मोबाइलदेव महात्म्य कथा

व्यंग्य

Webdunia
रमेशचन्द्र शर्म ा
ND
आवश्यक सामग्र ी
एक या एक से अधिक मोबाइल, संख्या-नुसार पुष्पहार, श्रीफल, कुंकू, चावल, अबीर, गुलाल एवं हल्दी, सुगंधित अगरबत्तियाँ, लाल रंग के वस्त्र मोबाइलदेव की संख्या-नुसार, प्रसाद स्वरूप मावे की मिठाई एवं पंचामृत, झाँझ, मंजीरे, शंख आदि।

दिन एवं सम य
पंचक के दिन छोड़कर सारे दिन मोबाइलदेव की आराधना हेतु मान्य। चौघड़िया अनुसार अमृत, शुभ, लाभ एवं चर की कालावधि में मोबाइलदेव की कथा विद्वजनों के मतानुसार मान्य।

स्थापना विध ि
किसी भी शुभ घड़ी में आम वृक्ष की लकड़ी से निर्मित पाटले पर सर्वप्रथम मोबाइलदेव को स्थापित करें। तत्पश्चात उन्हें लाल वस्त्र ओढ़ाएँ। फिर सम्मानपूर्वक आमंत्रित पंडितजी उनके अबीर, गुलाल, कुंकू, अक्षत से तिलकादि करें। मोबाइलदेव के ठीक सामने श्रीफल स्थापित कर उस पर भी उक्त सामग्री का छिड़काव करें। तत्पश्चात पंडितजी शुद्ध घी का दीप प्रज्वलित करें।

कथा मोबाइलदेव क ी
आर्यावर्त के मध्य प्रांत के एक नगर में अंधक एवं अंधकी नामक पति-पत्नी रहते थे। उनके साथ अंधक के माता-पिता भी रहते थे। अंधक-अंधकी के संतान रूप में एक पुत्र एवं पुत्री भी थे। अंधक एवं अंधकी ने अकारण ही यह महसूस किया कि उनके पास भी मोबाइल होना चाहिए। जब यह बात उनके पुत्र-पुत्री को ज्ञात हुई तो वे भी मूल्य सूचकांक की तरह प्रसन्नता से उछलने लगे, मगर माता-पिता को यह निर्णय अपव्यय प्रतीत हुआ, जिसकी परवाह अंधक ने नहीं कर योग्य पुत्र होने का प्रमाण दिया।

दोनों ने मोबाइल क्रय करने के पूर्व अपने उन परिचितों से, जो कि मोबाइलधारी थे, विभिन्न मोबाइलों के बारे में जानकारियाँ लीं। शुभ घड़ी में पति-पत्नी ने मोबाइल शो-रूम से अति सुंदर मोबाइल खरीदा। विक्रेता ने उन्हें नाना प्रकार की सिमों के गुणों और उनसे होने वाले लाभों की जानकारियाँ दीं। इससे प्रभावित होकर उन्होंने एक सिम भी ले ली।

भक्तों, अंधक एवं अंधकी ने जब पहली बार मोबाइल की घंटी सुनी तो दोनों खुशी के मारे उछल पड़े। चूँकि मोबाइल में कैमरा भी था, अतः उन्होंने एक-दूसरे की, बच्चों की और डोकरे-डोकरी की भी तस्वीरें लीं। मोबाइल में अंधकी के पसंदीदा गीत लोड थे। अतः वह खाना बनाते, कपड़े धोते, नहाते समय तो सुनती ही थी। बालकनी में बैठकर भी सुनती थी, ताकि पड़ोसियों को ज्ञात हो कि अंधकी के पास भी गीतों भरा मोबाइल है।

मोबाइलदेव के चमत्का र
भक्तों, कर्णशूल तो अंधकी को पहले भी कई बार हो चुका था, मगर इस बार जब उसे कर्ण पीड़ा हुई तो उसने मान लिया कि मोबाइल सामान्य श्रवण यंत्र नहीं अपितु कोई देवता है, जिनकी अप्रसन्नता से उसे कर्ण पीड़ा हुई। संयोग की बात है कि अंधक जब उदर प्रांत पर मोबाइल रखे गीत सुन रहे थे, तब उन्हें पेट में उत्पात प्रतीत हुआ। वे भी इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि मोबाइलदेव रुष्ट हैं।

श्रद्धालुओं, दोनों पति-पत्नी ने उसी वक्त मोबाइल को साष्टांग प्रणाम किया और ग्यारह शनिवार कर व्रत का उद्यापन किया। इसके बाद मोबाइलदेव उन पर प्रसन्ना हुए और उनके दिन प्रसन्नतापूर्वक व्यतीत होने लगे।

ॐ मोबाइल देवाय नमः। मोबाइलदेव सदा सहाय। सब बोलो चमत्कारी मोबाइलदेव की जय ।

विशिष्ट निर्दे श
जो भी सज्जन मोबाइलदेव के नियमित ग्यारह शनिवार का व्रत रख, अंतिम शनिवार को उद्यापन कराएगा, मोबाइलदेव की कृपा उसके परिवार पर बनी रहेगी। जो व्यक्ति तर्क-कुतर्क कर अथवा नास्तिकताग्रस्त होकर मोबाइलदेव के प्रति अनास्था प्रकट करेगा, उसका सर्वनाश हो जाएगा। बोलो मोबाइलदेव की जय!

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