खोने न देना आनंदघर का मैजिक बॉक्स

जीवन के रंगमंच से...

निर्मला भुरा‍ड़‍िया
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भारतीय रसोई रस और रसायनों से भरपूर है। जी हां रसायन, आप भारत के किसी रसोईघर में प्रवेश कीजिए तो आपको वह किसी लैबोरेटरी से कम नहीं लगेगा। तरह-तरह की बरनियों, डिब्बों और मर्तबान से सजा हुआ। भारतीय गृहिणियां मसालों की मास्टर होती हैं। मसालों को घुमा-फिराकर, उनकी मात्रा में परिवर्तन कर वे अपनी प्रयोगशाला में नित नए व्यंजन बनाती रहती हैं। लेकिन भारतीय रसोईघर सिर्फ स्वाद का कारखाना ही नहीं है, यह औषधि भंडार भी है।

भारतीय रसोई में प्रयुक्त होने वाले मसाले सिर्फ स्वाद, रूप और गंध बढ़ाने के काम में ही नहीं आते इनमें भरपूर औषधीय गुण भी हैं। हाल ही में प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका न्यूज वीक ने मस्तिष्क की क्षमता बढ़ाने वाले उपायों संबंधी एक आलेख प्रकाशित किया है, उसमें यह कहा गया है कि भारतीय रसोई के एक आम मसाले हल्दी के उपयोग से डिमेंशिया यानी याददाश्त खोने की बीमारी होने के आसार कम हो जाते हैं।

हल्दी, मिर्ची, हींग, धना, सौंफ, जीरा, राई, कालीमिर्च, अमचूर, कोकम, इमली, तेजपान, जायफल, जावित्री, लौंग, अजवाइन, मैथीदाना, इलायची, कपूर, खसखस... यह लिस्ट अनंत है और इनमें से हर एक के गुण भी खूब। मसालों की सूची और उनके गुणों से ही पूरा पृष्ठ भर सकता है। हमारे लिए हर मसाला स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

रस, स्वाद और सुगंध की दृष्टि से भी देखा जाए तो भारतीय मसाले अद्भुत और अनुपम हैं। इन्हीं की खोज में कोलम्बस ने अमेरिका ढूंढ निकाला था। रसवर्धन का एक छोटा-सा उदाहरण ही लें। जैसे होता है जायफल यानी नटमेग। पानी में घिसे हुए जायफल की दो बूंद ही व्यंजन को भूखवर्धक खुशबू प्रदान कर देती है और इसे स्पेशल बनाती है। जायफल की एक खास बात यह है कि यह मंद सा सुरूर देता है। इसके स्वाद और गंध से हल्की सी खुशी दिमाग में तैर जाती है।

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नए अनुसंधान कहते हैं कि इलायची अवसादरोधी है। अदरक मांसपेशियों की थकान दूर करता है। आयुर्वेदिक ग्रंथ भावप्रकाश निघंटु के अनुसार अजवाइन पाचक, वायुशामक व कृमिनाशक है। इस तरह कई मसालों और सहायक खाद्य पदार्थों में महक, रसवर्धन एवं आरोग्य के गुण हैं। वे सिर्फ स्वाद ही नहीं बढ़ाते क्षुधावर्धक, ऊर्जावर्धक, पुष्टिवर्धक भी हैं। नई भाषा में कहें तो शरीर का मेटाबोलिज्म ठीक बनाए रखने में भी मददगार हैं। सही समझ से ग्रहण किए जाएं तो ये वात-पित्त का संतुलन भी बनाए रखते हैं यानी भोजन के सहायक पदार्थों की अम्लीय और क्षारीय क्षमता समझकर ग्रहण करने से हमारे सिस्टम का पीएच बैलेंस ठीक रहता है।

मगर बदलते समय ने भारतीय रसोईघर की इन विशेषताओं को छीना है। मसालदान अब गृहिणी का मेजिक बॉक्स नहीं रहा, कूटे-पिटे रेडीमेड पावडर भरने का कटोरदान बनकर रह गया है। अब गृहिणियां कोकम, अमचूर, इमली जैसी खटाइयां रसोईघर में रखना जरूरी नहीं समझतीं जोकि हमारी दादी मांओं के मसालदान में आवश्यक रूप से रहती थीं।

आज जायफल, जावित्री का तो कइयों ने नाम भी नहीं सुना होगा। विदेशपलट नई पीढ़ी के खाने वालों को हींग में महक नहीं, बदबू आती है। वे लोग मां को खाने में हींग डालने के लिए मना करते हैं। पश्चिम का या भारतीय महानगरों का ब्लैंड भोजन ग्रहण करने के आदी आधुनिकजन मिर्च से डरते हैं।

जबकि नए अनुसंधान बताते हैं कि हल्की-सी मिर्च सायनस का उपचार करती है। भारतीय रसोई में अब ताजा पिसे मसालों का उपयोग भी कम हो गया है। ताजा हरा धनिया बहुत महंगा है। अदरक, मिर्ची, धनिया, पुदीना, लहसुन बांटकर मसाला तैयार करने का न रिवाज रहा, न रसोई में अब सिलबट्टा है। खरड़, खलबत्ता, मथनी जैसे उपकरण भी गायब हैं।

इनमें से कुछ का काम कुछ हद तक मिक्सर कर देता है। मगर इनकी कमी से कुछ अच्छे मसालों का और स्वाद और स्वास्थ्यवर्धक व्यंजनों का रसोई से निर्वासन हो गया है। मसालों के नाम पर गृहिणियों के पिटारे में आज सूखा धना, पिसी-पिसाई हल्दी-मिर्ची पावडर और राई रह गए हैं। उनमें भी मिलावट की शिकायतें आम हैं। यह सब रोजमर्रा के भारतीय भोजन को बेरंग और बेस्वाद बना रहा है। मिलावटी चीजों में स्वास्थ्य का तो सवाल ही कहां? कहीं भारत का रसोईघर बनाम आनंदघर बीते जमाने की बात न होकर रह जाए।

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