ज्योतिष : भारत विद्या का विज्ञान

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- डॉ. प्रभाकर नारायण कवठेकर

ज्योतिष शास्त्र को लेकर कुछ लोगों के मन में भ्रम पैदा हो गया है। हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं। यह विज्ञान का युग माना जाता है। अतः कोई प्राचीन शास्त्र के विषय में संदेह प्रकट कर सकता है। इतना अवश्य देखना चाहिए, कोई आशंका, भ्रम या संदेह ज्ञान की प्राप्ति के लिए हो। सामान्य लोगों के मन में अज्ञान की वृद्धि न हो। यह सही है- वादे वादे जापते तत्व बोधः। सत्य के निकट पहुँचाने वाला वह वाद हो।

ज्योतिष का अपना एक शास्त्र है। शास्त्र उसे कहते हैं, जो नियमों के अनुसार अपने सिद्धांत निश्चित करता है। इन नियमों के आधार पर ही शास्त्रार्थ होता था। बौद्धिक अनुशासन किसी भी शास्त्र की पहली सीढ़ी है। विज्ञान में भी अनेक शास्त्र हैं, भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र आदि। संस्कृत में भी व्याकरण, काव्य, धर्म आदि विषयों के समान ज्योतिष का भी शास्त्र है। ज्योतिष एक भारतीय विद्या है। भारत के ऋषियों द्वारा प्रतिपादित अनेक भारत-विद्याओं में से ज्योतिष भी एक अनूठी विद्या है। किंतु इसे आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर तौलने का कोई आग्रह करे यह भी संभव है। अगर सत्य पर आधारित कोई शास्त्र है तो वह खरा उतरेगा ही।

विज्ञान का क्या अर्थ लेंगे हम, इस पर भी किसी प्राचीन शास्त्र को नकारने की हिम्मत कर सकेंगे। हजारों वर्षों से भारतीय चिंतन परंपरा स्वतंत्र है। विश्व के संपर्क में आने पर भी मौलिक चिंतन को क्षति नहीं पहुँची, प्रत्युत अनेक आधुनिक पाश्चात्य वैज्ञानिक तथ्यों में प्राचीन वेद आदि ग्रंथों में निहित वैज्ञानिक प्रज्ञा के दर्शन होने लगे हैं। प्राचीनतम ग्रंथ वेद केवल गंध, पुष्प आदि से अर्चित करने की पोथी नहीं रही, अपितु प्राचीन ऋषियों की कालजयी प्रज्ञा का भी रहस्योद्घाटन होने लगा है। इसे विगत शतकों में पाश्चात्य विद्वानों ने भी माना है।

' मोक्ष' के प्रतिपादन करने वाले अध्यात्म-शास्त्रों में ज्योतिष-विद्या भौतिक सुख की कामना करती है। किंतु ग्रहों में चैतन्य है। वेद यानी ज्ञान। वैदिक ज्ञान शास्त्रों के रूप में प्रकट हुआ। भारतीय परंपरा में विज्ञान शब्द का प्रयोग आध्यात्मिक अर्थ में आया है।

भगवद् गीता में कहा गया है 'ज्ञानं विज्ञान सहितम्‌'। बौद्ध दर्शन में भी विज्ञानवादी चिंतक हुए हैं, जिन्होंने बाह्य वस्तु को वस्तु न मानते हुए 'तदाकारा कारित' वृद्धि को ही केवल वस्तु (घट आदि) माना है। जगत को मिथ्या मानने वाले आदि शंकराचार्य यही अन्य प्रकार से सिद्ध कर गए हैं। विज्ञान का सत्य किसी भी रूप में उजागर हो सकता है। उस सत्य को नियमों के अनुसार प्रदर्शित करने को शास्त्र संज्ञा दी जाती थी।

भारत में परब्रह्म के ज्ञान को विज्ञान कहते थे। हमारा 'विज्ञान' साइंस से अधिक व्यापक है। दोनों सत्य की खोज करते हैं। ज्ञान में पृथक्करण के आधार पर सराहनीय निष्कर्ष निकालना आवश्यक है। मानव के लिए वह उपादेय होता है। प्रकृति में निहित तथ्य और सत्य को वैज्ञानिक पहली बार अपने सिद्धांत के रुप में प्रस्तुत करता है। वह भी आधुनिक मानव की महत्वपूर्ण उपलब्धि ही मानी जाएगी।

ज्योतिष शास्त्र में भी ग्रहों और नक्षत्रों के भावों, स्वभावों तथा प्रभावों का वर्णन वैज्ञानिक प्रक्रिया से किया गया है। उनमें पृथक्करण विधा है। जैसे सूर्य शनि से पृथक रुप से है। अध्यात्म में भी प्रकृति पुरुष, जड़ और चैतन्य, माया तथा ब्रह्म का पार्थक्य दर्शाया जाता है। वह विज्ञान ही है। किंतु दुर्भाग्य से कुछ लोगों के अंदर प्राचीन चिंतन परंपरा को नकारने का मानस बना हुआ है, वह एक अवैज्ञानिक सोच है। साइंस का विषय भौतिक विश्व है और भारतीय विज्ञान का भौतिक तथा आध्यात्मिक सत्य दोनों है। प्राचीन सत्य को उजागर करना (डिस्कवरी) है किंतु प्राचीन भाषा शैली में विज्ञान व्यक्त हुआ है। यह निरंतर प्रक्रिया चलती रही।

ज्योतिष शास्त्र पर यदि विचार करें तो सूर्यग्रहण का गणित अचूक होता है। उसे पंचांग में दर्शाया जाता है। ज्योतिष का मूलाधार गणित है और आधुनिक विज्ञान का भी गणित है। गणित-विद्या वेदों की देन है। विज्ञान की खोज अब वेदों में भी आधुनिक काल में होने लगी है। सूर्यग्रहण को ही लीजिए। आधुनिक विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि सूर्य या चंद्रमा को राहु-केतु निगलते नहीं, वास्तव में अंतरिक्ष में सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा आ जाने से सूर्य ग्रहण हो जाता है। ऋग्वेद के ऋषि को यह वैज्ञानिक तथ्य ज्ञात था। प्रथम बार योरप के भारत-विद्या के विद्वान लुडविग महाशय ने बताया था कि सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा आने से सूर्य ग्रहण होता है। यह वैज्ञानिक सत्य ऋग्वेद के ऋषि को ज्ञात था।

दोंनो को समझने के लिए छः वेदांग हैं- शिक्षा आदि। उनमें ज्योतिष एक है। पंचमहाभूत हैं- पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश। ऐतरेय उपनिषद में तेज को ज्योतिषी कहा गया है अर्थात ग्रह और नक्षत्र तेजोमय होने से ज्योतिषी कहा है। ज्योतिष शास्त्र इन ग्रहों और नक्षत्रों के अध्ययन से वेदों के रहस्य को प्रकट करते हैं। वैदिक देवत्ववाद का प्रभाव ग्रहों पर घटित हुआ है। दो ग्रह हर्षल और नेप्च्यून पश्चिम की देन हैं। किंतु डॉ. वर्तक (पुणे) के अनुसार ये दो ग्रह भी महाभारतकार महर्षि व्यास द्वारा निर्दिष्ट हैं।

वेदों और महाभारतादि ग्रंथों में नक्षत्र विज्ञान अधिक प्रचलित था। किस नक्षत्र पर क्या घटना हुई, इसका उल्लेख कालदर्शक होता था। जन्म ले चुके बालक की जन्मकुंडली में बारह ग्रहों की स्थिति दर्शाई जाती है। उसमें अन्य के साथ अश्विनी इत्यादि नक्षत्रों का भी उल्लेख होता है। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने वेदों में उल्लिखित नक्षत्रों के आधार पर गणित लगाकर वेदों का काल निश्चित किया है। कुछ विज्ञान महाभारत, रामायण आदि ग्रंथों में आए हुए नक्षत्रों के उल्लेख के आधार पर भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण का काल भी निश्चित करते हैं। ज्योतिष विज्ञान नक्षत्रों के प्रभाव को दर्शाता है। ग्रहों और नक्षत्रों के शुभाशुभ फल होते हैं। अंतरिक्ष के ग्रहों और नक्षत्रों का मानव पर प्रभाव पड़ता है, यह भविष्य में वैज्ञानिक सिद्ध करेंगे। व्याकरण आदि वेदों के छः अंगों में एक ज्योतिष है। विशेषता यह है कि अंतरिक्ष में जो ग्रह और नक्षत्र विद्यमान हैं, वे पृथ्वी से काफी दूर हैं। फिर भी भारतीय ज्योतिष विज्ञान का सिद्धांत है कि वे ग्रह और नक्षत्र पृथ्वी पर उत्पन्न मानवों पर शुभ और अशुभ परिणाम करते हैं। ग्रहों के अनुसार फलादेश करने की प्रथा लोकप्रिय है।

फलादेश में त्रुटियाँ हो सकती हैं, किंतु कहीं-कहीं पर फलादेश अचूक सिद्ध होते हैं। विज्ञान की प्रयोगशाला में भी असफलता रहती है। ज्योतिष के फलादेश में व्यक्तिगत भविष्य कथन के कारण असफलताओं का निराकरण नहीं होता। असफलता के गर्भ में ही सफल निष्कर्ष जन्म लेता है। जिन पंडितों का भविष्य सही निकला है, उस जन्मकुंडली को देखने में उनकी क्या प्रक्रिया और दृष्टि रही थी, इसकी चर्चा खुले रुप से होनी चाहिए, वह होती नहीं। प्राचीन विज्ञान के लिए भी आधुनिक वैज्ञानिक प्रक्रिया को अपनाना आवश्यक प्रतीत होता है। ज्योतिष अब भले ही एक व्यवसाय है किंतु वह एक अध्यवसाय भी है, इसे हमें नहीं भूलना चाहिए।

ऋग्वेद में नासदीय सूक्त में विश्व की उत्पत्ति के संबंध में ऋषि-प्रज्ञा आधुनिक खगोल विज्ञान (एस्ट्रो-फिजिक्स) के विद्वानों को भी प्रभावित कर सकती है। ज्योतिष पर वेद प्रज्ञा का प्रभाव रहा है। सूर्य, चंद्र तो प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
' प्रत्यक्षं ज्योतिषं शास्त्रम्‌
चन्द्रर्कौं यत्र साक्षिणौं।'

किंतु इतना कह देने से आधुनिक वैज्ञानिक संतुष्ट नहीं होंगे, उन्होंने अंतरिक्ष में दूर तक देख सकने वाली दूरबीन से कृष्ण विवर (ब्लैक होल) देखा है।

ज्योतिष शास्त्र के लिए एक चुनौती यह भी है कि ये कृष्ण विवर क्या हैं? इनका कोई परिणाम है क्या? गंगा में स्थित कृष्ण विवर ग्रह नहीं है। इस प्रश्न का उत्तर अध्यात्म की ओर इंगित करना चाहता हूँ। ज्योतिष की ज्योतियों का अभाव इन विवरों में है। इस संबंध में ऋग्वेद के नासदीय सूक्त में व्यक्त ऋषि प्रज्ञा की ओर मैं ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। ऋषि ने कहा- सृष्टि के निर्माण के पूर्व सत्‌ और असत्‌ दोनों ही नहीं थे, न ही सूर्य, चंद्र और तारे आदि थे। आकाश या अंतरिक्ष भी नहीं था। तो क्या था? स्पष्ट शब्दों में उस ऋषि ने कहा- तमः आसति्‌। अंधकार था। और इस अंधकार में 'एकमात्र' वह (ब्रह्म) था। इस 'एक' की अपनी शक्ति 'स्वधा' थी। इस स्वधा पर विशेष ध्यान नहीं गया है। स्वयं को धारण करने वाली यह शक्ति है, जो एक (ब्रह्म) से अलग नहीं है। स्वधा का परिणाम है जगत की उत्पत्ति/ माया, प्रकृति, परमाणु का सृजन हुआ है, वास्तव में वह एकमात्र चैतन्य ही था। यह उद्वैतवाद आदि शंकराचार्य के सिद्धांत का वैदिक पूर्व रूप है।

स्वधा के परिणामस्वरुप न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत, आइंस्टीन का सापेक्षतावाद और क्वांटम सिद्धांत और वर्तमान में महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग के स्ट्रिंग सिद्धांत का अध्ययन किया जा सकता है। इन सिद्धांतों के लिए मैं स्वधा को मूल रूप में देखता हूं। सिद्धांतों के लिए स्वधा को मूल स्त्रोत मानता हूं इसी प्रकार मानवों पर प्रभाव डालने की ग्रहों की दृष्टि का स्त्रोत भी यह वैदिक स्वधा ही है। इस संबंध में खगोलशास्त्री और ज्योतिषशास्त्री विचार करें। यह नम्र निवेदन है कि कृष्ण विवर उसी महान अंतरिक्ष के उस पार के वेदोक्त अंधकार का दर्शन कराते हैं।

आधुनिक विज्ञान ने बहुत बड़ी प्रगति की है। गणित के आधार पर सृष्टि की उत्पत्ति की एक-एक रहस्यमय परतें उद्घाटित हो रही हैं। ज्योतिष का मूलाधार भौतिक ग्रह तथा अध्यात्म विद्या है। महान वैज्ञानिक भी अंतिम समय में आध्यात्मिक चिंतन करते हैं। अतः यह धारणा है कि आगे चलकर आधुनिक विज्ञान और वैदिक अध्यात्म विद्या का ज्ञान एक स्थान पर आकर मिल जाएँगे। वह पूर्ण सत्य होगा।
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