तृतीय भाव पर ग्रहों का दृष्‍टि फल

चंद्रमा की दृष्टि शां‍त व शालीन बनाती है

भारती पंडित
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तृतीय भाव संबंधी विविध फलों के बारे में हम पूर्व में चर्चा कर चुके हैं। प्रत्येक भाव पर उसके स्वामी की स्थिति के अलावा उस भाव पर विविध ग्रहों की दृष्‍टि फल से भी भाव का फल प्रभावित होता है।

1. तृतीय भाव पर सूर्य की दृष्‍टि बाहुबल व पराक्रम को बढ़ाती है। जातक को नेतृत्व का गुण देती है, जनता में लोकप्रिय बनाती है मगर बड़े भाई के सुख को कम करती है।

2. चंद्रमा की दृष्टि जातक को धार्मिक, शां‍त, शालीन प्रवृत्ति का बनाती है। जातक खूब प्रवास करते है, कन्या संतति की अधिकता हो‍ती है, बहनों से लाभ मिलता है और समाज में इन्हें अच्छे कार्यों के लिए पहचान भी मिलती है।

3. मंगल की तृ‍तीय भाव पर दृष्‍टि छोटे भाई के सुख को कम करती है। मंगल निर्बल होने पर जीजा व भाभी को भी हानि कराता है (नवम में हो तो)। मगर प्रबल मंगल भाग्य व पराक्रम की वृद्धि करता है।

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4. बुध की दृष्टि जातक को भाई-बहनों का पूर्ण सुख देती‍ है, जातक भाग्यवान होता है। देश-समाज के कार्यों में खूब रूचि लेत‍ा है और अच्छी संगति करता है। धार्मिक व व्यावसायिक यात्रा के अवसर मिलते है।

5. गुरु की दृष्टि भाई-बहनों की प्रचुरता व उनसे सुख को दर्शाती है। भाग्य का साथ मिलता है, प्रवास योग बनते है। व्यक्ति सदाचरण वाला होता है और समाज में मान्य रहता है।

6. शुक्र की दृष्‍टि होने पर भाई-बहन, साला-साली की बहुतता रहती है व उनसे प्रेम बना रहता है। धन के मामले में भाग्यशाली बनाती है। जल्दी भाग्योदय होता है, जातक व्यवहारकुशल होता है।

7. शनि की दृष्‍टि जातक को साहसी व पराक्रमी तो बनाती है मगर भाग्य हानि करती है, जीवन में बहुत संघर्ष होता है। भाई-बहनों से पटती नहीं है। गल‍‍त संगति से नुकसान भी होता है। प्रवास योग बाधित हो जाते हैं।

8. तृतीय भाव पर राहु की दृष्‍टि जातक को बलशाली, पराक्रमी व पुरुषार्थी बनाती है। मगर भाई-बहनों के स्वास्थ्य व भाग्य को हानि दर्शाती है।

9. तृतीय भाव पर केतु की दृष्‍टि जातक को पराक्रमी व जनमान्य बनाती है। शत्रुओं पर सदा विजय मिलती है, समाज कल्याण के कार्यों में रुचि व घुमक्कड़ प्रवृत्ति भी होती है। संतान के स्वास्थ्य को कष्‍ट हो सकता है।

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