झारखंड में क्यों नहीं कामयाब हो सकी बीजेपी

DW
सोमवार, 25 नवंबर 2024 (09:11 IST)
-मनीष कुमार
 
महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव के नतीजे अनुमान के विपरीत रहे। महाराष्ट्र में एनडीए यानी महायुति गठबंधन बहुमत से काफी आगे निकल गई तो वहीं झारखंड में हेमंत सोरेन की अगुवाई में इंडिया गठबंधन ने जर्बदस्त वापसी की। महाराष्ट्र की 288 तथा झारखंड की 81 विधानसभा सीटों समेत अन्य जगहों पर बीते 13 तथा 20 नवंबर को वोट डाले गए थे।
 
झारखंड में जहां आरजेडी की स्थिति पहले से मजबूत हुई, वहीं बिहार के उपचुनाव में वह अपनी यादव-मुस्लिम बहुल सीट भी नहीं बचा पाई। बिहार विधानसभा उपचुनाव की सभी 4 सीटें एनडीए अपने खाते में ले गई। इन दोनों राज्यों से इतर बिहार विधानसभा के उपचुनाव में एनडीए ने सभी 4 सीटों पर जीत दर्ज की।
 
झारखंड और महाराष्ट्र, दोनों के ही एग्जिट पोल के नतीजे बता रहे थे कि झारखंड में एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच कांटे की टक्कर होगी जबकि महाराष्ट्र में एनडीए बढ़त बनाएगी, किंतु दोनों ही राज्यों में सीटों का अंतर इतना हो जाएगा, यह अनुमान से परे था। एग्जिट पोल करने वाली लगभग सभी एजेंसियां गच्चा खा गईं। हां, एक्सिस माय इंडिया ने अवश्य ही झारखंड में एनडीए को 17 से 27 तथा इंडिया गठबंधन को 49 से 59 सीटें आने का अनुमान लगाया था, जो परिणाम के काफी नजदीक रहा।
 
इस बार झारखंड में चुनाव प्रचार जमकर हुआ। एनडीए की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6, अमित शाह ने 16, योगी आदित्यनाथ ने 14 सभाएं कीं। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने तो झारखंड में तो डेरा ही डाल रखा था, वहीं इंडिया गठबंधन की तरफ से राहुल गांधी की 6 सभाओं के अलावा लगभग पूरा जोर हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने ही लगाया। 
 
उधर, बिहार के विधानसभा उपचुनाव में चारों सीटें, रामगढ़, बेलागंज, तरारी तथा इमामगंज में एनडीए ने जीत दर्ज कर महागठबंधन को बड़ा झटका दिया है। इससे पहले इनमें 3 सीटों पर आरजेडी का कब्जा था। बेलागंज विधानसभा क्षेत्र में यादवों और मुसलमान वोटरों की संख्या अधिक है। इसे लालू प्रसाद यादव के माय (मुस्लिम-यादव) समीकरण का गढ़ माना जाता रहा है। यहां से सुरेन्द्र यादव 1990 से लगातार चुनाव जीतते आ रहे थे। सांसद चुने जाने के बाद इस बार उनके बेटे डॉ. विश्वनाथ यहां से चुनाव लड़ रहे थे। इस बार केवल इसी सीट के लिए लालू प्रसाद ने भी प्रचार किया था। लेकिन यहां से जेडीयू की मनोरमा यादव ने डॉ. विश्वनाथ को पराजित कर दिया।
 
जानकार इसे जनसुराज की उपस्थिति का परिणाम बता रहे हैं। उनका कहना है कि जनसुराज के उम्मीदवार मो। अमजद ने मुसलमानों के वोट काटे। वे तीसरे नंबर पर रहे। अमजद भले ही जीत नहीं सके, लेकिन आरजेडी का गढ़ ढहाने का काम जेडीयू के लिए आसान तो कर ही दिया।
 
प्रशांत किशोर अपनी पार्टी जनसुराज के प्रदर्शन पर कहते हैं, 'प्रदर्शन और बेहतर हो सकता था। मात्र 1 महीने पुराने दल को 10 प्रतिशत वोट मिले हैं। इससे जाहिर होता है कि जनसुराज के प्रति लोगों में सकारात्मक सोच विकसित हुई है। आने वाले दिनों में यह अवश्य ही वोट में परिवर्तित होगा। यह कोई बहाना नहीं है।' 
 
नहीं चला चंपई का सिक्का
 
इस बार दोनों राज्यों में मतदान का प्रतिशत पिछले चुनाव से अधिक था। झारखंड के परिणाम इसलिए भी अप्रत्याशित रहे कि यहां जीत के लिए बीजेपी ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। आदिवासी अस्मिता तथा घुसपैठियों के मुद्दे को काफी जोर-शोर से उछाला गया, लेकिन ये सारे प्रयास धरे के धरे रह गए। जेएमजेएम छोड़ कर बीजेपी में आए झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री व कोल्हान टाइगर चंपई सोरेन भी बीजेपी के लिए खोटा सिक्का ही साबित हुए। वे सरायकेला सीट से चुनाव जीत गए हैं। लेकिन, उनके गढ़ कोल्हान में बीजेपी मात्र 2 सीटें ही जीत सकी।
 
इंडिया गठबंधन अपने गढ़ संथाल परगना और कोल्हान को बचाने में कामयाब रहा। इस बार जेएमएम की अगुवाई में इंडिया गठबंधन को 9 सीटों के इजाफे के साथ 56 सीटें मिलीं तो वहीं बीजेपी नीत एनडीए को 6 सीटों के नुकसान के साथ महज 24 सीटों पर संतोष करना पड़ा। इस बार 7 सीटों के फायदे के साथ जेएमएम 34, 3 सीटों के लाभ के साथ आरजेडी 4 पर पहुंच गई जबकि कांग्रेस को 2 के नुकसान के साथ 16 सीटें मिलीं। इनके अन्य सहयोगियों के खाते में 2 सीटें आईं।
 
वहीं दूसरी तरफ 3 सीटों के नुकसान के साथ बीजेपी ने 21, 2 के नुकसान के साथ एजेएसयू ने 1 सीट हासिल की, जबकि पहली बार 1 सीट जेडीयू के खाते में गई। इनके अन्य सहयोगियों को भी 2 सीटों का नुकसान हुआ, उन्हें केवल 1 सीट मिली, वहीं पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2109 में झारखंड में जेएमएम को 30, बीजेपी को 25, कांग्रेस को 16, जेवीएम को 3 तथा एजेएसयू को 2 और आरजेडी को 1 सीट मिली थी।
 
झारखंड में बीजेपी ने नई सीटों पर फोकस किया था। इसका फायदा भी हुआ। 11 नई सीटों उसके पाले में आईं, लेकिन इस चक्कर में 15 सिटिंग सीट उसके हाथ से निकल गईं। इसके ठीक उलट जेएमएम ने 30 में से 26 सीटों पर कब्जा बरकरार रखा और 8 नई सीटों पर जीत दर्ज की। कांग्रेस ने 16 में से 11 सीटों को अपने पाले में रखा जबकि 5 नई सीटों पर विजय हासिल की। बीजेपी को सबसे अधिक नुकसान छोटानागपुर प्रमंडल की सीटों पर हुआ। संथाल परगना प्रमंडल से भी बीजेपी का लगभग सफाया हो गया।
 
हेमंत के लिए सिम्पैथी फैक्टर भी रहा प्रभावी
 
राजनीतिक समीक्षक एके चौधरी के अनुसार झारखंड में हेमंत सोरेन के पक्ष में सिम्पैथी फैक्टर भी काफी प्रभावी रहा। वे कहते हैं, 'हेमंत सोरेन अपने चुनाव प्रचार के दौरान लगातार यह संदेश देने की कोशिश करते रहे कि आदिवासी चेहरे को कुचलने के लिए किस तरह उन्हें गलत तरीके से जेल में डाला गया। इसमें वे कामयाब भी रहे। कई विधानसभा सीटों पर 40 प्रतिशत से अधिक आदिवासी मतदाता हैं। वे एकजुट होकर उनके पक्ष में खड़े हो गए।'
 
हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद उनकी पत्नी कल्पना सोरेन सामने आईं और जहां-जहां गईं, वहां उन्होंने पति के साथ ज्यादती की बात समझाने की कोशिश की। चुनाव प्रचार के दौरान मंईयां सम्मान योजना की राशि 2 हजार से बढ़ाकर प्रतिमाह 2,500 रुपए करने की चर्चा भी उन्होंने खूब कीं। कल्पना ने सरना धर्म कोड की भी बात की और यह भी कहा कि बीजेपी ने नेता बाहर के हैं, वे हमारी भाषा-संस्कृति तक नहीं जानते। ये भला हमारे लिए क्या नीतियां बनाएंगे। अपने सहज व सरल अंदाज से खासकर महिलाओं को कनेक्ट करने में वे सफल रहीं। वे गांडेय सीटों से चुनी गई हैं।
 
संजीवनी साबित हुई मंईयां सम्मान योजना
 
चौधरी कहते हैं, 'महिलाओं की कल्याणकारी योजनाओं का भी असर जेएमएम के पक्ष में गया। बेरोजगार महिलाओं के लिए मासिक सहायता, स्कूली लड़कियों को मुफ्त साइकिल, अकेली महिलाओं को नकद सहायता जैसी योजनाओं ने आदिवासी और कमजोर वर्ग की महिलाओं को जेएमएम के पाले में लाने का काम तो किया ही, इसके साथ मंईयां सम्मान योजना ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।'
 
महिलाओं को सालाना 12,000 रुपए देने वाली इस योजना तथा सर्वजन पेंशन योजना ने हेमंत के पक्ष में संजीवनी का काम किया। फिलहाल झारखंड की करीब पचास लाख से अधिक महिलाओं को मंईयां सम्मान योजना के तहत 2,000 रुपए प्रतिमाह की मदद दी जा रही है। चुनाव के पहले जेएमएम ने इस राशि को बढ़ाकर 2,500 रुपए कर दिया था जबकि गोगो दीदी योजना के तहत बीजेपी ने 2,100 रुपए प्रतिमाह देने का वादा किया था।
 
चुनाव के ऐन मौके पर बिजली बिल माफ करना भी जेएमएम के लिए फायदेमंद साबित हुआ। सरकार बनने पर आरक्षण का दायरा बढ़ाने का भी वादा किया गया। चौधरी के अनुसार 'बीजेपी द्वारा 2016 में सीएनटी एक्ट में किया गया बदलाव अभी भी उन पर भारी पड़ रहा। आदिवासी इसे लेकर उनसे आज तक बिदके हुए हैं।' इस संशोधन के बाद जमीन के स्वरूप (नेचर) को बदला जा सकता था। इसे आदिवासियों ने उनकी जमीन छीनने का प्रयास माना जबकि बीजेपी ने यह सोचकर ऐसा किया था कि इससे राज्य में उद्योग-धंधे लगाना आसान हो सकेगा।
 
'बंटोगे तो कटोगे' पर भारी पड़ा जेएमएम का आदिवासी कार्ड
 
बीजेपी के कई धुरंधर नेताओं ने झारखंड में धुआंधार प्रचार किया। संथाल परगना क्षेत्र में घुसपैठ को लेकर बीजेपी काफी आक्रामक रही। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने तो यहां तक कहा कि झारखंड में भाजपा (बीजेपी) की सरकार बनाइए, घुसपैठियों को उल्टा लटका देंगे।
 
उन्होंने घुसपैठियों को ही जेएमएम, आरजेडी और कांग्रेस का वोट बैंक बताया। जमशेदपुर में स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि वोट और तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले घुसपैठियों को संरक्षण दे रहे हैं। उन्होंने चंपई सोरेन और सीता सोरेन के अपमान को आदिवासियों का अपमान बताया।
 
पत्रकार अमित पांडेय कहते हैं, 'बीजेपी ने 'बंटोगे तो कटोगे' का नारा देकर घुसपैठ की चर्चा करते हुए हिन्दुत्व कार्ड खेला और वहीं जेएमएम ने अपनी योजनाओं की चर्चा के साथ आदिवासी कार्ड खेला। जेएमएम का आदिवासी कार्ड बीजेपी के कार्ड पर भारी पड़ गया। आदिवासियों का भरोसा गुरुजी शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत सोरेन पर ही रहा।'
 
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा दिए गए नारे 'बंटोगे तो कटोगे' को बीजेपी के नेताओं ने इस चुनाव में खूब उछाला। पांडेय कहते हैं, 'यह नारा बीजेपी के लिए नुकसानदेह ही साबित हुआ। जिस संथाल परगना क्षेत्र के लिए यह नारा गढ़ा गया, वहां की 18 सीटों में से केवल 1 जरमुंडी सीट बीजेपी जीत पाई। हिन्दू वोटरों को एकजुट करने के लिए दिए गए इस नारे ने मुस्लिमों का ध्रुवीकरण कर दिया और उन्होंने एकजुट होकर इंडिया गठबंधन के पक्ष में मतदान कर दिया।'

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