खरपतवार... अधूरी कहानी

जीवन के रंगमंच से...

शैफाली शर्मा
ND
‘अधूरी कहानी में कोई नायक नहीं होत ा, न कोई नायिक ा, इसमें सिर्फ संवाद होते है ं, जो अकसर उन दो लोगों के बीच होते है ं, जिनको न कल्पनाओं का पूरा आसमान मिल पाता है, न सच की धरातल पर खड़े होने की जगह। कुछ रिश्ते बस यूँ ही इन दो धूरियों के बीच अपन ा अस्तित्व तलाशते हुए नज़र आते हैं। खुद ही रूठ जाते है ं और खुद ही मान भी जाते हैं । वे अपने जीवन के किस्सों के खुद रचयिता होते हैं। वे खुद ही कठपुतलियाँ है ं और खु द ही डोर संभाले हुए भी। वे इन किस्सों को जो रूप देना चाहें, दे देते हैं... ’

‘तुम्हारी कहानी पढ़ ी, तुम तो ऐसा नहीं लिखती थी... मेरा मतलब है तुम्हार ी कहानियों में तुम्हारा दर्द दिखाई देता है...ये बहुत ऑप्टिमिस्टिक लगी ।’

‘कब त क ज़िंदगी से शिकायत करती रहत ी?’

‘ ‘जब मौन पिघल जाता ह ै ’ विचा र अच्छे लगे इसमे ं, हर इंसान को ऐसी सोच रखना चाहिए ।’

‘हाँ, अपने पुराने ग़म क ो भुलाकर नई खुशियाँ ढूँढ ही लेता है इंसान ।’

‘अच्छा है ढूँढने से तो भगवान भी मि ल जाते है ं, ये तो सिर्फ खुशियाँ हैं ।’

‘हाँ हम अकसर उन चीजों को ढूँढने निकल पड़त े है ं, जिनको आज तक किसी ने नहीं देखा। तुमने भगवान को देखा ह ै? ’
  ‘अधूरी कहानी में कोई नायक नहीं होता, न कोई नायिका, इसमें सिर्फ संवाद होते हैं, जो अकसर उन दो लोगों के बीच होते हैं, जिनको न कल्पनाओं का पूरा आसमान मिल पाता है, न सच की धरातल पर खड़े होने की जगह।      


‘नही ं’

‘खुशियों क ो? ’

‘मिल जाएग ी’

‘कुछ नहीं मिलत ा, सब लिखने-पढ़ने की बाते ं है ं, मैं लिखकर खुश हो जाती हू ँ, लोग पढ़क र, चीजें वहीं की वहीं रहती ह ै, समय आग े बढ़ता है और नए लोग मिलते जाते है ं, पुराने छूटते जाते हैं ।’

‘अच्छा है न ा, परिवर्तन ही तो जीवन है ।’

‘हा ँ, यदि आप परिवर्तन से खुश हो त ो और फिर जो पुरान ा छूट जाता है उसका ग़म भी ज़िंदगीभर संभालो...खै र, फिर ज़िंदगी से शिकायत नही ं करूँगी ।’

‘सच ह ै, आगे बढ़ो और खुश रहो ।’

‘तुमने बहुत कुछ दिय ा, कैसे शुक्रिय ा कहूँ ।’

‘कुछ भी तो नहीं दे पाया मै ं, ज़िंदगी से शिकायतों के अलावा ।’

‘क्यो ं नही ं, जीवन में जब भी तुम्हारी सबसे ज्यादा ज़रूरत महसूस हु ई, तुम नहीं थे... अकेल े भी जिया जा सकता ह ै, ये सिखाने के लिए ।’

‘मैं वहीं था जहाँ होना चाहिए था ।’

‘हमेशा वहीं रहो यही दुआ करूँग ी, लेकिन मुझे जहाँ जाना है वहाँ तो जाना ह ी पड़ेग ा, अब कोई नहीं रोक सकता मुझ े, मैं खुद भी नहीं ।’

‘मैंने कभी नहीं रोक ा, तु म अपना अच्छा-बुरा खुद समझती हो ।’

‘समझती होती तो इतने साल तुम्हारा इंतज़ार नहीं करती, ये जानते हुए कि तुम कभी नहीं आओगे । ’

‘मैंने ऐसा कभी नहीं कहा ।’

‘हा ँ, तुमने कभी कुछ नहीं कहा और मुझसे उम्मीद करते रहे कि मैं वे बातें भी सम झ जाऊ ँ, जो तुम दुनिया के डर से नहीं कह सके ।’

‘हर बात कहना ज़रूरी ह ै?’

‘हा ँ, कम से कम उस समय जब आपकी बात न समझ पाने के कारण कोई आपको छोड़कर जा रहा हो ।’

‘तु म जानती हो तुम नहीं जा पाओग ी, फिर क्यों हर बार ये कोशिश करती ह ो?’

‘नही ं, ये ह र बार का फ्रस्ट्रेशन नहीं ह ै, जो मैं तुम पर निकालती थी और कुछ दिन की दूरियों क े बाद तुम्हारी एक नज़र की डोर को पकड़कर खींची चली आती थी ।’

‘इस बार भी इस े फ्रस्ट्रेशन समझकर मुझ पर निकाल दो ।’

‘नही ं, इस बार ये फ्रस्ट्रेशन मैंने किसी औ र पर निकाल दिया है ।’

‘मतल ब?’

‘हर बात कहना ज़रूरी ह ै?’

इसके आगे वह कुछ नहीं कह पाय ा, मैं जानती थी वह कभी नहीं कह पाएग ा, मेरे लिए यह दर् द असहनीय हो चुका थ ा, एक अजनबी रिश्ते को बरसों तक घर में पनाह देती रही सोचकर कि ए क दिन उस अजनबी रिश्ते में अपनेपन का स्पर्श पा सकूँगी। हर बार झूठा गुस्सा दिखाक र सचमुच का प्यार दिख जाता था, लेकिन आज एक झूठ बोलकर मैंने अपना आखिरी फ्रस्ट्रेश न निकाल दिय ा, एक ऐसा झूठ जो कभी सच नहीं हो सकता।

यह बात जानते हुए भी वह कभी लौटक र नहीं आया...!

ये अधूरी कहानी थी अमृता और सागर के बीच जो पूरी हुई चंद सालों बाद जब सागर एक बार फिर लौटकर आया... ।

‘सीने में उठते सारे ग़ुबार बर्फ से जम चुके है ं, आँसू सिर्फ आँखों को ध ो रहे है ं, दिल के बादल अब भी नहीं बरसे हैं। अपना रिश्ता बंजर भूमि पर खरपतवार-सा उ ग आया है। तुम कितना ही इश्क का पानी देते रह ो, खरपतवार पर सुगंधित फूल नहीं उगते। ब स उम्र को यूँ ही बालों की सफेदी पर बढ़ता देख रही हूँ और समय के एक-एक पल को चेहरे क ी झुर्रियों में पिरो रही हूँ। हुस्न का दीया बुझने तक ही प्रेम के मंदिर का पट खुल ा रहेगा फिर... फिर वही बच्चों का करियर और रिटायरमेंट के बाद की पेंश न, बस ज़िंदग ी इसी में सिमटकर रह जाएगी ।’

अमृता की इन बातों में एक अजीब-सा खालीपन थ ा, जो सागर क ी आँखों से गुजर रहा था। वह तो यह सोचकर लौटा था कि शायद अब वह अमृता को वह सबकुछ द े सकेगा जिसकी उसे तलाश थ ी, लेकिन अमृता को बिना कुछ कहे चले जाना और फिर इतन े बरसों बाद उसी उम्मीद में लौटना कि शायद वक़्त शहर की उन पुरानी गलियों में ही ठह र गया होग ा, सागर का अनुमान गलत था। सागर के लौट आने तक वक़्त ढाई घर चल चुका था। जीव न के शतरंज पर किस्मत ने श य, मात दोनों दे दी थी। सागर समझ नहीं पा रहा था कि वह खु द को संभाले या अमृता को। वह उम्मीद करता रहा कि काश बंजर भूमि पर इश्क का मेह फि र कोई नए रिश्ते का फूल खिला सके ।

‘मैंने कब तुमसे तुम्हारे देह की सुगं ध को पाना चाह ा? मैं तो अब भी कहता हूँ कि एक छत के नीचे अलग-अलग कमरों में दो दुनिय ा बसा लेंगे। तुम चाहो तो मेरी दुनिया में मत आन ा, बस मुझे तुम्हारी दुनिया मे ं आने-जाने की इजाज़त दे दो ।


‘अब भी आज़ाद रहना चाहते ह ो?’

‘नहीं तु म गलत समझ रही हो। बस तुम्हारे साथ उम्र के कुछ पल बाँटना चाहता हू ँ ताकि... ’

‘ताकि मन में कोई ग्लानि न रहे कि तुम मुझे ऐसे वक़् त छोड़कर चले गए थ े, जब मुझे तुम्हारी सबसे ज्यादा ज़रूरत थी ।’

‘नहीं मजबूर ी थी...गया कुछ दिनों के लिए ही थ ा, लेकिन नहीं जानता था कि किस्मत ने कोई जा ल बिछाकर रखा था।.... लेकिन तुमने पति का घर क्यों छोड़ दिया और क ब?’

‘अपन ा जूठा शरीर कब तक परोसती रहती उन्हें...एक न एक दिन तो यह होना ह ी था ।’

‘अमृता... मैं क्या माफी के लायक भी नही ं?’

‘मैंने तो तुम्हें उस ी दिन माफ कर दिया थ ा, जिस दिन तुम लौट गए थे ।’

‘मैं परिवार की जिम्मेदार ी में फँस गया था ।’

‘अब मैंने अपने परिवार की जिम्मेदारी उठा ली है ।’

‘ह म दोनों साथ नहीं उठा सकत े?’

‘नही ं, अब बच्चे बड़े हो चुके हैं। उन्हें समझान ा नामुमकिन है ।’

‘मैं बहुत अकेला हूँ... ’

‘लेकिन मैं नही ं, मेरे साथ सबकु छ ह ै, परिवा र, बच्च े, उनका करियर और तुम्हारी यादें...लौट जाओ अब मुझे यादों मे ं जीने की आदत हो चुकी है ।’

सागर लौट गया। अमृता ने घर ठीक-ठाक किय ा, बच्चों क े लिए खाना बनाया। और अपने घर के आँगन में उग आई खरपतवार को साफ करने लगी।
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