Dharma Sangrah

भचक्र किसे कहते हैं?

अनिरुद्ध जोशी
भचक्र क्या है? भचक्र को ही राशि चक्र कहते हैं। राशि या राशि चक्र को समझने के लिए नक्षत्रों को समझना आवश्यक है। क्योंकि राशियां नक्षत्रों से ही निर्मित होती है। राशियों का अपना कोई अस्तित्व नहीं। वैदिक ज्योतिष में राशि और राशिचक्र निर्धारण के लिए धरती के आकाश मंडल में 360 डिग्री के एक आभाषीय पथ का निर्धारण किया गया है।
 
इस आभाषीय पथ पर आने वाले तारा समूहों को 27 भागों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक तारा समूह एक नक्षत्र है। यानि की इस आभाषीय पथ से 27 नक्षत्र एक के बाद एक गुजरते जाते हैं। इस 27 नत्रों को भी सुविधानुसार 12 भागों में विभाजित कर दिया गया है। ये 12 भाग ही राशियां कहलाती हैं। यदि हम नक्षत्रों की 360 डिग्री में विभाजित करें तो प्रत्येक नक्षत्र 13 डिग्री और 20 मिनट का होता है और यदि हम 12 राशियों को 360 डिग्री में विभाजित करें तो प्रत्येक राशि 30 डिग्री की होती है।
 
वैदिक ज्योतिष में राशिचक्र को 360 डिग्री में बांटा गया है इस आधार पर प्रत्येक राशि 30 डिग्री की होती है। इस राशिचक्र को ही भचक्र कहते हैं। राशिचक्र में पहला नक्षत्र है अश्विनी नक्षत्र इसलिए इसे पहला तारा भी कहते हैं। इसके बाद है भरणी नक्षत्र, फिर कृतिका आदि कुल 27 नक्षत्र होते हैं। पहले दो नक्षत्र अश्विनी और भरणी से मेष राशि का निर्माण होता है। मतलब यह कि एक राशि ढाई नक्षत्र से बनती है।
 
प्रत्येक ग्रह-राशि का विस्तार 30 अंश निर्धारित किया गया है। इसी 360 अंश के क्रांतिवृत के दोनों और 9 9 अंश विस्तार की कुल 18 अंश की चौड़ी पट्टी है जिसे भचक्र कहते हैं। इस भचक्र पर सभी ग्रह और नक्षत्र बारी बारी से पूर्व में उदित होकर पश्चिम में अस्त होते हैं। 
 
27 नक्षत्रों के नाम: आश्विन, मघा, मूल, भरणी, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, कार्तिक, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, रोहिणी, हस्त, श्रवण, मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा, आर्द्रा, स्वाति, शतभिषा, पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वा भाद्रपद, पुष्य, अनुराधा, उत्तरा भाद्रपद, आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती।

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