जानें क्या कहते हैं जन्मकुंडली के फल-कथन

- आचार्य संजय

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किसी भी इंसान के जीवन में क्या होगा, कब होगा या उसका जीवन कैसा बीतेगा इसका कथन व्यक्ति की जन्मकुंडली में होता है। जन्मकुंडली के फल-कथन के माध्यम से ज्योतिष मनुष्य के कर्म, गति और भाग्य के बारे में कई बातें बता सकते हैं। इसमें भाव तथा ग्रहों के विश्लेषण का बहुत महत्व होता है।

जिस भाव में जो राशि होती है उसी राशि के स्वामी ग्रह को उस भाव का भावेश कहते हैं।

तृतीय, षष्ठ, एकादश भावों के पापी ग्रहों का रहना शुभ माना जाता है।

षष्ठ, अष्टम एवं द्वादश भाव के स्वामी जिन भावों में रहते हैं, उसका वह अनिष्ट करते हैं यदि वह स्वग्रही अथवा उच्च न हो तो।


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अपने स्वामी ग्रह से देखा जाने वाला भाव बलवान व शुभ होता है। अष्टम व द्वादश भाव में सभी ग्रह अनिष्ट फलप्रद होते हैं, किंतु शुक्र द्वादश स्थान में बहुत प्रसन्न रहता है क्योंकि शुक्र एक भोगात्मक ग्रह है तथा द्वादश स्थान भोग स्थान है।

छठे भाव अथवा स्थान में भी शुक्र सम्पन्न रहता है, क्योंकि छठे स्थान से द्वादश स्थान पर शुक्र की सप्तम दृष्टि पड़ती है। अत: छठे स्थान में आया शुक्र धन के लिए शुभ होता है और भोग-विलास की वस्तुएं देता है।

ग्रह अपने भाव केन्द्रीय, त्रिकोण, पंचम, चतुर्थ, दशम हो तो शुभ होता है। किंतु ग्रह का मित्र राशि में अथवा स्वग्रही अथवा उच्च होना अथवा वक्री होना अनिवार्य है।

सूर्य व मंगल को दशम भाव में, बुध व बृहस्पति को लग्न में, शुक्र व चंद्रमा को चतुर्थ में और शनि को सप्तम भाव में दिग्बल की प्राप्ति होती है।

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