लग्न में चंद्रमा यूँ तो शुभ माना जाता है। ऐसे जातक सुंदर, भावुक, सहृदय, कोमल व धनी होते हैं। इन्हें सामाजिक कार्यों में बहुत रुचि होती है और समाज में सम्मान भी मिलता है।
चंद्रमा के शुभ फलों की प्राप्ति हेतु चंद्रमा का शुभ होना जरूरी है। यदि चंद्रमा हीन बली हो, अस्त हो, कृष्ण पक्ष नवमी से शुक्ल पक्ष षष्ठी तक का हो तो व्यक्ति डरपोक व दुर्बल होता है।
अकेला चंद्रमा क्षीण हो, उस पर कोई शुभ दृष्टि न हो तो व्यक्ति रोगी होता है, खाँसी, जुकाम व वात रोग से पीड़ित होता है तथा धनाभाव भी बना रहता है। इन्हें जल से भय रहता है।
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मेष, वृषभ या कर्क राशि का बलवान चंद्रमा सुंदर शरीर देता है, मिथुन-कन्या का चंद्रमा वाचाल बनाता है, सिंह धनु का चंद्रमा अहंकारी, जनप्रिय व घूमने-फिरने का शौकीन बनाता है। तुला का चंद्र संतुलित व्यक्तित्व वाला, व वृश्चिक का चंद्र उत्साही, मकर का चंद्र निराशावादी व कुंभ का चंद्र दोहरे व्यक्तित्व का बनाता है।
लग्नस्थ चंद्रमा पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो, तो जातक बलवान, निरोगी, धनी व सुखी होता है। वहीं पाप ग्रहों की दृष्टि जातक को हीनता ग्रस्त, निराशावादी व दुखी बनाती है।