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तेरा भारत, मेरे भारत से महान कैसे?

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डॉ. आशीष जैन

शनै:-शनै: - 15
 
जब माताश्री के नारे ‘गरीबी हटाओ’ से गरीबी हट गई तब सुपुत्रश्री ने राजनीति में आते ही घोषणा कर दी - ‘मेरा भारत महान'। चूंकि उस समय प्रशंसकों एवं अनुयायियों को भक्त की संज्ञा से सम्मानित नही किया जाता था, अत: प्रजा ने सहज ही स्वीकार कर लिया कि उनका भारत महान है। हमने दीवारें रंग दी, ट्रक और ट्रैक्टर के पीछे लिखवा दिया, यहां तक कि टी शर्ट पर भी चितर दिया। और फिर दूरदर्शन पर क्रिकेट खिलाड़ी और धावक हाथ में मशाल लिए हुए दौडते दिखाई देते, विज्ञापन के अंत में केसरिया एवं हरी पट्टिकाएं इठलाती हुई अपनी ही धुरी पर घूमते हुए अशोक चक्र के इर्द-गिर्द बल खातीं तिरंगे की प्रतिकृति बनाती और अंत में जय हे जय हे की धुन पर जब लिखा हुआ आता, तो इस बात में लेश मात्र भी संदेह नही रह जाता कि मेरा भारत महान है। लगभग आधा दशक, सात आम चुनाव और नौ प्रधान मंत्रियों के बाद फ़ेसबुक, व्हाट्सएप तथा ट्विटर के अथक प्रयासों से अब जाकर जनता को यह ज्ञात हुआ कि राजनीति में भविष्यन्मुखी सकारात्मक शब्दों के संग्रह को ही जुमले कहते हैं और वे वास्तविकता से कोसों दूर होते हैं। तभी से उन्होने अच्छे दिन की प्रतीक्षा करना त्याग दिया। नारों के उद्देश्य एवं विश्वनीयता पर संदेह हो सकता है, परंतु इस बारे में कोई दो मत नही मेरा भारत महान है, था और रहेगा। और यह बात देश का प्रत्येक नागरिक स्वीकार भी करता है, विवाद तो ‘मेरा भारत’ की परिभाषा को लेकर है।
 
भारत विविधताओं का देश है। अत: यहां विवादों में भी विविधता है। कोस कोस पर पानी और चार कोस पर वाणी बदलने वाले इस देश में विद्वानों का कोई आभाव नही है, अत: विवादों का भी नहीं। कभी-कभी तो इस बात पर भी विवाद हो जाता है कि इस विषय पर विवाद क्यों है या इस विषय पर कोई विवाद क्यों नही करता? हर एक पूत मातृभूमि का सपूत है, उसकी रक्षा को तत्पर, उसके लिए अपनी जान तक देने को आतुर। परंतु ऐसा जान पड़ता है कदाचित इतिहास अथवा भौगोलिक अल्पज्ञान के फलस्वरूप इन्हे निकटवर्ती राष्ट्र और पड़ोसी मुल्क से अधिक शत्रु अपने ही देश में दिखाई देते हैं। सीबीएसई से निवेदन है कक्षा नौवीं के पाठ्यक्रम में परिवर्तन करे, क्या पता काम कर जाए। एक ओर धार्मिक उन्माद, सामाजिक विघटन में, इस सिबाका गीतमाला की पहली पायदान पर कई शताब्दियों से जमा हुआ है, वहीं जाति, भाषा, आरक्षण, शिक्षा, भोजन आदि के नए-नए सुर अपना स्थान बनाने की होड़ में हैं। प्रत्येक चुनाव के पहले प्रत्येक पार्टी के सयाने, सयानी की भांति अपनी-अपनी सूची का विमोचन करते हैं और अपना-अपना राग अलापते हैं। चैनल वाले इन्हे चला चलाकर छद्म टीआरपी के बिटकॉइन बटोरते हैं।
 
 
 
महत्वपूर्ण राज्य के चुनाव की अधिसूचना के पहले और गणतंत्र दिवस के लंबे सप्ताहांत पर एक फिल्म प्रसारित हुई। एक व्यावसायिक अभिव्यक्ति जिसका उद्देश्य मात्र कुछ सौ करोड़ रुपए कमाना ही है, क्यों विवाद का कारण बन गई? भाई जब आपको सर्वज्ञाता त्रिकालदर्शियों ने फिल्म बनने से पहले ही शूटिंग के समय मार-पीटकर के और सेट तोड़कर बता दिया था कि हमारी भावनाएं आहत होने वाली हैं, तो क्यों समझ नही आया। आपको क्या पता नही था, कि फिल्म का ट्रेलर, मूल फिल्म से भिन्न नहीं होता है। आपके तो सौ करोड़ बन गए, जो लाखों करोड़ फूंक दिए गए, उनका क्या? और दूसरी ओर, आप भाई लोग! आपकी सेना को फिल्म की कहानी लिखने से पहले ही अपने होने वाले अपमान की जानकारी कैसे हो गई? और अगर इतना पता ही था तो इतना भी पता होना चाहिए था, की इससे कुछ होना जाना नही है। बसें जलाकर, पत्थर फेंक कर फिल्म का विज्ञापन भला कौन करता है? देश का एक धड़ा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर चिंतित है तो दूसरी ओर इस अभिव्यक्ति से होने वाले तथाकथित अपमान से व्यथित है। दोनों के अपने अपने भारत हैं। दोनों प्रण ले चुके हैं कि मेरे भारत में यह होने नही देंगे। तेरा भारत बनाम मेरा भारत के इस द्वंद में भारत की पराजय निश्चित है। क्या कभी ‘हमारा भारत महान’ की कल्पना इस महान भारत में साकार होगी?
॥ इति॥
 (लेखक मेक्स सुपर स्पेश‍लिटी हॉस्पिटल, साकेत, नई दिल्ली में श्वास रोग विभाग में वरिष्ठ विशेषज्ञ हैं)

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