रिपोर्ट : अविनाश द्विवेदी
दुनियाभर में मशहूर भारतीय शादियों की चमक कोरोना काल में फीकी पड़ी है। शॉपिंग ऑनलाइन हो रही है। गेस्ट लिस्ट छोटी हो गई है। पिछले साल तक कोरोना प्रतिबंधों की शिकायतें आ रही थीं लेकिन अब लोग इन्हें सामान्य मान चुके हैं।
बिहार के पश्चिमी चंपारण की रहने वाली प्रीति प्रकाश शादी से कुछ दिन पहले ही अपने घर पहुंचीं। उन्हें कोरोना काल में शादियों के बदले रंग-रूप के चलते ज्यादा तैयारियां नहीं करनी थीं। वे कहती हैं कि जो तैयारियां होनी थीं, वह मेरे पहुंचने तक घर वालों ने कर ली थीं। असम के तेजपुर विश्वविद्यालय में रिसर्च स्कॉलर प्रीति ने शादी के लिए सिर्फ 5 साड़ियां खरीदीं। वे बताती हैं, गहने भी कम ही रहे। मेरे लिए कोरोना की शादी कोई बुरा अनुभव नहीं रहा क्योंकि मुझे खुद साधारण शादी पसंद है। शादी में ज्यादा भीड़ भी नहीं थी और ज्यादातर घर के लोग ही शामिल हुए। दोस्तों ने तो खुद ही कोरोना का हवाला देते हुए हमें घरों से ही शुभकामनाएं भेज दीं।
हालांकि भारत में शादियां हमेशा ऐसी नहीं थीं। यहां शादियों का मतलब होता है साड़ी की दुकानों के कई चक्कर, गहनों की खरीदारी, मेकअप, महीनों पहले से कपड़े सिलाना, घर की सजावट, केटरिंग का लंबा-चौड़ा मेन्यू और सैकड़ों मेहमान। लेकिन दुनियाभर में मशहूर भारत की शादियों की चमक पिछले डेढ़ साल में फीकी पड़ी है। शॉपिंग ऑनलाइन हो रही है। गेस्ट लिस्ट छोटी हुई है। पिछले साल तक कई जोड़े कोरोना के चलते लगे प्रतिबंधों की शिकायत कर रहे थे लेकिन अब लोग इन बदलावों को सामान्य मान चुके हैं। भारत में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भी शादियां जारी रहीं। इनमें सिर्फ तब थोड़ी कमी आई, जब यहां रोजाना 3-4 लाख कोरोना संक्रमण के मामले आने लगे। हालांकि तब भी लोगों ने शादियों को सिर्फ कुछ हफ्तों या महीनों के लिए टाला।
कोरोना को ध्यान में रख बदली प्लानिंग
अब वेडिंग प्लानर और बैंक्वेट हॉल मालिकों ने भी अपने काम को इस तरह ढाल लिया है कि अगर शादी आखिरी समय पर टाल दी जाए तब भी उन्हें ज्यादा घाटा न हो। वेडिंग प्लानर बताते हैं कि भारत में शादियों में छोटी पैकेज्ड पानी की बोतलों का चलन पहले ही बढ़ रहा था, अब लगभग 100 फीसदी शादियों में इन्हीं की मांग है। विक्रम सिंह कहते हैं कि हमने शादियों में सजावट और केटरिंग में काम आने वाली ज्यादातर चीजों का स्टॉक कोरोना के बाद कम कर दिया है। जिससे अगर कोई आखिरी समय पर शादी टाले भी तो हम उस सामान को किसी दूसरी शादी में इस्तेमाल कर सकें।
हालांकि खाने को लेकर अब भी लोग पैकेज्ड फूड की डिमांड नहीं कर रहे। आरजे इवेंट्स नाम की कंपनी चलाने वाले वेडिंग प्लानर विक्रम सिंह कहते हैं कि जब तक शादी की पार्टियों में बूफे में सजे पकवान न रखे हों, लोगों को खाने में मजा नहीं आता। इसके अलावा शादियों में मेहमान भले ही कम हुए हों लेकिन ये एक-दूसरे से सालों बाद मिल रहे होते हैं और साथ में बातें करते हुए खाना पसंद करते हैं।
क्रिएटिव तरीके से सुनिश्चित की सुरक्षा
शादियों में कोरोना को लेकर भी सतर्कता बरती जा है। इसके लिए एंट्री पर ही सैनिटाइजेशन, मास्क और टेम्परेचर स्क्रीनिंग का इंतजाम किया जा रहा है। विक्रम सिंह कहते हैं कि ज्यादातर मेहमान शादियों में मास्क लगाकर रखते हैं, सिर्फ 20 फीसदी को इसे लेकर टोकना पड़ता है। हमने इसके लिए लोगों को प्रेरित करने का एक तरीका अपनाया है। हम पार्टियों में 'सेल्फी विद मास्क' नाम का एक प्वाइंट बना रहे हैं। जहां लोग मास्क पहनकर सेल्फी लेते हैं।
दुल्हन का मेकअप शादियों में बहुत मायने रखता है। ऐसे में ब्यूटीशियन अपनी और दुल्हन की सुरक्षा का ख्याल रखते हुए पीपीई किट पहनकर मेकअप कर रही हैं। उनके मुताबिक जब भारत में कोरोना के बहुत ज्यादा मामले आ रहे थे तो कुछ परिवारों ने उनसे मेकअप करने से पहले कोविड-19 निगेटिव सर्टिफिकेट देने की मांग भी की। फ्रीलांस ब्यूटीशियन प्राची लालवानी कहती हैं, शादियों में करवाए जाने वाले ब्राइडल और अन्य मेकअप पर कोरोना का ज्यादा असर नहीं हुआ है। पहले भी दुल्हन और उसके खास दोस्त या रिश्तेदार ही मेकअप कराती थीं। अब भी ऐसा ही है।
शादी हो गई लेकिन पार्टी बाकी है
कई परिवार जिन्होंने पिछले साल शादियों के कार्यक्रम टाल दिए थे, वे कोरोना की तीसरी लहर की खबरों के बीच इस साल ऐसा करने के मूड में नहीं हैं। इस साल वे कोविड गाइडलाइन का पालन करते हुए शादी के कार्यक्रम को पूरा कर रहे हैं। वेडिंग प्लानर बता रहे हैं कि जिन लोगों ने शादियों में कम ही मेहमानों और दोस्तों को बुलाया है, उनका मानना है कि एक साल के अंदर जब ज्यादातर लोगों को वैक्सीन लग जाएगी और कोरोना कम हो जाएगा, तब वे दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए एक और बड़े कार्यक्रम का आयोजन करेंगे। विक्रम सिंह कहते हैं कि अगर कोरोना की तीसरी लहर इतनी खतरनाक नहीं रही तो ऐसे कार्यक्रम अक्टूबर से ही शुरू हो जाएंगे। इसी महीने से भारत में सर्दियों की शादियों का सीजन शुरू होता है।
कोरोना की दूसरी लहर के दौरान निकाह करने वाले मिकात हाशमी बताते हैं कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी शादी को कोरोना इस तरह प्रभावित करेगा। निकाह का दिन (18 मई) जैसे-जैसे पास आ रहा था, कोरोना के मामले बढ़ते जा रहे थे। ऐसे में हमने मेहमानों की लिस्ट छोटी करनी शुरू की। पहले दोस्तों को उससे हटाया, फिर बुजुर्ग रिश्तेदारों को हटाया गया, आखिरी तक हम लगभग सभी को हटा चुके थे और बारात में जाने के लिए घर के सिर्फ 6 लोग बचे थे। शादी वाला अहसास तो फिर से पैदा नहीं किया जा सकता लेकिन हमने तय किया है कि सभी दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ एक पार्टी करेंगे, जिसमें फोटोशूट का इंतजाम भी होगा। लेकिन अभी देखना होगा कि यह कब तक हो सकेगा।
फिर से होगी 'बिग फैट वेडिंग' की वापसी
कई मीडिया रिपोर्ट्स में यह बात कही गई कि शादी में कम मेहमान और खर्च के कम होने से डेस्टिनेशन वेडिंग का क्रेज बढ़ा है लेकिन वेडिंग प्लानर मानते हैं कि यह इतना भी नहीं बढ़ा है, जितनी इसकी चर्चा है। दरअसल शादियों में घर के बुजुर्गों और रिश्तेदारों का अहम रोल होता है और कोरोना के खतरे के बीच इन्हें नई जगह ले जाना और होटल आदि में ठहराना लोग सुरक्षित नहीं मान रहे। उत्तराखंड में जिम कार्बेट आदि में कुछ शादियों की डिमांड आई हैं लेकिन डेस्टिनेशन वेडिंग का क्रेज बहुत ज्यादा नहीं है।
वेडिंग प्लानर मानते हैं कि भले ही कोरोना काल में भारत की 'बिग फैट वेडिंग्स' की चमक थोड़ी फीकी पड़ी हो लेकिन कोरोना के मामले कम होते ही ये शादियां फिर से अपने पुराने रूप में लौट आएंगी। इसके लिए वे दूसरी लहर के बाद लॉकडाउन खुलने पर हिमाचल में हुई भीड़ का उदाहरण देते हैं। वे मानते हैं भारतीय लोग जश्न को पसंद करते हैं और ऐसा बिल्कुल होगा कि भविष्य में भारतीय शादियां फीकी रहें और कम भीड़भाड़ हो।