मंगल दोष का निवार ण जिस जातक की कुंडली में मांगलिक दोष हो तो उस पर गहन विचार करना अत्यंत आवश्यक है। मांगलिक योग की तीन श्रेणियां हैं-
उग्र मांगलिक : यदि जातक की कुंडली में मंगल नीच राशि (कर्क अंश 28 तक) में हो तथा राहु अथवा केतु से युक्त या दृष्ट हो, तब वह योग उग्र मांगलिक योग कहलाता है।
यदि सामान्यत: लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में मंगल हो तो वह मांगलिक योग द्वितीय श्रेणी का कहा जाएगा।
सौम्य मांगलिक : यदि मंगल के साथ गुरु बैठा हो अथवा गुरु की सौम्य दृष्टि से मंगल दृष्ट हो, तब यह योग 'सौम्य मांगलिक' कहलाता है। केवल उग्र मांगलिक ही दाम्पत्य जीवन में बाधक होता है जिसका निवारण जातक द्वारा किए जाने वाले सत्कर्म द्वारा होता है।
नारद संहिता में तो कन्या की कुंडली के अष्टम भवन में मांगल्यपूर्ण स्थान (काम सेक्स का भाव) कहा गया है।
इस भवन में शुभ ग्रह गुरु, शुक्र, पूर्ण चंद्रमा, शुभ बुध का प्रभाव रहने पर स्त्री को पूर्ण सौभाग्य सुख प्राप्त होता है, बेशक मांगलिक दोष क्यों न हो? क्योंकि पति का कारक ग्रह गुरु है तथा पति के सुख का स्थान नवम है तथा पति की आयु का स्थान द्वितीय भाव है, अत: इनकी बलवान शुभ स्थिति रहने पर मंगल दोष का निवारण स्वयमेव ही हो जाएगा।
यदि लग्न, चन्द्रमा एवं गुरु तीनों समराशि (2, 4, 6, 8, 10, 12) में होंगे तो कन्या को 'ब्रह्मवादिनी योग' बनेगा।
इस योग के प्रभाव से सौम्य स्वभाव सभी उत्तम गुणों से संपन्न और सुखी रहेगा, तब कुजदोष अर्थात मांगलिक दोष का क्या अशुभ प्रभाव पड़ेगा? यदि कन्या की जन्म कुंडली में गुरु लग्न, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम या दशम में हो, तब मांगलिक दोष का कोई अशुभ प्रभाव नहीं होता।