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भारत की स्मार्ट सिटी परियोजना में क्यों हो रही है देरी

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, रविवार, 30 जुलाई 2023 (08:32 IST)
मुरली कृष्णन
भारत में स्मार्ट सिटी मिशन देश भर के सौ शहरों में अरबों रुपये के निवेश के जरिए शहरीकरण के लक्ष्य को तेजी से हासिल करना चाहता है। यह लक्ष्य पूरा होता नहीं दिख रहा है।
 
भारत में स्मार्ट सिटीज मिशन की शुरुआत जून 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी। इस मिशन के तहत देश भर के सौ शहरों को चुना गया ताकि उन्हें साफ और टिकाऊ वातावरण के साथ-साथ आधारभूत ढांचा प्रदान करके विकास किया जाए।
 
सरकार ने इस मिशन के लिए शुरुआती तौर पर 22 अरब डॉलर से ज्यादा की राशि निर्धारित की थी। सिटी प्लानर और वास्तुविद चेतावनी दे रहे हैं कि भारत के महानगरों पर प्रवासियों की भारी संख्या का पहले से ही भारी दबाव है और ये बड़ी आसानी से शहरी अराजकता के शिकार हो सकते हैं।
 
स्मार्ट सिटी मिशन के तहत देश भर में करीब 7,800 परियोजनाओं को शुरू किया गया जिनका लक्ष्य आर्थिक विकास के साथ-साथ जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना था। इंडियास्पेंड मीडिया के मई अंक में सरकारी स्रोतों से मिली जानकारी के जरिए बताया गया है कि इनमें से करीब 73 फीसदी परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं। लेकिन कुछ शहरों का इस मायने में प्रदर्शन अन्य की तुलना में बहुत खराब रहा है।
 
वित्तीय जवाबदेही को मजबूत करने और उसे सुधारने के मकसद से काम करने वाली एक स्वतंत्र संस्था सेंटर फॉर फाइनेंशियल अकाउंटेबिलिटी की एक रिपोर्ट में कहा गया है, "परियोजना पूरी होने में यह देरी इसलिए हो रही है क्योंकि यह परियोजना देश भर के सौ अलग-अलग शहरों में फैली है। कुछ शहरों का ट्रैक रिकॉर्ड तो अच्छा है, लेकिन अन्य शहरों का प्रदर्शन परियोजनाओं को लागू करने के लिहाज से खराब रहा है।”
 
रिपोर्ट में कहा गया है, "यह विषमता इन परियोजनाओं के लिए दिए गए धन के उपयोग की रफ्तार में भी देखी जा सकती है। कुछ शहरों में परियोजना पूरी होने का ट्रैक रिकॉर्ड तो अच्छा है लेकिन इनके लिए जिस तरह से पैसे खर्च किए गए, वह सही नहीं है। ”परियोजना में लगे लोगों को शुरूआत में स्मार्ट सिटी मिशन को 2020 तक पूरा कर लेने की उम्मीद थी, लेकिन उस साल कोविड महामारी की वजह से इसे पूरा करने का लक्ष्य 2023 तक बढ़ा दिया गया। लेकिन कईशहरों में अभी भी परियोजना पूरी होने में काफी समय है, इसलिए अधिकारियों ने इसकी डेडलाइन एक बार फिर से बढ़ाकर जून 2024 करी दी है। इस बीच, मुंबई सहित कई शहरों ने राजनीतिक असहमति के कारण परियोजना से बाहर निकलने का फैसला कर लिया।
 
परियोजना है क्या?
इस मिशन की परिकल्पना बड़े पैमाने पर शहरी बुनियादी ढांचे के नवीनीकरण और रेट्रोफिटिंग यानी पुरानी चीजों को नए रूप में बदलने की पहल के रूप में की गई थी, जिसका मकसद शहरों के बुनियादी ढांचे को जलवायु के अनुकूल और टिकाऊ बनाना, किफायती आवास, पर्याप्त बिजली-पानी और प्रभावी कचरा प्रबंधन जैसी सुविधाएं प्रदान करना था।
 
सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) से चलने वाली छोटे और बड़े, कुल 53 स्मार्ट शहरों में करीब 232 परियोजनाएं शुरू की गई हैं। ये परियोजनाएं बहु-क्षेत्रीय हैं और इनमें मल्टी-मॉडल ट्रांसपोर्ट हब, कॉमन मोबिलिटी कार्ड, मल्टी-लेवल कार पार्किंग और सार्वजनिक बाइक शेयरिंग जैसे बुनियादी चीजें शामिल हैं। सबसे ज्यादा परियोजनाओं को पूरा करने वाले राज्यों की सूची में कर्नाटक पहले स्थान पर है जिसने 768 परियोजनाओं की शुरुआत की थी। इसके बाद मध्य प्रदेश (577), उत्तर प्रदेश (553) और तमिलनाडु (531) का नंबर आता है। सभी सौ शहरों में इंदौर में पूरी हुई परियोजनाओं की संख्या सबसे ज्यादा थी, जबकि शिलांग में सबसे कम, केवल एक ही परियोजना पूरी हुई है।
 
‘निराशाजनक' प्रदर्शन
मिशन के दिशानिर्देशों के मुताबिक, इस परियोजना के लिए केंद्र सरकार वित्तीय सहायता देती है और परियोजनाओं को लागू करने के लिए राज्य सरकारों व शहरी स्थानीय निकायों को भी समान राशि देनी होती है। सरकार इस मिशन की सफलता के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। हालांकि, सिटी प्लानर और नीति निर्माताओं का मानना है कि इन प्रस्तावित स्मार्ट शहरों में प्रौद्योगिकी-आधारित ‘स्मार्ट समाधान' शामिल करने के लिए पर्याप्त विचार नहीं किया गया है। योजनाओं को लागू करने में देरी की यह एक वजह हो सकती है।
 
हजार्ड्स सेंटर नामक शोध संस्था चलाने वाले राजनीतिक पर्यावरणविद डुनु रॉय कहते हैं कि स्मार्ट सिटी मिशन वास्तव में जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) की अगली कड़ी थी, जो अपने मूल में कई ‘स्मार्ट सुधारों' के साथ शहरों के आधुनिकीकरण की एक विशाल योजना भी थी। मूल परियोजना 2005 में शुरू की गई थी।
 
डीडब्ल्यू से बातचीत में रॉय कहते हैं, "लेकिन जेएनएनयूआरएम का प्रदर्शन निराशाजनक था, जिसमें निजी निवेश केवल 11 फीसदी था और लक्ष्य प्राप्ति 35 फीसदी से भी कम थी। जब तक बुनियादी ढांचे में राज्यों का पर्याप्त निवेश नहीं होगा तब तक निजी क्षेत्र इसमें कदम नहीं उठाएगा और राज्य सार्वजनिक जरूरतों में निवेश करने से इंकार कर देते हैं। यही कारण है कि भारत के शहर चट्टान और कठोर जगह के बीच फंस गए हैं।” रॉय मानते हैं, "एससीएम सिर्फ एक और 'स्मार्ट' दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है। नई दृष्टि बड़े डाटा प्रबंधन में प्रौद्योगिकी की गति से जुड़ी हुई है और इसे निजी फर्मों, प्रॉपर्टी डेवलेपर, मुक्त-व्यापारियों और सरकारों की तरफ वैचारिक रूप से बढ़ावा दिया गया है। फिर भी, एससीएम का प्रदर्शन खराब भी रहा है और उतना ही निराशाजनक भी।”
 
क्या हैं कमजोरियां
मशहूर लैंडस्केप वास्तुकार फ्रेडरिक रिबेरो कहते हैं कि परियोजना की कमजोरी में एक और बड़ा मुद्दा है, और वह है स्थानीय सरकारी विभागों और कार्यान्वयन एजेंसियों के बीच में समझ का फर्क। डीडब्ल्यू से बातचीत में रिबेरो ने बताया, "अधिकारी, खासतौर से छोटे नगर निगम प्राधिकरणों के अधिकारी, जब कम समय सीमा में काम करते हैं और केंद्र सरकार से भी उन्हें कोई खास सहयोग नहीं मिलता है तो बड़े बजट का प्रबंधन करने में उनके हाथ-पैर फूलने लगते हैं। उनके पास बड़ी परियोजनाओं को शुरू करने और चलाने की क्षमता भी नहीं थी। काम में प्रगति दिखाने के लिए कई मनमानी परियोजनाएं शुरू की गईं और फिर छोड़ दी गईं।”
 
मिशन के कुछ आलोचकों का कहना है कि यह मिशन भारत की सांस्कृतिक विशिष्टता की अनदेखी कर रहा है और स्थानीय जरूरतों और आकांक्षाओं के अनुसार नहीं है। सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के पार्थ मुखोपाध्याय इस बात से सहमत हैं कि यह एक जरूर मुद्दा था लेकिन ऐसा भी नहीं है कि यह स्थिति परियोजना में शामिल सभी राज्यों में हो। डीडब्ल्यू से बातचीत में मुखोपाध्याय कहते हैं, "उदाहरण के लिए, तमिलनाडु के कोयंबटूर ने झील के पुनरुद्धार में, आइजोल ने खेल के मैदानों में, चेन्नई ने बाढ़ चेतावनी तंत्र में, इंदौर ने बायोगैस से चलने वाली बसों में और चंडीगढ़ ने साइक्लिंग ट्रैक में निवेश किया है।”
 
हालात चाहे जो भी हों, इसमें निवेश किए गए 22 अरब डॉलर बड़े पैमाने पर सुधारों की कड़ी में पहला कदम हैं, जिनका भारत के बढ़ते शहरीकरण के लिए समर्थन किया जाना चाहिए। 1।4 अरब की आबादी के साथ, भारत अब दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है। मौजूदा शहरी आबादी करीब 46 करोड़ है और अधिकारियों का मानना है कि अगले 25 वर्षों में यह दोगुनी हो जाएगी। देश के आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय का मानना है कि शहरीकरण की इस वृद्धि से निपटने के लिए करीब 6 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी।

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