आर्थिक संकट से निपटने में सक्षम है कतर

Webdunia
बुधवार, 7 जून 2017 (11:20 IST)
सऊदी अरब, बहरीन, संयुक्त अरब अमीरात, यमन, मिस्र और मालदीव ने कतर के साथ अपने राजनयिक संबंध तोड़ लिये हैं जिसके बाद कतर के सामने एक कूटनीतिक संकट खड़ा हो गया है।
 
खाड़ी देशों के बीच पैदा हुई ये राजनयिक दरार कारोबार के लिहाज से पूरे क्षेत्र के लिये महंगी पड़ सकती है। हालांकि इन देशों का अधिकतर कारोबार तेल और गैस निर्यात पर निर्भर है और इनके आपसी निवेश और व्यापार संबंध बेहद ही कम हैं ऐसे में प्रयत्क्ष आर्थिक प्रभाव सीमित रह सकता है।
 
प्राकृतिक गैस कारोबार
मोटा-मोटी देखा जाये तो कतर इस तरह के आर्थिक संकट से निपटने में सक्षम है। इसकी अनुमानित 335 अरब यूरो की संपत्तियां राज्य नियंत्रित संपदा फंड में हैं जिन्हें दुनिया भर में निवेश किया गया है। इसके पास डॉयचे बैंक की 6 फीसदी हिस्सेदारी और रोजनेट ऑयल कंपनी में लगभग 9 फीसदी की हिस्सेदारी है। फोल्क्सवैगन में इसकी 17 फीसदी हिस्सेदारी की कीमत तकरीबन 11।5 अरब अमेरिकी डॉलर के पास बैठती है। कतर दुनिया में प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता भी है। हाल में कतर ने अपनी बंदरगाह सुविधाओं में विस्तार किया था जिसके चलते वह अब भी प्राकृतिक गैस का निर्यात जारी रख सकता है।
 
इतना ही नहीं कतर समुद्री रास्तों का प्रयोग अब खाद्य सामग्रियों के आयात के लिए भी कर सकता था जो अब तक सऊदी अरब उच्च कीमतों पर निर्यात करता था। हालांकि कतर को अन्य क्षेत्रों में ऊंची लागत का सामना करना पड़ सकता है। कतर साल 2022 में विश्व कप फुटबॉल टूर्नामेंट की मेजबानी करने के लिये घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 200 अरब डॉलर तक का कर्ज ले रहा है। लेकिन बीते सोमवार कतर बॉन्ड में गिरावट के बाद ऐसी आशंका है कि अब ऋण दर महंगी हो सकती है और कुछ परियोजनायें धीमी पड़ सकती हैं।
 
तेल की राजनीति
इन राजनयिक कदमों के बाद तेल की कीमतों पर भी चिंता जताई गई है क्योंकि दुनिया के प्रमुख ऊर्जा उत्पादकों के बीच ये विवाद वैश्विक स्तर पर तेल बाजार को कमजोर कर सकता है। दो सप्ताह पहले ही ओपेक और अन्य साथी उत्पादक देशों ने वैश्विक स्तर पर कीमतों को स्थिर करने के लिये तेल उत्पादन में कटौती के लिये हामी भरी थी। विशेषज्ञों के मुताबिक तेल कारोबार में कुछ खास बदलने वाला नहीं है लेकिन व्यापक भू-राजनीतिक प्रभाव पर विचार करने की जरूरत है।
 
हालांकि मध्य-पूर्व में पैदा हुई यह तनातनी कोई नई नहीं है। इसके पहले भी 2014 में सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने कतर से तकरीबन आठ महीनों के लिये अपने राजदूतों को बुला लिया था। उस वक्त कतर पर कट्टर इस्लामिक समूहों को समर्थन देने का आरोप था। लेकिन उस प्रतिबंध का आर्थिक प्रभाव कम पड़ा क्योंकि उसमें परिवहन और व्यापार संबंधों पर प्रतिबंध शामिल नहीं थे और निवेश स्थिति पहले की तरह ही थी। लेकिन इस वक्त स्थिति कुछ बदल सकती है। हालांकि प्राकृतिक गैस से समृद्ध इस देश का इतिहास भारी उथल-पुथल और कट्टरपंथ से जुड़ा रहा है। यह दुनिया के सबसे धनी प्रति व्यक्ति आय वाले देशों में से एक है और इसकी लोकप्रियता में अल-जजीरा न्यूज नेटवर्क ने प्रभावी योगदान दिया है।
 
एए/एमजे (रॉयटर्स, एएफपी)
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