धनु लग्न एक आदर्श लग्न माना जाता है। यदि लग्न पर पापग्रहों का प्रभाव न हो तो ये व्यक्ति प्रेम, सद्भावना, करुणा, आशावाद, व्यावहारिक व उदारता से परिपूर्ण होते हैं। 'सज्जन' ऐसी इनकी पहचान होती है। समाज में मान मिलता है मगर आदर्शवादी होने से व्यावसायिक मोर्चे पर सफल नहीं होते। बेहद मेहनती, हिम्मती मगर सादा रहन-सहन, दिखावट से दूर होते हैं।
दूसरों पर जरूरत से ज्यादा विश्वास करते हैं जो नुकसानदायक हो जाता है। परंपराओं के पालन में, संस्कारों में विश्वास रखते हैं।
शुभ ग्रह : सूर्य नवमेश व मंगल पंचमेश होकर प्रबल कारक होते हैं। सूर्य की प्रबल स्थिति इसे अथाह प्रसिद्धि दिलाती है। इनकी दशा-महादशाएँ फलकारक होती हैं।
अशुभ ग्रह : बुध, शुक्र, शनि व चंद्रमा अशुभ होते हैं। विशेषकर शुक्र की व चंद्रमा की महादशाएँ कठिन फल देती हैं। इन ग्रहों के शांति के उपाय करते रहें।
तटस्थ : बृहस्पति दो केंद्रों का स्वामी होकर तटस्थ हो जाता है।
इष्ट देव : विष्णु के रूप रंग : पीला, नारंगी अंक : 5, 9 वार : रविवार, मंगलवार रत्न : मूँगा, माणिक
इस लग्न के व्यक्तियों को वृषभ व कर्क लग्न/राशि के व्यक्तियों से विवाह से बचना चाहिए। इस लग्न के व्यक्ति 32वें वर्ष बाद सफल हो पाते हैं।