Festival Posters

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

क्या तमिलनाडु के स्टालिन को देखकर वोट देगी बिहार की जनता

बिहार में राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा खूब सुर्खियां बटोर रही हैं। राज्य से बाहर के विपक्षी नेता भी इस यात्रा में शामिल हो रहे हैं। कहा जा रहा है कि इसके जरिए राहुल गांधी कई अन्य लक्ष्यों को भी साध रहे हैं।

Advertiesment
हमें फॉलो करें stalin in voter adhikar yatra

DW

, शनिवार, 30 अगस्त 2025 (07:58 IST)
-आदर्श शर्मा
भारतीय चुनाव आयोग ने 24 जून, 2025 को जब बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण करने की घोषणा की तब शायद उन्हें अंदाजा भी नहीं होगा कि विपक्षी इंडिया गठबंधन एसआईआर प्रक्रिया का इतनी मजबूती से विरोध करेगा। पहले तो विपक्षी नेता एसआईआर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, लेकिन वहां से कोई ठोस नतीजा ना मिलने पर इंडिया गठबंधन खासकर कांग्रेस ने बिहार में ‘वोटर अधिकार यात्रा' निकालकर इस मुद्दे को जनता के बीच ले जाने का फैसला किया।
 
17 अगस्त को बिहार के सासाराम जिले से इस यात्रा की शुरुआत हुई। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह यात्रा अब तक 10 से ज्यादा जिलों से होकर गुजर चुकी है। इसका समापन 1 सितंबर को राजधानी पटना में एक मार्च के साथ होगा। अभी तक इस यात्रा का पूरा फोकस कथित "वोट चोरी” के मुद्दे पर रहा है। यात्रा के दौरान, "वोट चोर-गद्दी छोड़” जैसे नारे जमकर सुनाई दिए हैं। लेकिन सवाल है कि क्या इस यात्रा का मकसद केवल एसआईआर प्रक्रिया का विरोध करना है।
 
"बिहार में नेता के तौर पर खुद को स्थापित कर रहे राहुल”
राहुल गांधी के नेतृत्व में निकाली जा रही वोटर अधिकार यात्रा में तेजस्वी यादव, पप्पू यादव और मुकेश सहनी जैसे बड़े स्थानीय नेता तो शामिल हो ही रहे हैं, इनके साथ ही दक्षिण भारत के कई कद्दावर नेताओं को भी बुलाया गया है। पहले तो 24 अगस्त को कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार यात्रा में शामिल हुए, फिर 26 अगस्त को तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी और 27 अगस्त को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन इस यात्रा में शामिल हुए।
 
दक्षिण भारत के इन कद्दावर नेताओं का बिहार में कोई खास जनाधार नहीं है। ऐसे में इन नेताओं को बिहार बुलाने का क्या उद्देश्य है। इसके जवाब में बिहार के वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र डीडब्ल्यू हिंदी से कहते हैं कि एक कारण यह हो सकता है कि इस बहाने से राहुल गांधी की यात्रा को काफी लोकप्रियता मिल रही है और बिहार में उन्होंने गठबंधन के नेता के रूप में खुद को स्थापित कर लिया है।
 
पुष्यमित्र इंडिया टुडे हिंदी पत्रिका के बिहार ब्यूरो के प्रमुख हैं। उनका मानना है कि इन नेताओं को बुलाकर राहुल गांधी यह संदेश भी देना चाहते हैं कि वे इंडिया गठबंधन के निर्विवाद नेता हैं। पुष्यमित्र आगे कहते हैं, "एसआईआर के बारे में कहा जा रहा है कि यह पूरे देश में होगा। उन नेताओं के राज्यों में भी यह एक चिंता की बात है। तो बिहार जाने से उनके राज्य में भी संदेश जाएगा कि अगर यहां भी एसआईआर होगा तो हम एकजुट हैं।”
 
क्या उल्टा पड़ सकता है रेवंत-स्टालिन को बुलाने का दांव
वोटर अधिकार यात्रा में एमके स्टालिन और रेवंत रेड्डी को बुलाने को लेकर बीजेपी ने राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की आलोचना की है। बीजेपी ने एक्स पर पोस्ट कर आरोप लगाया कि तेजस्वी और राहुल ने "बिहार के लोगों का अपमान करने वाले स्टालिन और रेवंत रेड्डी जैसे नेताओं को अपनी यात्रा में बुलाकर बिहारवासियों को अपमानित कराया है।”
 
तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी पर आरोप हैं कि उन्होंने दिसंबर, 2023 में बिहार के डीएनए को लेकर विवादित बयान दिया था। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, रेवंत ने कथित तौर पर कहा था कि राज्य के पूर्व सीएम केसीआर के अंदर बिहार का डीएनए है और उनके अंदर तेलंगाना का डीएनए है। रेवंत ने कथित तौर पर तेलंगाना के डीएनए को बिहार के डीएनए से बेहतर बताया था।
 
बीजेपी इसी बयान को लेकर कांग्रेस की आलोचना कर रही है। इस पर पुष्यमित्र कहते हैं, "अभी जो यात्रा चल रही है, वह बिहार में कांग्रेस के हालिया चुनाव प्रचार अभियानों में सबसे सफल है। इसकी काट एनडीए गठबंधन नहीं तलाश पा रहा है। इसलिए जब ऐसे नेता आते हैं तो उनको एक मौका मिल जाता है कि वे कहें कि इन्होंने बिहार के लोगों का अपमान किया है।”
 
क्या "वोट चोरी” के मुद्दे पर जीता जा सकता है बिहार चुनाव?
बिहार में नवंबर, 2025 में विधानसभा चुनाव होने की उम्मीद है। लेकिन एसआईआर प्रक्रिया की बदौलत, चुनावी मंच अभी से सजना शुरू हो गया है। फिलहाल, इंडिया गठबंधन का पूरा जोर "वोट चोरी” के मुद्दे और राज्य की "बिगड़ती कानून-व्यवस्था” पर है। वहीं, मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर से नई-नई योजनाओं की घोषणा की जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी बिहार के दौरे कर रहे हैं और राज्य को परियोजनाओं की सौगात दे रहे हैं।
 
पुष्यमित्र कहते हैं कि बिहार में एनडीए के पास फिलहाल कोई खास मुद्दा नहीं है, उनका प्रचार भी कमजोर है और परसेप्शन की लड़ाई में राहुल गांधी पहली बार काफी आगे दिख रहे हैं। वे आगे कहते हैं, "एनडीए गठबंधन बिहार में वोट चोरी के आरोप का मजबूत जवाब नहीं दे पा रहा है। ऑपरेशन सिंदूर जैसे उनके अपने मुद्दों की भी उतनी चर्चा नहीं हो रही है। इसके अलावा, एंटी इनकंबेंसी भी है।”
 
पुष्यमित्र कहते हैं कि इस यात्रा ने लोगों के मन में चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर एक सवाल तो खड़ा कर दिया है, लेकिन सिर्फ ‘एसआईआर' और ‘वोट चोरी' के मुद्दे पर पूरा चुनाव नहीं जीता जा सकता। उनका मानना है कि विपक्षी दल वोट चोरी के मुद्दे से शुरुआत कर रहे हैं, फिर धीरे-धीरे इसे पलायन, रोजगार और शिक्षा जैसे अन्य मुद्दों से जोड़ेंगे। वे आखिर में कहते हैं कि वोट चोरी का मुद्दा अगर केंद्र में रहेगा तो बाकी सारे मुद्दे भी उससे बंधे हुए रहेंगे।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

समाज में लिव-इन रिलेशन को लेकर क्यों बढ़ा आकर्षण, जानिए शादी के बिना साथ रहने के फायदे, नुकसान और कानूनी पहलू