किलर रोबोट या ड्रोन पर प्रतिबंध लगाने को लेकर दुनिया बंटी हैं। एक तरफ ताकतवर देश हैं तो दूसरी तरफ मानवता को संकट में डालने की चेतावनी दे रहे विशेषज्ञ।
ये वो ड्रोन नहीं हैं जो वीडियो बनाते हैं, फोटो खींचते हैं या फिर ऑनलाइन ऑर्डर किया गया सामान पहुचाते हैं। ये ड्रोन कई कैमरों, सेंसरों और विस्फोटको से भरे हुए हैं। इनका मिशन किसी ठिकाने को चुनना और उसे ध्वस्त करना है। एक अल्गोरिदम ये सारे फैसले कर रही होती है। टारगेट पर ध्वस्त करने के साथ ही ये ड्रोन खुद भी परखच्चों में बदल जाते हैं और पीछे छूटता है विध्वंस, शव, मलबा और इलेक्ट्रॉनिक कचरा।
जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में इस बार 80 देश इसी किलर ड्रोन पर फिर से चर्चा कर रहे हैं। कोशिश है कि इन पर या तो पूरी पाबंदी लगे या फिर उन्हें कड़ी शर्तों के साथ इस्तेमाल किया जाए।
इंसानों को मारने वाली मशीनें
ऑटोनॉमस वीपंस, जैसा कि नाम से ही साफ है, ये खुद टारगेट चुनकर उस पर हमला कर सकते हैं। दूर बैठकर किसी इंसानी अंगुलियों से चल रहे ड्रोनों से ये अलग हैं। हथियार निर्माता आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग सेक्टर में हो रही नई खोजों का भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं। हथियार ज्यादा खतरनाक होते जा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र पूरी तरह स्वचालित इन हथियारों को "लीथल ऑटोनॉमस वीपंस सिस्टम कहते है।" आलोचक इन्हें किलर रोबोट कहते हैं। ये कुछ भी हो सकते हैं, ड्रोन, लैंड व्हीकल्स या पनडुब्बियां।
कुछ देश चाहते हैं कि ऑटोनॉमस हथियारों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगे। उनका तर्क है कि जीवन और मृत्यु का फैसला एल्गोरिदम को नहीं करना चाहिए। कई देश ऐसे हथियारों को रेग्युलेट करना चाहते हैं। वे नियम और शर्तों के साथ यह भी चाहते हैं कि हमले का फैसला करने की प्रक्रिया में इंसान भी शामिल हो।
राह में ताकतवर देश
2014 में पहली बार इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में बहस हुई। उसके बाद से हर साल दो बार इस पर बातचीत होती है। अमेरिका, रूस और चीन ऑटोनॉमस हथियारों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का सबसे ज्यादा विरोध करते हैं। तीनों देश नहीं चाहते कि किलर ड्रोनों के लिए कोई बाध्यकारी नियम बनाए जाएं।
मार्च में होने वाली एक बैठक तो सिर्फ इस वजह से टल गई कि रूस ने मीटिंग का एजेंडा स्वीकार करने से मना कर दिया। उस वक्त रूस को यूक्रेन पर हमला किए कुछ ही हफ्ते हुए थे।
ऑटोनॉमस मशीनों के युद्ध अपराध
जर्मन आर्म्ड फोर्सेज यूनिवर्सिटी म्यूनिख में ऑटोनॉमस हथियारों पर रिसर्च कर रहीं वेनेसा फोस कहती हैं, "अगर ऑटोनॉमस वीपन गलती करता है या किसी संभावित युद्ध अपराध को अंजाम देता है, तो किसकी जिम्मेदारी होगी?" फोस के मुताबिक जवाबदेही तो कई सवालों के गुच्छे का एक अंश मात्र है।
जिनेवा में हो रही बैठक शायद किसी भी सवाल का अंतिम जवाब ना दे सके। यूक्रेन युद्ध ने आशंकाएं और बढ़ा दी हैं। कुछ कहते हैं कि यूक्रेन युद्ध को देखते हुए ऐसे हथियारों पर पूरा प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। कुछ की नजर में यूक्रेन युद्ध, निराशा की एक निशानी है।
स्टॉप किलर रोबोट्स नाम का अभियान चलाने वाले उस्मान नूर कहते हैं, "इस बात के सबूत हैं कि रूस विवाद में ऑटोनॉमस हथियारों का इस्तेमाल कर रहा है। " नूर का एनजीओ इन पर प्रतिबंध की मांग कर रहा है, "यह इस बात की स्वीकारोक्ति हो सकती है कि पूरी दुनिया में बिकने से पहले इन हथियारों के लिए रेग्युलेशन की सख्त जरूरत है।"
रिपोर्टों के मुताबिक अमेरिका ने भी यूक्रेन को ऐसे कई कामिकाजे ड्रोन दिए हैं जो खुद ही टारगेट खोजकर उसमें धमाका कर सकते हैं। एक्सपर्ट लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि बड़ी संख्या में छोटे हमलावर ड्रोनों का प्रोडक्शन बंद किया जाए। ऐसे ड्रोनों के लिए कोई भी आईटी स्टूडेंट प्रोग्राम बना सकता है। एआई रिसर्चर स्टुअर्ट रसेल ने डीडब्ल्यू से बातचीत में उप्दान की बड़ी क्षमता का हवाला देते हुए कहा, " हम ऐसे हथियार बना रहे हैं जिनकी विध्वंस क्षमता एक अकेले अटम बम से भी ज्यादा हो सकती है।"
जर्मनी में हथियारबंद ड्रोनों को ज्यादा पैसा
यूक्रेन युद्ध ने कई देशों को सेना और हथियारों में ज्यादा पैसा खर्च करने के लिए उकसाया है। जर्मनी ने अपने रक्षा बजट में 100 यूरो का इजाफा किया है। इस रकम का कुछ हिस्सा हथियाबंद ड्रोन और आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस से लैस आधुनिक हथियार खरीदने में खर्च हो सकता है।
पर्यवेक्षकों को कहना है कि यूएन में जर्मनी के प्रतिनिधि अब भी अपनी राय स्पष्ट तौर पर जाहिर कर रहे हैं। कुछ विशेषज्ञों को लगता है कि ज्यादा देशों के साथ बातचीत से ही पूर्ण प्रतिबंध या कड़े नियमों वाला रास्ता निकल सकता है। जिस वक्त ये सम्मेलन हो रहा है उस वक्त भी दुनिया के कुछ हिस्सों में ऑटोनॉमस हथियार इस्तेमाल हो रहे हैं। फोस कहती हैं कि "इससे पहले कि कुछ बड़ी अनहोनी हो जाए, हमें नए नियम बनाने ही होंगे।"