दागी-दागी भाई-भाई

व्यंग्य

Webdunia
शरद उपाध्याय
इन दिनों मैं बहुत परेशान हूँ। क्या करूँ। जहाँ देखता हूँ, जिसके दामन पर नजर डालता हूँ, दाग ही दाग नजर आते हैं । ऊपर से नीचे तक आदमी के दामन पर दाग ही दाग। नाना प्रकार के दाग। काले-पीले, इतने गहरे की उनका मूल रंग ही गायब नजर आने लगे हैं। मुझे वाकई बहुत बुरा लगता है। सही भी है, जब मैं अपने को देखता हूँ तो सफेद झक पाता हूँ।

कहीं से हलका भी निशान नजर नहीं आता है। कभी भी सफेद रंग हलका नहीं पड़ता है पर जब दूसरे के दाग देखता हूँ तो वितृष्णा सी होने लगती है। आश्चर्य की बात है यह बात जब मैंने एक दागी के सामने कही तो वह हँसने लगा। 'भई दाग तो मुझे सिर्फ आपके ही दामन पर दिख रहे हैं। कितने गहरे दाग हैं। कितने काले, इन्हें देखकर काला रंग भी शर्मा जाए।'

मैं चौंक गया। मुझे तो अपने दामन पर सफेदी के अलावा कुछ और नजर आती थी। मैं लाख मना करता रहा पर वह ढूँढ़-ढूँकर सब बताता रहा। ये घोटाले के तीन दाग, ये कत्ल के दो दाग, चार मारपीट के और बेईमानी के तो गिनना ही मुश्किल है..'

मैंने उसे रोका। वह सही कह रहा था। और दाग दिख गए तो फिर मुश्किल हो जाएगा। अब मैंने उसकी ओर देखा। वह भी दागों से भरा हुआ था। मैंने उनकी ओर इशारा किया तो शर्मा गया।

दागों का मनोविज्ञान यही है कि अपना दामन साफ और दूसरों का सदैव काला ही दिखता है। अब लोग भी क्या करें। राजनीति की कीचड़ भरी राह से निकलेंगे तो दाग तो लगेंगे ही। कीचड़ भी ऐसा है कि हलका सा पत्थर फेंका नहीं कि झट से उछल जाता है। फिर परेशानी यह है कि यहाँ दिखना बिल्कुल सफेद पड़ता है। कितना भी कीचड़ दामन पर लग जाए, उसे नजरअंदाज करना पड़ता है।

आँखों को सदैव दूसरों के दामन पर टिकाए रखना पड़ता है। खुद ही पत्थर फेंकों और लगे हाथ दाग का हल्ला मचा दो। दाग महत्वपूर्ण नहीं है, हल्ला अधिक महत्वपूर्ण है। जितना हल्ला प्रभावशाली होता है, स्वयं उतने ही सफेदपोश दिखते हैं।

अब तो इसी उठा-पटक से यह हाल हो गया है कि बस सब एक-दूसरे के दाग ढूँढते फिर रहे हैं। दागी सभी हैं पर अब लड़ाई इस बात की है कि कोई कम दागी है तो कोई अधिक दागी है। जो खुद को कम दागी समझता है, वह दूसरे को अधिक दागी बताकर ही ईमान की लड़ाई जीतना चाहता है। जो कम दागी है वह अधिक दाग वाले प्रभावशाली व्यक्तित्व से जलन लिए हुए हैं। इतने बड़े-बड़े घोटाले के दाग देखकर वह अपने कम घोटालों वाले दागों पर शर्मा रहा है। कुछ लोग हैं जो दागी तो हैं पर खूबसूरती से उन्हें बनियान के भीतर छिपाए हुए हैं। लोग देखते हैं तो बस सफेद ही सफेद ही नजर आता है ।

बस अब क्या करूँ। दूसरों को दाग दिख गए तो परेशान हूँ पर कहाँ तक चिंता करूँ। पूरा कुनबा ही दागी है। सबके दामन की चड ़ से लथपथ है। सो, चिंता की कोई बात नहीं। अंतत: यही सोचकर रह जाता हूँ कि दागी-दागी भाई-भाई। हम सब एक हैं।

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