खाली रातें

जीवन के रंगमंच से

शैफाली शर्मा
SubratoND

रात तेरी याद का चाँद खिला
चाँदनी को आँगन में फैला आई हू ँ
जैसे तन के जंगलों से गुजरकर
मन के घर रहने आई हू ँ

ढूँढने निकली थी जंगलों मे ं
दास्तां के दरख्त को
जब लबों से लगाया तो लगा
खामोशी के पेड़ से
कोई हर्फ तोड लाई हू ँ

इंतजार के बादलों का रूख बदल दिया,
विरहा के सिंधु को खाली कर दिय ा
लेकिन तेरी सूखी आँखों में
मैं आँसू बनकर छलक आई हू ँ


क्षितिज में डूबते सूरज को
किस्मत के बुझते दिये में उडेल दिया ह ै
जैसे तू खाली सी जगह हो गया
जिसमें मैं भर आई हूँ।

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