मेरी आवाज सुनो : इंदौर

इंदौर की अपील, इंदौरवासियों से

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मैं हूँ शहर इंदौर जिसे शिनाख्त देती है मेरी वह आबोहवा जिसमें भजन, अजान, शबद और नवकार मंत्र एक साथ महकते हैं। मेरे रहवासी, मेरे प्यारे-प्यारे बाशिंदे, मेरे बच्चे मेरी पहचान को मुकम्मिल करते हैं। रमजान और देवी आराधना पर्व के दौरान होने वाले रतजगे मुझे इत्मीनान देते हैं कि मेरे बच्चे कितनी पवित्र भावना से नेक काम में लगे हैं।

मैंने बड़े भरोसे और एहतेराम से इस शहर की जिम्मेदारी उन लोगों को सौंप रखी है जो अग्रवाल, जैन, कुलकर्णी, खान, रामनानी, त्रिवेदी, माहेश्वरी, अंसारी, सलूजा या ईरानी होने से पहले इंदौरी होने में फख्र महसूस करते हैं। मेरे बच्चों का असली गौत्र, घराना और खानदान इंदौरी है। मैत्रेयी पद्मनाभन वहीद्दुद्दीन डागर से ध्रुपद सीखती थी और बाबू ख़ाँ बीनकार गोर्वधननाथ मंदिर श्रीनाथजी के पदों पर संगति करते थे।

तबला नवाज सुलेमान खाँ भूतेश्वर महादेव पर जाकर ब्रह्मानंद का भजन सुनाते और उस्ताद अमीर खाँ साहब शनि मंदिर में जाकर मेरूखंड तानों का सुरीला शामियाना तानते। ये तो थे गुजरे जमाने के कलाकार लेकिन अब मेरी नई पौध के जलवे भी शहर-शहर और डगर-डगर दमकते हैं। पूरे देश के विकास में मैं कभी कैट, आईआईएम या आईआईटी का परचम उठाकर बता देता हूँ कि मुझे कमजोर मत आँकना। इंजीनियरिंग मैनेजमेंट और मेडिकल की शानदार तालीम का बड़ा पता हूँ मैं।

थपेड़े तो मेरे बच्चों की जिंदगी में आते ही रहते हैं लेकिन वे हैं कि हर दौर में उबरकर एक नई सुबह का आगाज करते हैं। रचते हैं एक ऐसी नई दुनिया जिसकी चर्चा करते गौरव से माथा ऊँचा हो जाता है। मुझे अभी बहुत आगे जाना है। मैं अब एक नया शहर बनने की तैयारी में हूँ। मेरे बच्चे जागरूक नागरिक हैं, इन्हें मेरी परवाह वैसे ही है जैसे वे अपने माता-पिता और घर के दीगर बुजुर्गों की करते हैं। मेरा बच्चा बशीर किसी मासूम मनसुख को रोता नहीं देख सकता।

जनक जीजी किसी फातिमा को अलिफ-बे की तालीम दे सकती हैं। सिस्टर नरोन्हा, जसमीत कौर की जचकी निर्विघ्न करवा सकती हैं। ये हूँ मैं। मेरे बहादुर खाँ घोड़ेवाले की घोड़ी से सेठ सुजानमल का बेटा बारात लेकर तोरण मार आता है और सरताज भाई की सेहराबंदी के बाद मास्टर कामले का राजकमल बैंड सुरीली धुनों का जादू जगाता है। राहत इंदौरी का गीत कल्पना झोकरकर गाती हैं और रमेश मेहबूब की गजल बुंदू खाँ की खरजभरी आवाज में लुभाती है। ये है मेरी पहचान।

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सनद रहे! मेरे बाशिंदे ये याद नहीं रखते कि कितनी बार इंदौर में कर्फ्यू लगा था या कब पथराव हुआ था... वे तो ये याद रखते हैं शालिनी ताई ने कितने बच्चों को प़ढ़ाया है या किस तरह मेरे बाशिंदों ने नर्मदा को इंदौर लाने के लिए स़ड़कों पर मोर्चा लगाया या यूनियन कार्बाइड के कचरे को मुझसे दूर करने के लिए कैसे उन्होंने आंदोलन चलाया था या होमीदाजी ने मजदूरों के हक के लिए कैसा अलख जगाया था। दौलतगंज एकता पंचायत पर कैसे हिन्दू-मुस्लिम गले मिले थे या गुरुजी गोलवलकरजी ने पं. रामनारायण शास्त्री से इंदौर में इलाज करवाया था।

हुकुमचंदजी ने अपनी कोठी में गाँधीजी को भोजन पर आमंत्रित किया था और बाबूभाई महिदपुरवाला ईद पर हर साल अपने हिन्दू दोस्तों को किस खुलूस से सिवैयों का स्वाद चखाते हैं। याद है न कैसे बाबा आमटे भारत जोड़ो यात्रा लेकर आए थे और मदर टेरेसा ने भी शहर की धरती पर कदम रखा था। किन-किन मुशायरों में नूर इंदौरी की गजलों ने देश के कौन-कौनसे शहरों में रंग जमाया था और कौन-सी मिल में नीरज और माया गोविंद ने कविता का जादू रचाया था।

बस कभी-कभी कलेजा किसी अज्ञात भय से काँप उठता है। किसी अनहोनी में जब मेरे ही बाशिंदे, बच्चे सड़कों से गुम हो जाते हैं और घर में कैद हो जाते हैं तो मेरा दिल जार-जार रोने लगता है। मैं अपने बच्चों से यही कहना चाहता हूँ कि मेरी पहचान की रंगीन तस्वीर प्रभु जोशी और मिर्जा इस्माइल बेग दोनों के हाथ से नुमायाँ हुई है। इस पहचान पर कालिख मत लगने देना... थोड़ा धीरज धरोगे तो हर सुबह अमन का सूरज निकलेगा। हम सब एक हैं, एक रहेंगे... तुम संभल गए तो तुम्हारी नस्लें सँवर जाएँगी... फैसला तुम्हें करना है। मैं तुम्हारा अपना हूँ या बेगाना... ये तुम्हें बताना है। तुम अमनपसंद नागरिक हो ये तुम्हें जताना है...

तुम्हारा अपना
शहर इंदौर

( बकलम : संजय पटेल)


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