* क्या कहते हैं आपके भाग्य के सितारे, जानिए...
हर इंसान की तमन्ना होती है कि वो भाग्यशाली बने। हर इंसान भाग्यशाली बन जाता तो कोई मजदूर नहीं होता। लेकिन कुछ लोग भाग्य साथ लेकर ही जन्म लेते हैं और कोई भाग्य का निर्माता स्वयं होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि वो स्वयं भाग्य अपने हाथों से संवारता है।
जन्म के समय ग्रहों की स्थिति से जाना जा सकता है कि वह भाग्यशाली होगा या अपने हाथों स्वयं भाग्य का निर्माण करेगा? उसके भाग्य में बाधा तो नहीं रहेगी आदि। जन्म लग्न से कैसे जानें कि वह बालक भाग्यशाली होगा या स्वयं भाग्य निर्माता? बाधा तो नहीं रहेगी आदि।
आइए जानें जन्म के समय ग्रहों की स्थिति स्वराशिस्थ या उच्च की हो या मित्रक्षैत्री होना चाहिए। कोई भी ग्रह अपनी राशि में स्वक्षैत्री होता है, जैसे मेष, वृश्चिक का मंगल, वृषभ, तुला का शुक्र, मिथुन, कन्या का बुध, कर्क का चन्द्र, सिंह का सूर्य, गुरु, धनु मीन का, शनि मकर, कुंभ का होता है। राहु, केतु छाया ग्रह होने से यहां उनको नहीं लिया गया है।
उच्चस्थ ग्रह जैसे मंगल मकर का, शुक्र मीन का, बुध कन्या का, चन्द्र वृषभ का, सूर्य मेष का, गुरु कर्क का, शनि तुला का होता है। यहां पर राहु केतु छाया ग्रह होने से नहीं लिए गए है।
उच्च या स्वग्रही ग्रह नवम होकर लग्न, पंचम, दशम, चतुर्थ भाव में होना चाहिए। इन पर अशुभ ग्रहों की युति जैसे शनि, मंगल का साथ होना कालसर्प योग के अधीनस्थ होना बाधक रहता है। कोई भी ग्रह षष्ट, अष्टम, द्वादश में नहीं होना चाहिए, नहीं तो शुभ परिणामों में कमी आ जाएगी, क्योंकि ये भाव बाधक माने गए हैं।
जब स्वराशिस्थ या उच्च ग्रहों की महादशा या अंतररदशा चलती है तो ग्रह स्थिति अनुसार लाभ अवश्य देते हैं। यदि इनसे संबंधित रत्न धारण करें तो शीघ्र लाभ मिलता है।