ला नीना और अल नीनो से दुनिया के मौसम पर कैसा असर पड़ रहा है

DW
शनिवार, 1 फ़रवरी 2025 (08:01 IST)
-स्टुअर्ट ब्राउन
मौसम वैज्ञानिकों ने बताया है कि ला नीना की कमजोर स्थिति बन गई है, लेकिन इससे तूफान की घटनाएं ज्यादा नहीं होंगी। आइए जानें कि ला नीना और अल नीनो क्या हैं। ये पूरी दुनिया के मौसम को किस तरह प्रभावित करते हैं।
 
मौसम विज्ञानियों का कहना है कि दिसंबर 2024 में जब उत्तरी गोलार्ध में ठंड बढ़ी, तो देर से ही सही, लेकिन अंततः उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में ला नीना की स्थिति बन गई।
 
पूर्वी प्रशांत महासागर में समुद्र का पानी ठंडा होने की वजह से ला नीना की स्थिति पैदा होती है, जबकि अल नीनो की स्थिति बनने पर यह अपने साथ गर्म पानी लाती है। ला नीना की वजह से दुनिया के कई हिस्सों में मौसम ठंडा हो सकता है। साथ ही, तेज तूफान और बारिश भी आ सकती है। 
 
हालांकि, ला नीना ने पिछले साल रिकॉर्ड तोड़ वैश्विक तापमान को बढ़ाने वाले अल नीनो को पीछे छोड़ दिया है, लेकिन अमेरिकी सरकारी एजेंसी ‘नेशनल ओशेन एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए)' के अनुसार, इस बार ला नीना की स्थिति बहुत कमजोर है।
 
ला नीना की सामान्य स्थिति के दौरान, पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली हवाएं तेज हो जाती हैं। ये हवाएं अल नीनो के दौरान कमजोर हो जाती हैं। अब फिर से पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली हवाएं तेज हो गई हैं। इन तेज हवाओं की वजह से इंडोनेशिया में ज्यादा बादल छाए हुए हैं और भारी बारिश भी हो रही है।
 
इस बार ला नीना की स्थिति कमजोर है और वह देर से बनी है, इसलिए यह ज्यादा समय तक नहीं रहेगी। एनओएए के जलवायु पूर्वानुमान केंद्र के अनुसार,  59 फीसदी संभावना है कि फरवरी से अप्रैल तक ला नीना की स्थिति बनी रह सकती है। वहीं, इस बात के 60 फीसदी आसार हैं कि मार्च से मई तक स्थिति सामान्य हो जाएगी।
 
अगर उत्तरी गोलार्ध में गर्मियों तक ला नीना की स्थिति बनी रहती है, तो विशेषज्ञों का कहना है कि इससे अटलांटिक महासागर में अधिक विनाशकारी और तेज तूफान आने की संभावना बढ़ सकती है।
 
दरअसल, ला नीना और अल नीनो मौसम चरण एक ही प्रणाली का हिस्सा हैं, जिसे तथाकथित अल-नीनो सदर्न ऑसिलेशन (ईएनएसओ) कहते हैं। यह प्रशांत महासागर में शुरू होने वाला एक जलवायु पैटर्न है, जिसमें हवा और समुद्र के तापमान में बदलाव आते हैं। इसका असर दुनिया भर के चरम मौसम पर पड़ता है।
 
अल नीनो को स्पेनिश भाषा में ‘छोटा लड़का' कहते हैं। यह 2023 में रिकॉर्ड वैश्विक तापमान से जुड़ा था, जो अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा। जलवायु परिवर्तन के साथ, अल नीनो ने दक्षिण पूर्व एशिया और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में भयंकर गर्मी और सूखे की स्थिति पैदा की।
 
वहीं, अल नीनो की ‘छोटी बहन' ला नीना मौसम का पैटर्न बनाती है। इसके कारण मौसम में ऐसे बदलाव आते हैं जो भले ही अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग हों, लेकिन आम तौर पर ठंडे और अधिक बारिश वाले होते हैं। इससे तेज तूफान और आंधी भी आ सकते हैं। 
 
अल नीनो और ला नीना का असर जगह के हिसाब से अलग-अलग होता है और दुनिया के हर हिस्से पर इनका प्रभाव नहीं पड़ता है। ये दूसरी जलवायु घटनाओं से भी प्रभावित हो सकते हैं। अल नीनो और ला नीना का दुनिया भर में खेती और अरबों लोगों की जिंदगी पर बहुत बड़ा असर पड़ सकता है, जो पहले से ही जलवायु परिवर्तन की वजह से मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।
 
अल नीनो की वजह से किस तरह चरम मौसम बनता है
अल नीनो की स्थिति आमतौर पर हर दो से सात साल बाद बनती है। इस दौरान, प्रशांत महासागर में पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली हवाएं कमजोर हो जाती हैं और कभी-कभी तो उल्टी दिशा में भी बहने लगती हैं।
 
ये हवाएं आमतौर पर भूमध्य रेखा के पार बहती हैं। साथ ही, दक्षिण अमेरिका से गर्म पानी को दक्षिण-पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया की ओर ले जाती हैं। हालांकि, जब हवाएं शांत होने लगती हैं, तो गर्म पानी दक्षिण अमेरिका में ही रहता है और पश्चिम की ओर नहीं जा पाता।
 
इससे पूर्वी प्रशांत महासागर में ठंडा पानी कम हो जाता है और वायुमंडल में ज्यादा गर्मी हो जाती है। इस वजह से उस इलाके में ज्यादा बारिश होती है और उत्तरी दक्षिण अमेरिका जैसे स्थानों में बाढ़ आ सकती है। इस बीच, पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में गर्म पानी की कमी के कारण सूखे की स्थिति बन सकती है और तापमान बढ़ सकता है।
 
अल नीनो की वजह से समुद्र का तापमान बदल जाता है। इससे जेट स्ट्रीम यानी जमीन से बहुत ऊपर बहने वाली तेज हवाएं अपने रास्ते से भटक जाती हैं। इन हवाओं का असर बारिश पर पड़ता है। इससे कई जगहों पर जलवायु में बदलाव आता है। जैसे, इंडोनेशिया और भारत में मानसून सीजन रुक सकता है, लेकिन अटलांटिक महासागर में तूफान कम आ सकते हैं।
 
हालांकि, शोधकर्ताओं ने पाया कि अल नीनो का पूर्वी अफ्रीका में होने वाली बारिश पर सीधा असर नहीं पड़ता है, लेकिन उन्होंने कहा कि अल नीनो की वजह से हिंद महासागर में एक और जलवायु पैटर्न बन सकता है, जिसे पॉजिटिव इंडियन ओशेन डिपोल कहते हैं। इस पैटर्न की वजह से इस क्षेत्र में भयंकर बाढ़ आ सकती है
 
ला नीना से बढ़ती हैं तूफान की घटनाएं
ला नीना की स्थिति, अल नीनो के उलट होती है, क्योंकि इसमें पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली हवाएं सामान्य से ज्यादा तेज हो जाती हैं। आमतौर पर, ला नीना की स्थिति हर तीन से पांच साल में बनती है। पश्चिम में गर्म पानी की वृद्धि ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में अधिक वर्षा ला सकती है।
 
ला नीना की वजह से पूर्वी प्रशांत क्षेत्रों में, जैसे कि दक्षिण-पश्चिमी अमेरिका और मेक्सिको से लेकर दक्षिण अमेरिका तक, सूखे की स्थिति और जंगल की आग बढ़ सकती है। हालांकि, अमेरिका के पूर्वोत्तर राज्यों और कनाडा में ला नीना की वजह से सर्दियों में ज्यादा बारिश और ठंड पड़ सकती है।
 
ला नीना से आमतौर पर अटलांटिक बेसिन में तूफान की गतिविधि भी बढ़ती है। अटलांटिक महासागर में समुद्र का तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है, जिससे तूफानों की स्थिति और भी खराब हो सकती है।
 
असर का पूर्वानुमान लगाना मुश्किल
ला नीना और अल नीनो प्राकृतिक पैटर्न हैं, लेकिन इनका असर समय और अवधि के हिसाब से बदल सकता है। जलवायु परिवर्तन भी इन पैटर्न को प्रभावित करता है और कुछ सबूत बताते हैं कि इनकी वजह से ला नीना और अल नीनो की स्थिति बार-बार और तेजी से बन रही है।
 
वैज्ञानिकों का कहना है कि जैसे-जैसे धरती का तापमान बढ़ रहा है, अल नीनो और ला नीना का असर भी ज्यादा तेज हो सकता है। गर्म हवा में ज्यादा पानी होता है, जिससे बहुत ज्यादा बारिश हो सकती है।
 
रिसर्चरों का कहना है कि अगर हम जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल कम करके ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन शून्य कर दें, तो वैश्विक तापमान बढ़ने और ईएनएसओ के असर से भी बचा जा सकता है।

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