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स्वास्थ्य की मांगे खैर, करें सुबह की सैर

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अमित शर्मा

पृथ्वी बिना किसी बुलावे या भुलावे के निरंतर सूर्य के चक्कर लगाती है। हालांकि अभी तक यह सिद्ध नहीं हो पाया है कि निरंतर चक्कर लगाने के पीछे पृथ्वी की सूर्य के प्रति दीवानगी है या केवल स्वास्थ्य संबधी जागरूकता?
 

वैज्ञानिक अपने ज्ञान को ललकारते हुए बताते हैं कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है, वहीं मनोवैज्ञानिक अपनी मानसिकता को पुचकारते हुए समझाते हैं कि पृथ्वी का केवल अपनी धुरी पर घूमना पर्याप्त नहीं है। निरंतर घूमने के लिए धुरी पर घूमने के अलावा प्रधानमंत्री की तरह अपनी धुन में घूमना भी जरूरी होता है। पृथ्वी अकेली घूमती रहे, यह पृथ्वीवासियों की शर्म और मर्म दोनों की सेहत के लिए हानिकारक है इसीलिए पृथ्वीवासियों ने भी पृथ्वी को टक्कर देने के लिए रोज पृथ्वी के चक्कर लगाने का फैसला और संकल्प खाली पेट ले लिया।
 

हेल्थ एक्सपर्ट्स बिना पूछे ही मॉर्निंग वॉक के फायदे गिनवाने लगते हैं। इसी फायदे की आशा में मैं भी पिछले कई सालों से मॉर्निंग वॉक पर जा रहा हूं। लेकिन अभी तक मेरे अकाउंट में 15 लाख जमा होने का कोई मैसेज नहीं आया है। हालांकि सूत्रों की मानें तो अभी भी मैंने अधिकृत रूप से उम्मीद का दामन और दुपट्टा नहीं छोड़ा है।
 

सुबह की पदचाप से रक्तचाप, चुपचाप रहता है। सुबह की मीठी नींद का मोह छोड़ देने से मधुमेह भी आपको 'स्नेह-निमंत्रण' प्रेषित नहीं करता है। सुबह की सैर के नोटबंदी और जीएसटी से भी ज्यादा लाभ होते हैं। सबसे बड़ा लाभ तो यही होता है कि सुबह जल्दी सैर पर जाने से लोगों को यह पता तो चल जाता है कि आप रात को जल्दी ही नींद द्वारा बंधक बनाए जाने के शौकीन हैं और शौक बड़ी चीज होती है।
 

सुबह की सैर पर जाना भी एक तरह का शौक ही तो है, क्योंकि जब तक कुछ लोग सुबह की सैर पर नहीं जाते, तब तक उनका प्रेशर ही नहीं बनता है और साथ ही वे रोज सुबह सैर पर जाकर दूसरे लोगों पर भी सैर पर जाने का मॉरल प्रेशर बनाते हैं। इस तरह से सुबह की सैर की सहायता से आप बिना किसी सामग्री के दबाव बनाना सीख सकते हैं।
 

मॉर्निंग वॉक पर स्वच्छ और ताजा हवा आपको मुसीबतों की तरह गले लगाने को तैयार रहती है, जो दिन चढ़ने पर अच्छे दिनों की तरह दूर भागती है। मॉर्निंग वॉक पर हर आयु-वर्ग के लोग जाति-धर्म की दीवार फांदकर अपना स्टेमिना और जलवा दिखाने को बेताब और बेकाबू रहते हैं।
 

मॉर्निंग वॉक का नजारा देश में किसी भी तरह की असमानता को उसी तरह से झुठलाता हुआ दिखता है जिस तरीके से चीन, पाकिस्तान में आतंकवाद को झुठलाता है। देश में असली समाजवाद को सुबह की सैर के जरिए ही इंस्टाल किया जा सकता है, क्योंकि सुबह की सैर पर ही देश के सभी तबके, आलस और मोटापे से सस्ते दामों पर लोहा लेते हैं।
 

मॉर्निंग वॉक का दृश्य, बिग बॉस के घर की तरह ही विभिन्नता में विषमता लिए हुए होता है। कई मॉर्निंग वॉकातुर प्राणी मॉर्निंग वॉक के समय का ठीक उसी तरीके से सदुपयोग करते हैं, जैसे सरकारी कर्मचारी सुबह 10 से 5 बजे तक के अपने कार्यालयीन समय का करते हैं। मॉर्निंग वॉक पर बिना किसी मनुहार के निकला महिला मंडल, राष्ट्रीय, अंतराष्ट्रीय या स्थानीय मुद्दों के दबाव में आए बिना निरंतर सास-बहु, बेटा-पति पुराण का अखंड पाठ करता रहता है।
 

मॉर्निंग वॉक के दौरान महिला मंडल की 'जबान की गति' उनके कदमों से कहीं 'तेज' होती है जिससे कि सबसे तेज होने का दावा करने वाले चैनल भी रेस लगाने की रिस्क नहीं ले सकते हैं। कुछ वरिष्ठ और सम्मानित जैसे दिखने वाले लोग अपनी बॉडी लैंग्वेज से ऐसी प्रदर्शनी लगाते हैं, मानो सुबह की सैर पर आकर वो मानवता के सारे कष्ट नष्ट करने की अपनी महानता की दैनिक किस्त चुका रहे हो।
 

राजनीति और कूटनीति के सारे विशेषज्ञ मॉर्निंग वॉक के दौरान बिना किसी औपचारिक मंडी के थोक के भाव में उपलब्ध होते हैं। देश-दुनिया के सारे ज्वलंत मुद्दों पर वे जिगर से बीड़ी और अलख जगाने माद्दा रखते हैं। 'मॉर्निंग वॉक' के शाब्दिक अर्थ को धता बताते हुए कई दु:साहसी लोग अपने कदमों का बेहतरीन इस्तेमाल करते हुए दौड़ते हुए नजर आते हैं तो कुछ सज्जन, निर्जन स्थान ढूंढकर कसरत में रत होते हैं।
 

सुबह की सैर को लोकतांत्रिक अधिकार और कर्तव्य दोनों श्रेणी में मुख्य अतिथि के रूप में मंचासीन करके स्वास्थ्य संबधी जागरूकता का सीन क्रिएट करना चाहिए, क्योंकि जब तक देश का नागरिक स्वयं के स्वास्थ्य की चिंता में दुबला नहीं होगा, तब तक वो देश की तबीयत रंगीन करने में कैसे योग और सहयोग कर पाएगा? 

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