रिपोर्ट : राहुल मिश्र
अमेरिकी संसद की स्पीकर के ताइवान दौरे के बाद चीन बिफरा हुआ है लेकिन क्या सचमुच वह इसका जवाब ताइवान के खिलाफ युद्ध छेड़ कर देगा? क्या चीन के पास ताइवान पर हमले के सिवा और कोई रास्ता नहीं बचा? तमाम अटकलों और ऊहापोह को ताक पर रखते हुए अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ रेप्रेजेंटेटिव्स की स्पीकर नैंसी पेलोसी ने अपना ताइवान दौरा पूरा कर लिया।
अमेरिकी नजरिये से देखें तो यह एक जरूरी कदम था जबकि ताइवान और अन्य इंडो-पैसिफिक देशों के नजरिये से देखें तो इस बात से अमेरिकी सरकार की विश्वसनीयता और किए गए वादों को लेकर वचनबद्धता की पुष्टि होती है। लेकिन चीन के लिए यह एक कूटनीतिक नाकामी है।
कैसे जवाब दे चीन?
पेलोसी प्रकरण का दुनिया को संदेश यही है कि अगर अमेरिका चाह ले तो कुछ भी कर सकता है और चीन भी उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता। हार सिर्फ कमिटमेंट को लेकर नहीं हुई है चीन की प्रतिष्ठा को भी अनायास आंच आ गई है। बेवजह इस मुद्दे को तिल का ताड़ बना बैठे चीन पर बड़ा संकट यह है कि इस बात का जवाब दे कैसे?
पेलोसी को रोक ना पाने और कोई जवाबी कार्यवाही ना कर पाने से दादागिरी में अमेरिका से तो वह मात खा चुका है। हालांकि अब खेत खाय गदहा, मार खाय जुलहा वाली तर्ज पर ताइवान को प्रताड़ित करने की कोशिश चीन जरूर करेगा।
इस कोशिश की शुरुआत पहले ही हो चुकी है। पेलोसी की यात्रा के ठीक बाद चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी के 27 लड़ाकू जहाज ताइवान के एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन में घुस गए। अतिक्रमण की यह घटनाएं महज एक शुरुआत हैं। आने वाले दिनों में इसमें तेजी से इजाफा होने की आशंका है। इस सैन्य उग्रता और अतिक्रमण का मकसद फिलहाल तो ताइवान को डराना ही है, लेकिन इन गतिविधियों में बढ़ोतरी ताइवान के लिए परेशानी का सबब बनेगी।
आर्थिक मोर्चे पर भी चीन ताइवान की नकेल कसने की कोशिश में लग गया है। इसकी शुरुआत उसने आर्थिक प्रतिबंध लगाने के साथ कर दी है। रिपोर्टों के अनुसार फलों, मछली, और अन्य सब्जियों के आयात पर चीन ने प्रतिबंध लगा दिया है।
चीन ने यह भी घोषणा की है कि वह ताइवान स्ट्रेट में और उसके इर्द-गिर्द सैन्य अभ्यास भी करेगा। लाइव फायर ड्रिल करने के पीछे मंशा यही है कि ताइवान को उसकी हदों में रखा जाय। चीन की इन कार्यवाहियों को सिर्फ गीदड़ भभकी समझना सही नहीं होगा। अमेरिका की चुनौतियों से निपटने में चीन के लिए जरूरी है कि उसकी खोयी साख जल्द वापस आए।
ताइवान का घेराव
इस लिहाज से दो बातें काफी गंभीर रुख ले सकती हैं। पहला है चीन का ताइवान के तमाम बंदरगाहों के इर्द गिर्द लाइव फायर ड्रिलिंग के जरिये घेराव। ऐसा लगता है कि ताइवान को दुनिया के व्यापार और सप्लाई चेन मैकेनिज्म से अलग-थलग करने की चीन की योजना है। अगर ऐसा होता है तो ताइवान स्ट्रेट में चीन के अमेरिका और ताइवान समेत उसके तमाम सहयोगियों के साथ संबंधों में और कड़वाहट आएगी।
यह बात एक बड़ी घटना का रूप भी ले ले तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। इसी से जुड़ी दूसरी संभावना है कि चीन सैन्य अतिक्रमण से आगे बढ़कर ऐसा कुछ करे कि ताइवान के हवाई क्षेत्र में उसकी लगातार उपस्थिति बनी रहे।
यह दोनों परिस्थितियां चीन की पहले से कहीं बड़ी उपस्थिति की संभावना की और इशारा करती हैं। दूसरी और अमेरिकी सत्ता के गलियारों में यह गूंज भी उठ रही है कि ताइवान को अमेरिकी और तमाम यूरोपीय देशों के सैन्य संगठन नाटो (नार्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाईजेशन) का मेजर गैर नाटो सहयोगी बना दिया जाए।
जो भी हो यह बात तो तय है कि अपने ताइवान दौरे से पेलोसी ने यह जाता दिया है कि चीन से निपटने में वह ताइवान के साथ डट कर खड़ा होगा। लेकिन चीन की गतिविधियों से भी यह साफ हो गया है कि ऐसा करना आसान नहीं होगा। चीन रूस के ढर्रे पर चलकर यूक्रेन जैसी स्थिति नहीं लाएगा लेकिन ताइवान को सबक सिखाने की उसकी कोशिश भी पुरजोर होगी।
(डॉ. राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के आसियान केंद्र के निदेशक और एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं। आप @rahulmishr_ ट्विटर हैंडल पर उनसे जुड़ सकते हैं।)