से समाधान नहीं हो सकता है।
 
संगठन ने केंद्र सरकार पर 4 साल पहले हुए समझौते के प्रारूप के प्रावधानों में हेरफेर करने और उसे गलत तरीके से पेश करने का आरोप लगाया है। उसका आरोप है कि केंद्र सरकार बहुत बाद में शांति प्रक्रिया में शामिल होने वाले 7 अन्य नगा संगठनों को ज्यादा तरजीह दे रही है। उसका कहना है कि झंडे व संविधान पर सहमति के बिना नगा समस्या का स्थायी हल संभव नहीं है।
 
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि 4 साल पहले हुए समझौते के प्रावधानों का खुलासा नहीं होने की वजह से इलाके में उसे लेकर काफी संशय है। नगा संगठन इलाके के नगाबहुल इलाकों को लेकर ग्रेटर नगालिम के गठन की मांग कर रहे हैं। इससे पड़ोसी राज्यों में आशंकाएं तेज हो रही हैं। इसके अलावा झंडा व संविधान का मुद्दा भी है।
 
राजनीतिक पर्यवेक्षक ओ सुनील सिंह कहते हैं, 'शांति समझौते के तमाम प्रावधानों के सार्वजनिक नहीं होने की वजह से अटकलों व अफवाहों का बाजार लगातार तेज हो रहा है।' नगालैंड मामलों के जानकार एल. चिशी कहते हैं, 'मौजूदा स्थिति में तो किसी समझौते पर सहमति की गुंजाइश कम ही है। तमाम नगा संगठनों को साथ लिए बिना अगर कोई समझौता होता भी है तो उससे इलाके में शांति नहीं बहाल होगी। ऐसे में 22 वर्षों से जारी यह पूरी कवायद बेमतलब होने का अंदेशा है।'
(रिपोर्ट प्रभाकर, कोलकाता)
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